छत्तीसगढ़ के किसान मुश्किल से उगाए गए टमाटरों को एक बार फिर सड़कों पर फेंकने को मजबूर हैं. इसका कारण है कि टमाटरों की पैदावार से किसान लागत तो दूर, मजदूरी तक नहीं निकल पा रहे हैं. नतीजतन किसान ना तो टमाटर तोड़ने को तैयार हैं और ना ही उसे खेतों से निकाल कर बिचौलियों तक पहुंचाने को.
बिचौलिए एक से दो रुपये प्रति किलो की कीमत पर टमाटर खरीद रहे हैं. राज्य के विभिन्न इलाकों में यह टमाटर बिचौलिए पांच से सात रुपये प्रति किलो की कीमत पर मंडियों तक पहुंचा रहे हैं. आम ग्राहकों तक यह टमाटर दस से पंद्रह रुपये प्रति किलो तक पहुंच रहा है. राज्य में टमाटर की पैदावार के लिए दुर्ग, राजनांदगांव, बेमेतरा, धमतर, महासमुंद, बालोद, सूरजपुर, जशपुर और अंबिकापुर जिला प्रसिद्ध हैं.
टमाटर उत्पादक किसानों को उनकी फसल का उचित दाम मिल सके इसके लिए मुख्यमंत्री रमन सिंह ने पतंजलि संस्थान से एक MOU कर राजनांदगांव जिले में फूड प्रोसेसिंग स्थापित करने का प्लान किया था, लेकिन यह योजना अफसरशाही की शिकार हो गई. बिना सोचे- विचारे अफसरों ने उस इलाके में फूड प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित करने का रोड मैप तैयार किया, जो विवादित है.
इस इलाके की ज्यादातर भूमि निजी संपत्ति के दायरे में आ रही है, जिसे भूमि मालिक बेचने को तैयार नहीं हैं. नतीजतन टमाटर उत्पादकों को इसका खामियाजा उठाना पड़ रहा है. दाम गिरने के चलते 80 फीसदी टमाटर उत्पादक किसानों ने टमाटर को अपने खेतों से तोड़ना बंद कर दिया है.
टमाटर उत्पादक किसानों ने 1-2 रुपये किलो तक टमाटर बेचने से इंकार करते हुए उन्हें नष्ट करने का फैसला किया. धमधा ब्लॉक के पारसोली गांव के रामचंद्र साहू के मुताबिक बिचौलिए 1-2 रुपये प्रति किलो तक बमुश्किल टमाटर खरीदने को तैयार हैं, जबकि इतना खर्च तो मात्र टमाटर तोड़ने पर आ रहा है. टमाटर की पैदावार, बुआई, मेहनत और कीट पतंगों से फसल को बचाने के लिए उस पर लागत साढ़े चार रुपये प्रति किलो से ज्यादा है. ऐसे में टमाटर का उत्पादन उनके लिए घाटे का सौदा है.
इस किसानों ने अब टमाटर की पैदावार ना करने का फैसला ले लिया है. उनके मुताबिक उन्हें टमाटर का लागत मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में उन्हें किसी दूसरी फसल की ही पैदावार करनी चाहिए. खिलौरा, गाड़ाघाट, घसरा, जाताघर्रा, दानी, कन्हारपुरी और कोकड़ी गांव के सैकड़ों किसानों ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए टमाटर की खेप को बतौर विरोध प्रदर्शन सड़कों पर फेंकने का फैसला लिया है.
किसानों के मुताबिक एक ओर उनकी लागत कीमत भी नहीं निकल पा रही है, जबकि दूसरी ओर बिचौलिए और सब्जी के थोक व्यापारी 3 से 5 रुपये प्रति किलो तक लाभ अर्जित कर रहे हैं. बता दें कि कुछ समय पहले ऐसे ही हालात बने थे जब टमाटर के दाम गिरने से किसानों ने उसका उत्पादन ही नहीं किया था नतीजतन टमाटर की कीमतें आसमान छूने लगी थीं और टमाटर 90 से 100 रुपये प्रति किलो तक बिका था.
छत्तीसगढ़ के एक बड़े हिस्से में सब्जियों का उत्पादन जबर्दस्त होता है. कैश क्रॉप के चलते ज्यादातर किसान टमाटर की फसल को प्राथमिकता के साथ उत्पादित करते हैं, लेकिन अब किसान इसकी पैदावार को लेकर डरे हुए हैं. उनके मुताबिक टमाटर उत्पादन नुकसानदायक साबित हो रहा है, दूसरी ओर इसे कोल्ड स्टोरेज में रखना संभव नहीं होता. यही नहीं टमाटर से कोई और उत्पाद नहीं बनता. टमैटो कैचप का उत्पादन करने वाली इकाइयां भी राज्य में नहीं हैं. ऐसे में उनकी फसल को खरीदने वाला बाजार भी मुहैया नहीं है जिसके चलते ज्यादातर किसान अपनी फसल को सड़कों पर फेंकने को मजबूर हैं.
सुनील नामदेव