नक्सलियों के मददगारों के आएंगे 'बुरे दिन', जाना पड़ सकता है जेल

छत्तीसगढ़ में चोरी-छिपे नक्सलियों की मदद करने वाले लोगों पर सरकार ने नजर टेढ़ी कर ली है और उन पर लगाम कसने की तैयारी में जुट गई है.

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सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर

सुनील नामदेव

  • रायपुर,
  • 13 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 12:06 AM IST

छत्तीसगढ़ में नक्सल फंडिंग की जांच की खबर से राजनीतिक गलियारों से लेकर औद्योगिक ठिकानों तक खलबली मची हुई है. दोनों ही मोर्चों से नक्सलियों को अच्छी खासी आर्थिक मदद मिलती है.

दिल्ली में नक्सल फंडिंग को लेकर सोमवार को राज्य के DGP (नक्सल ऑपरेशन) डीएम अवस्थी के साथ एनआईए के प्रमुख अधिकारियों, ईडी और गृह विभाग के वरिष्ठ अफसरों की बैठक हुई. बैठक में DGP नक्सल ऑपरेशन ने राज्य में नक्सलियों के लेव्ही वसूली और उनके बजट को लेकर पूरा ब्यौरा सौपा.

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दरअसल आतंकवादी फंडिंग की तर्ज पर नक्सल फंडिंग के मामलों की भी सरकार उच्च स्तर पर जांच कराएगी. बिहार में हफ्ते भर पहले ईडी ने नक्सली नेता संदीप यादव उर्फ बड़का भैया की लाखों की संपत्ति अटैच की थी. इसके बाद नक्सल फंडिंग को देशद्रोह के दायरे में लाकर बड़ी कार्रवाई किए जाने के संकेत पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों ने दिए है.  

छत्तीसगढ़ में कई राजनीतिक दलों से जुड़े नेताओं और औद्योगिक घरानों के नक्सलियों से बड़े मधुर संबंध है. बताया जाता है कि नक्सल प्रभावित इलाकों में सालाना 20 हजार करोड़ रुपये के निर्माण और विकास कार्य संचालित होते हैं. राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों नक्सल प्रभावित इलाकों में तेजी से मुलभूत सुविधाए जुटाने में लगी है. ऐसे में सरकार ने दिल खोलकर बजट का प्रावधान भी किया है.

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इन इलाकों में सुरक्षित रूप से कार्य संपन्न हो सके इसके लिए नक्सली लेव्ही के रूप में ठेकेदारों से मोटी रकम वसूलते है.

बस्तर में लौह अयस्क और गैस पाइप लाइन के क्षेत्र में काम करने वाली एक नामी-गिरामी कंपनी के जीएम और दूसरे अफसर कुछ वर्ष पूर्व उस समय रंगे हाथों धरे गए थे जब वे नक्सलियों को प्रोटेक्शन मनी सौपने जंगल के एक खास हिस्से में गए थे.

पुलिस ने उनके पास से डेढ़ करोड़ रुपये की रकम जप्त की थी. यही नहीं दूसरे और ठेकदार भी इसी तरह की वारदातों में शामिल रहे हैं. पुलिस के पास इनका पूरा रिकॉर्ड है. नक्सल प्रभावित इलाको में ज्यादातर कार्य PWD, फॉरेस्ट, ट्राइबल वेलफेयर , मनरेगा और दूसरी योजनाओ के तहत विकास कार्य जोरों पर चल रहा है. ज्यादातर योजनाओं में नक्सलियों के इशारे पर फर्जी मस्टर रोल भरकर मजदूरों के नाम पर सरकारी रकम निकाली जाती है. यह रकम सरकारी अफसरों के जरिए नक्सलियों के हाथों तक पहुंच जाती है.

विकास कार्यों के स्वीकृत बजट का लगभग  25 फीसदी हिस्सा नक्सली बंदूक की नोक पर वसूलते है. इसके अलावा जंगलों के भीतर नक्सली बड़े पैमाने पर गांजे और अफीम की खेती कर रहे हैं. इससे मिलने वाली रकम भी उनकी तिजोरी में जा रही है. बताया जाता है कि अकेले छत्तीसगढ़ से नक्सली दलम सालाना पंद्रह सौ करोड़ से ज्यादा की रकम इकट्ठा करता है. यह रकम नक्सली आंदोलनों को चलाने, उसके प्रचार प्रसार और  हथियारों खरीदने में व्यय होती है.

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दिल्ली में नक्सल फंडिंग को लेकर हुई बैठक हुई. बैठक में बताया गया कि नक्सल फंडिंग के जरिये उनके नेता देश के कई इलाको में संप्पत्ति  खरीद रहे है. लेकिन अभी तक उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा सकी है. बैठक में एक ड्राफ्ट तैयार किया गया है. इस ड्राफ्ट में नक्सलियों के आर्थिक मददगारों के खिलाफ वैधानिक कार्रवाई करने के साथ साथ उनकी संपत्ति अटैच करने का पूरा ब्यौरा दर्ज है. नक्सल प्रभावित राज्यों के डीजीपी को जल्द ही नक्सल फंडिंग पर लगाम लगाने के लिए निर्देशित किया गया है.

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