पूरी दुनिया में हर साल 7 अप्रैल को वर्ल्ड हेल्थ डे(World Health Day 2022 date) मनाया जाता है. इसका मकसद स्वास्थ्य के प्रति लोगों में जागरुकता फैलाना है. इस खास मौके पर हम आपको कुछ हीरोज के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने जिंदगी की हारी हुई जंग जीत ली और विपरीत परिस्थितियों में भी स्वस्थ रहना सीखा. इनकी कहानी जानकर आपको भी निश्चित रूप से इनसे प्रेरणा मिलेगी.
कैंसर को हराकर बनी मिसाल
यह कहानी है 42 वर्षीय राशि कपूर की. राशि पेशे से एक टीचर थी और परिवार संग उनकी जिंदगी खुशहाली से बीत रही थी. उन्हें किसी तरह की कोई बुरी आदत नहीं थी और ना ही उनके परिवार में किसी को मेडिकल तकलीफ थी. लेकिन साल 2012 के बाद राशि के जीवन में कुछ ऐसा हुआ जिससे उसकी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई. दरअसल राशि की जिंदगी में खुशियां दोगुनी होने वाली थी क्योंकि वे दूसरी बार मां बनने जा रही थी. उनका पूरा परिवार उनकी देखरेख में लगा हुआ था. वो भी अपने मातृत्व के भाव से अपने होने वाले बच्चे का ध्यान रख रही थी. लेकिन अचानक एक दिन जब वह डॉक्टर के पास टेस्ट करवाने गई तब कुछ ऐसा हुआ जो सपने में भी नहीं सोच सकती थी.
डॉक्टर ने बताया कि उन्हें मोलर प्रेग्नेंसी है. पहले तो यह टाइम उनकी समझ से बाहर था लेकिन जब इसके बारे में पता चला तब तो अंदर से पूरी तरह टूट चुकी थी. मां बनने के सपने भी बिखर गए थे क्योंकि उनके गर्भाशय के भीतर जो शिशु था, वो भी कैंसर में तब्दील हो चुका था. राशि कहती हैं कि उनके लिए इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता कि उनका होने वाला बच्चा जिसका वे बेसब्री से इंतजार कर रही थी, वह एक कैंसर में तब्दील हो जाए. उनका इलाज जारी रहा जिसमें उनकी छह बार कीमो थेरेपी की गई. ऐसे समय में भी राशि ने जरा भी हिम्मत नहीं हारी और उनका परिवार का साथ ही था जिसने उनकी हिम्मत बनाए रखीं.
कुछ सालों बाद राशि के घर पर खुशियों ने दस्तक दी और उन्हें एक बेटी हुई लेकिन साल 2016 में उनके घुटनों में दर्द शुरू हो गया. सारी जांच करवाने के बाद पता चला कि उन्हें सायनोवियल सार्कोमा नाम का एक रेयरेस्ट रेयर कैंसर हुआ है. एक ऐसा कैंसर है जो 10 लाख लोगों में किसी एक को होता है और वह राशि को हुआ. डॉक्टर ने बताया कि इन दोनों की कैंसर का आपस में कोई लेना देना नहीं है. यह दूसरा कैंसर बहुत कम लोगों को होता है और यह पहले वाले कैंसर से बहुत अधिक गंभीर और जटिल है. राशि ने बताया कि दूसरे कैंसर की बात सुनते ही वे पूरी तरह से टूट चुकी थी. उन्होंने बताया कि पहले ही कैंसर के बाद उन्होंने अपने आप को जैसे-तैसे संभाला और बहुत मुश्किल से अपने चेहरे पर मुस्कान वापस लाई थी. लेकिन दूसरी बार कैंसर ने उनकी जिंदगी की खुशियां वापस से छीन ली. डॉक्टर ने कहा कि उनका पैर काटना पड़ सकता है. लेकिन फिर उन्होंने सर्जरी का रास्ता अपनाया और पैर काटने की बजाय डॉक्टरों ने घुटने में मौजूद कैंसर को हटा दिया. इसके कारण राशि के एक पैर में पूरी रॉड डाली गई है जिसके कारण वे अपना पैर कभी मोड़ नहीं पाएंगी. उन्हें चलने में अब भी तकलीफ तो होती है लेकिन जिंदगी के इस सफर में वह मुस्कुराते हुए हर तकलीफ को गले लगाकर उसका डटकर सामना करती हैं.
