छत्तीसगढ़ में तेंदू पत्ता की नीलामी के नाम पर 300 करोड़ रुपये के घोटाले का मामला सामने आया है. सूबे में तेंदू पत्ते की बेस प्राइज तय नहीं होने का सरकारी अफसरों और नेताओं ने जमकर फायदा उठाया. राज्य के कई इलाकों में तेंदू पत्ता कारोबारियों को उसकी मूल कीमत के आधे से भी कम रकम में तेंदू पत्ता मुहैया कराकर छत्तीसगढ़ सरकार को 300 करोड़ रुपये से ज्यादा की चपत लगाई जा चुकी है.
वहीं, सूबे में तेंदू पत्ता घोटाले को लेकर राजनीति गरमाई हुई है. कांग्रेस ने राज्य के वन मंत्री के इस्तीफे की मांग की है, जबकि वन मंत्री ने घोटाले से ही इंकार करते हुए कांग्रेस पर जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया है.
इस मामले को लेकर बीजेपी और कांग्रेस दोनों आमने-सामने हैं. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल के मुताबिक तेंदू पत्ता के तमाम ठेके छत्तीसगढ़ लघु वनोपज व्यापार को ऑपरेटिव समिति ने बाकायदा टेंडर जारी कर कुछ चुनिंदा ठेकेदारों को फायदा पहुंचाया. तेंदू पत्ता की आधी कीमत बगैर किसी ठोस कारण के घटाई गई. भूपेश बघेल के मुताबिक चुनावी साल में 100 करोड़ रुपये का चंदा उगाहने के लिए सरकार और व्यापारियों के बीच की यह गिरोहबंदी सामने आई है.
उन्होंने बताया कि बीजेपी सरकार के द्वारा साल 2013 में भी इसी तरह से लघु वनोपज सहकारी संघ को 284 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था. कांग्रेस ने नीलामी प्रक्रिया को रद्द करने के साथ ही हाईकोर्ट की निगरानी में किसी स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराने की मांग की है.
कांग्रेस के मुताबिक सामान बिक्री के लिए न्यूनतम मूल्य तय होता है. राज्य सरकार ने आज तक तेंदू के पत्ते का बेस प्राइज तय नहीं किया. वहीं, कांग्रेस के आरोपों पर वन मंत्री महेश गागड़ा ने टिप्पणी करते हुए कहा कि नीलामी की प्रक्रिया वही है, जो कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने उस समय तय की थी.
उन्होंने बताया कि निविदाओं पर प्रस्तुत की जाने वाली दरें बाजार की मांग और आपूर्ति पर आधारित रहती हैं. तेंदू पत्ता के विक्रय दरों का अनुमोदन वरिष्ठ अधिकारियों की एक अंतर्विभागीय समिति करती है. समिति ऑफसेट दर के अनुसार ही काम करती है. छत्तीसगढ़ में 901 प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियों के माध्यम से तेंदू पत्ता संग्रहण किया जाता है. इन संग्रहण केंद्रों से बनाए गए लॉटो को अग्रिम निविदा के जरिए बेचा जाता है.
छत्तीसगढ़ में सालाना एक हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के तेंदू पत्ते का व्यापार होता है. बीड़ी निर्माण करने वाले देशभर के सैकड़ों ठेकेदार यहां सालाना डेरा डाले रहते है. गर्मी के दस्तक देते ही जंगलों से तेंदू पत्ता निकलना शुरू हो जाता है. जंगल के भीतर रहने वाली आदिवासियों की एक बड़ी आबादी को इससे रोजगार मिलता है. वे तेंदू पत्ता तोड़ते हैं और सरकारी दर पर वन विभाग को सौंपते है. वन विभाग के अंतर्गत आने वाला लघु वनोपज संघ इस कारोबार में अहम भूमिका निभाता है.
सुनील नामदेव / राम कृष्ण