रात को मॉस्किटो क्वायल जलाकर सोने वाले सावधान! आपके साथ भी हो सकता है ये हादसा

बिहार के नालंदा जिले के कपसंडी गांव में दो भाई देर रात मॉस्किटो क्वायल जलाकर कमरे में सो गए. सुबह जब लोग उन्हें जगाने गए, तो दोनों ने दरवाजा नहीं खोला. क्योंकि दरवाजा अंदर से बंद था.

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रात में मॉस्किटो क्वायल जलाकर सोये थे दो भाई, सुबह कमरे में मिली लाश रात में मॉस्किटो क्वायल जलाकर सोये थे दो भाई, सुबह कमरे में मिली लाश

aajtak.in

  • पटना,
  • 08 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 10:37 PM IST
  • सुबह बंद कमरे में बेहोश मिले दोनों भाई
  • क्वायल के धुएं के कारण हुई मौत

मॉस्किटो क्वायल जलाकर सोने वाले भाइयों की पूरी घटना जानने से पहले आपको हम कुछ और बताते हैं. इस घटना के पहले हम आपको 1982 में मृणाल सेन की बांग्ला फिल्म `खारिज' के बारे में बता रहे हैं. यह फिल्म रमापद चौधरी के लिखे उपन्यास खारिज पर आधारित थी. फिल्म कोलकाता के मध्यवर्गीय परिवार में काम करने वाले एक घरेलू बाल मजूदर के रसोई में दम घुटने से मर जाने की कहानी है.

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फिल्म में दिखाया गया है कि 1981 में कोलकाता में जबरदस्त शीत लहर आती है. रसोई में अंगीठी जलाकर सोने वाला नौकर जब रसोई का दरवाजा नहीं खोलता. उस दरवाजे को तोड़ा जाता है. उसके अंदर उसकी लाश मिलती है. मध्यवर्गीय परिवार पहले तो उसकी मौत के कारणों को लेकर घबरा जाता है. पूरा परिवार अपराध बोध से घिर जाता है. बाद में पोस्टमॉर्टम में ये स्पष्ट हो जाता है कि नौकर की मौत अंगीठी के कार्बन मोनोआक्साइड से हुई है. मध्यवर्गीय परिवार थोड़ी राहत की सांस लेता है.  

बिहार के नवादा जिले में कुछ इसी तरीके की घटना सामने आई है. यहां पकरीबरांवां थाना क्षेत्र के कपसंडी गांव में दो भाई देर रात मॉस्किटो क्वायल जलाकर कमरे में सो गए. सुबह जब लोग उन्हें जगाने गए, तो दोनों ने दरवाजा नहीं खोला. क्योंकि दरवाजा अंदर से बंद था. उसके बाद परिजनों ने दरवाजा तोड़ दिया. देखा कि दोनों भाई कमरे के अंदर बेहोशी की अवस्था में हैं. दोनों को आनन फानन में नवादा के सदर अस्पताल लाया गया. जहां अस्पताल लाने के क्रम में एक की मौत हो गई. वहीं दूसरे को पावापुरी विम्स में रेफर कर दिया गया है. मृतक का नाम मुकेश कुमार बताया जा रहा है, जो कोलकाता में बीएसएफ का जवान है.

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मौत के पीछे क्वायल का धुआं और कमरे का बंद होना बताया जा रहा है. खारिज फिल्म की तरह ठंड के दौरान कमरे के अंदर से गैस बाहर नहीं निकल पाई. पूरा क्वायल जलता रहा और कमरे में भर गया. सोये हुए दोनों भाईयों के फेफड़े में क्वायल का धुआं भर गया. पूरे कमरे में कार्बन मोनोक्साइड का निर्माण हो गया. कमरे में ऑक्सीजन की मात्रा घट गई. सिर्फ कार्बन मोनोक्साइड रह गया. दोनों ने सांस अंदर खिंची तो मोनोक्साइड अंदर गया जब सांस छोड़ा तो भी अंदर से कार्बन मोनोक्साइड ही बाहर आया. कवायलय के धुएं और कमरे का चारों तरफ से बंद होना बीएसएफ जवान की मौत का कारण बना. जबकि एक भाई की हालत गंभीर बताई जा रही है.

परिजन रंजीत यादव ने बताया कि वो लोग पूरी तरह अपराध बोध से ग्रसित हैं. आखिर मौत की जिम्मेदारी किसको दें. कमरे को दे नहीं सकते क्योंकि कमरे उन्होंने बंद किए थे. क्वायल जलाना आज की तारीख में जरूरत बन गया है. सवाल सबसे बड़ा है कि ठंड के दिनों में क्वायल के साथ बंद कमरे में सोना काफी खतरनाक है. इससे इंसान की जान भी जा सकती है.

(इनपुट- सुनीता झा)

 

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