छत्तीसगढ़: रायपुर के कलेक्टर ओपी चौधरी थामेंगे बीजेपी का दामन!

छत्तीसगढ़ की राजनीति में आईएएस अफसरों की अपनी पहचान रही है. पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी राजनीति में हाथ आजमाने से पहले आईएएस रहें और संयुक्त मध्य प्रदेश के बड़े शहर इंदौर के कलेक्टर रहें. अब एक बार फिर किसी आईएएस अफसर के छत्तीसगढ़ की राजनीति में  दस्तक देने की अटकलें तेज हो गईं हैं.

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आईएएस ओपी चौधरी को सम्मानित करते पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आईएएस ओपी चौधरी को सम्मानित करते पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह

विवेक पाठक / सुनील नामदेव

  • रायपुर,
  • 23 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 4:47 PM IST

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव करीब आते ही आईपीएस अफसरों के बाद अब आईएएस अफसरों पर भी सियासी रंग चढ़ने लगा है. ताजा मामला रायपुर के कलेक्टर ओ पी चौधरी का है. बताया जा रहा है कि 2005 बैच के इस आईएएस अफसर ने नौकरी छोड़ बीजेपी का दामन थामने का फैसला किया है. यदि सब कुछ ठीक रहा तो ओपी चौधरी रायगढ़ जिले की खरसिया सीट से बीजेपी के उम्मीदवार हो सकते हैं. कहा जा रहा है कि बीजेपी में प्रवेश के लिए उनकी दो बार पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात हो चुकी है.

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गौरतलब है कि मुख्यमंत्री रमन सिंह की गुड बुक में बतौर आईएएस अधिकारी ओपी चौधरी का नाम अव्वल रहा है. जिसके दो कारण बताए जाते हैं, पहला यह कि वे छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के ब्यांग गांव के रहने वाले हैं और उन्होंने छत्तीसगढ़ में ही कार्य करने की इच्छा जाहिर कर अपना मूल कैडर इस प्रदेश को चुना. दूसरा यह कि दंतेवाड़ा में कलेक्टर रहते हुए उन्होंने नक्सल प्रभावित इलाके को एजुकेशन हब में तब्दील किया, जिसके चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नें वर्ष 2011-12 में उन्हें प्रधानमंत्री एक्सीलेंस अवॉर्ड से सम्मानित किया. दंतेवाड़ा के बाद जनसंपर्क महकमे में बतौर आयुक्त और रायपुर में कलेक्टर रहते हुए उन्होंने सरकारी योजनाओं को लागू करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. जिसके चलते कलेक्टर ओ पी चौधरी से मुख्यमंत्री रमन सिंह काफी प्रभावित रहे.

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रायगढ़ की खरसिया सीट पर बीजेपी ने कभी भी जीत नहीं दर्ज की. कभी अटल लहर तो कभी मोदी लहर के बावजूद पिछले विधानसभा चुनावों में इस सीट पर बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी थी. संयुक्त मध्यप्रदेश के दौरान से खरसिया विधानसभा सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा. खरसिया, कांग्रेस के दिवंगत नेता नंद कुमार पटेल की यह परम्परागत सीट रही. पिछले विधान सभा चुनाव के पहले 25 मई 2012 को बस्तर की झीरम घाटी में हुए नक्सली हमले में नंद कुमार पटेल की मौत हो गई थी. उनकी मौत के बाद हुए उपचुनाव में उनके बेटे उमेश पटेल ने इस सीट से जीत दर्ज की.

खरसिया विधानसभा, अगासिया समुदाय बहुल्य सीट है, जिसके बाद वैश्य समुदाय के सर्वाधिक वोटर हैं. ओपी चौधरी भी अगासिया समुदाय से आते हैं. बता दें कि ओपी चौधरी इस इलाके से पहले नौजवान हैं जिन्होंने सिविल सेवा परीक्षा में बाजी मारी. इस लिहाज से ओपी चौधरी का नाम गांव-गांव में मशहूर है. कलेक्टर बनने के बाद तो उनकी ख्याति ऐसी फैली कि इलाके के कई नौजावन उन्हें अपना आदर्श मानते हैं. अपने गृह नगर में ओपी चौधरी ने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कई शिविर भी लगाए. इन शिविरों में बड़ी तादाद में युवा छात्र छात्राओं ने UPSC की कोचिंग ली. जिससे उनका झुकाव ओपी चौधरी की ओर बढ़ा.  

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फिलहाल ओपी चौधरी आईएएस से इस्तीफा देने की तैयारी में हैं. लेकिन चुनाव लड़ने से पहले बीजेपी में प्रवेश को लेकर वो अपना कार्ड नहीं खोल रहे हैं. इस बारे में जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने नौकरी से इस्तीफे और राजनीतिक दल में शामिल होने के सवाल को ही टाल दिया. उनकी बातों से साफ झलक रहा था कि जब तक बीजेपी हाईकमान से उन्हें टिकट का वादा नहीं मिल जाता, तब तक वो अपनी राजनीतिक इच्छा शक्ति सार्वजनिक नहीं करेंगे. फिलहाल अटकलें लगाई जा रही हैं कि विधान सभा चुनाव में वो खरसिया विधानसभा सीट से बीजेपी के उम्मीदवार होंगे. 

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