राशि कहती हैं कि उन्होंने परिस्थितियों के आगे घुटने नहीं टेके और अपने स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान दिया. इसमें उनके परिवार ने बहुत साथ दिया. राशि कहती हैं कि इतना सब होने के बाद वे अपनी शिक्षिका वाली नौकरी में वापस तो लौटना चाहती थी लेकिन एक अलग अंदाज में. उनका मानना था कि अब वे बच्चों को पढ़ाने के बजाय उन लोगों को जागरुक करेंगी जो कैंसर से पीड़ित हैं. इसीलिए उन्होंने Sachin sarcoma helpline नाम की एक संस्था खोली. यह एक ऐसी संस्था है जिसमें सार्कोमा कैंसर से ग्रसित लोग जुड़े हुए हैं. यह संस्था उन लोगों की पूरी तरह से मदद करती है. राशि बताती हैं कि उनकी संस्था अब तक 5000 से भी ज्यादा कैंसर ग्रसित पेशेंट्स की मदद कर चुकी है. यह संस्थान की मदद ही नहीं करती बल्कि उन्हें यह भी बताती है कि कैंसर जैसी बीमारी से किस तरह से लड़ा जा सकता है, उसका इलाज क्या है और कौन से अस्पताल में उन्हें कम से कम पैसों में इलाज मिल सकता है.
हौंसले से जीती जिंदगी
8 साल की उम्र में जहां बच्चे नई पेंसिल पकड़ते हैं, खिलौनों से खेलते हैं, उसी 8 साल की उम्र में शिविर ने अपने हाथ में सिर्फ सुइयां और सलाइन की बोतलें देखी. इस उम्र में बच्चे जहां स्कूल में कदम रखते हैं, उसने आईसीयू और वेंटीलेटर पर अपने दिन गुजारे. इस मासूम जिंदगी ने 12 दिन वेंटिलेटर पर रहकर मौत को हर रोज बहुत करीब से देखा और उसे हरा कर वापस अब अपनी नई जिंदगी जी रहा है.
दरअसल 7 साल की उम्र में शिविर को एक ऐसी बीमारी हुई जो बच्चों को इतनी कम उम्र में ना के बराबर होती है. शिविर के माता-पिता ने बताया कि वह लगातार बीमार रहने लगा था. उसे बार-बार बुखार आता था और उतरता ही नहीं था. सभी तरह के इलाज करवाने के बाद पता चला कि शिविर को ब्रेन में ट्यूबरक्लोसिस है. डॉक्टर ने कहा कि यह बीमारी बहुत गंभीर और जटिल है और इसलिए उसके बचने की उम्मीद सिर्फ 1% की ही है. ऐसे में इस खबर ने उनके परिवार को पूरी तरह से तोड़ कर रख दिया था.
यह खबर शिविर की मां के लिए असहनीय थी क्योंकि उस वक्त वे खुद प्रेग्नेंट थी और दूसरी बार मां बनने जा रही थी. ऐसे में जहां पहला बच्चा जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा हो और दूसरा बच्चा अभी दुनिया में आया ही नहीं था उनके लिए परिस्थितियां बेहद कठिन और गंभीर थी. शिविर की मां ने बताया कि उनका परिवार एक तरह से उम्मीद छोड़ चुका था. लेकिन शिविर के मनोबल और उम्मीदों ने उसका साथ नहीं छोड़ा. वह 42 दिनों तक अस्पताल में रहा. उसमें से 14 दिन वेंटीलेटर पर भी रहा. यह 14 दिन हमारी जिंदगी के सबसे कठिन दिन थे. हर रोज शिविर जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा था. पता नहीं था कि वह अगली सुबह देख पाएगा या नहीं. लेकिन डॉक्टर का कहना था कि शिविर का मनोबल अपने आप में इतना अडिग है क्यों से बड़ी से बड़ी परेशानी नहीं हिला सकते. इसीलिए 42 दिनों के इलाज के बाद शिविर पूरी तरह से ठीक हो कर घर लौट चुका था.
घर वालों के लिए यह उसका दूसरा जन्म ही था. लेकिन तकदीर ने उसके जिंदगी में कुछ और ही लिखा था. घर लौटते के कुछ महीनों तक शिविर रोज हर दिन 18 से 20 दवाइयां लेता था. इन दवाइयों में स्टेरॉइड्स का इतना ज्यादा असर था कि उसकी देखने की शक्ति धीरे-धीरे कम होने लगी. और कुछ महीनों बाद उसका विजन शून्य हो चुका था. शिविर के पिता ने बताया कि दवाइयों के असर के कारण वह देखने की क्षमता पूरी तरह से खो चुका था. हमें लगा था जैसे हमारे बच्चे के जिंदगी से उसके सभी रंग जा चुके हैं. फिर एक बार अस्पताल गए वहां पर इलाज करवाया. एक लंबी लड़ाई लड़ने के बाद दूसरी जंग शिविर का इंतजार कर रही थी.
डॉक्टर ने बताया कि शिविर अब दोनों ही आंखों से अपनी विजन केपेसिटी खो चुका है लेकिन शिविर को यह बेरंग सी दुनिया मंजूर नहीं थी. वह फिर 14 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहा. उसकी आंखों का ऑपरेशन किया गया और अब वह पूरी तरह से ठीक है. शिविर का 65% विजन वापस आ चुका है. वह कहता है कि मैं एक बहुत ही स्ट्रांग बच्चा हूं और मैं किसी चीज से नहीं डरता.
70 साल कराई बायपास सर्जरी
70 साल की उम्र में जहां आपको डायबिटीज हो और अक्सर बीमार रहते हों तो अक्सर इंसान जीने की उम्मीद छोड़ देते हैं. जब निराशा आपको चारों ओर से घेर लेती है तब आशा की कोई किरण नजर नहीं आती है. लेकिन 70 वर्ष की आयु में भी गुलशन कुमार ने अपनी हिम्मत नहीं हारी और जीने की उम्मीद को बनाए रखा. गुलशन कुमार पिछले 20 वर्षों से डायबिटीज और हाई बीपी के मरीज हैं. पिछले साल उन्हें दिल का दौरा पड़ा था. उसके कुछ समय बाद हालात सामान्य थे. लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीता उनकी परेशानियां बढ़ती गई. एक दिन जब वे सीढ़ियों से नीचे उतर रहे थे तब अचानक बेहोश हो गए. डॉक्टर के पास ले जाने पर पता चला कि उन्हें रास्ते में ही एक हार्ट अटैक आ चुका था.
सीटी स्कैन ईसीजी और m.r.i. करवाने के बाद पता चला कि गुलशन कुमार के आठ में कुछ कॉम्प्लिकेशंस है. डॉक्टर ने बताया कि उनके हार्ट के वाल्व में 3 ब्लॉकेज थे और चौथा वाल्व पूरी तरह से श्रिंक हो चुका था. यानी की हार्ट के चारों वाल्व ने काम करना लगभग बंद कर दिया था. डॉक्टर ने कहा कि इन की बाईपास सर्जरी करनी पड़ेगी. लेकिन गुलशन कुमार को डायबिटीज होने के कारण किडनी फेलियर का खतरा और भी ज्यादा था. डॉक्टर ने कहा कि ऑपरेशन के बाद भी हम इस बात की गारंटी नहीं ले सकते कि ये रहेंगे या नहीं. ऐसे में उनके परिवार और उनके लिए बड़ी कठिन घड़ी थी. लेकिन गुलशन कुमार ने निर्णय लिया कि वे हार नहीं मानेंगे और ऑपरेशन करवाएंगे.
यह ऑपरेशन करीब 10 घंटे तक चला. गुलशन कुमार की बेटी प्रीति बजाज बताते हैं कि यह 10 घंटे उनकी जिंदगी के सबसे भारी और लंबे 10 घंटे थे. उन्हें बस एक ही उम्मीद थी कि उनके पिता जल्द से जल्द ठीक हो जाए. गुलशन कुमार बताते हैं कि ऑपरेशन थिएटर में जाते वक्त मैंने बस एक ही बात मन में सोची और वह यह थी कि मुझे वापस लौटना ही है. मेरा परिवार मेरा इंतजार कर रहा है और मैं वापस लौटूंगा. हुआ भी वही, उनकी हिम्मत ने मौत के सामने घुटने नहीं टेके और जिंदगी की लड़ाई जीत गए.
तेजश्री पुरंदरे