ब्रायन जॉनसन (Bryan Johnson) अरबपति टेक एंटरप्रेन्योर हैं जो अपने उम्र घटाने के कारण अक्सर सुर्खियों में रहते हैं. टेक मिलियनेयर ब्रायन जॉनसन हर साल अपनी हेल्थ, एंटी-एजिंग लाइफस्टाइल पर 2 मिलियन डॉलर यानी लगभग 17 करोड़ रुपये से भी ज्यादा खर्च करते हैं. वह दिनभर में 40 से ज्यादा सप्लीमेंट्स, शाकाहारी डाइट लेते हैं. ब्रायन की उम्र 48 साल है लेकिन उनके हार्ट की उम्र 37 साल है और वहीं उनके लंग्स 18 साल के लड़के दैसे हैं. उन्होंने हाल ही में दावा किया है कि उन्होंने अपने सीमन में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा को 85 प्रतिशत तक कम कर दिया है. ऐसा करने के पीछे कोई सर्जरी या दवा का सहारा नहीं लिया है बल्कि एक हेल्थ रूटीन से उन्होंने ऐसा किया है.
X पर बताया
ये तो हर कोई जानता है कि दुनिया भर में माइक्रोप्लास्टिक्स को लेकर चिंता लगातार बढ़ती जा रही है और ये बारीक प्लास्टिक के कण न सिर्फ पानी और हवा में मौजूद हैं, बल्कि अब इंसानी शरीर के अंदर भी मिल रहे हैं. जॉनसन के सीमन में नवंबर 2024 में माइक्रोप्लास्टिक की कंसंट्रेशन 165 कण प्रति मिलीलीटर से घटकर जुलाई 2025 में 20 कण प्रति मिलीलीटर हो गई है.
किस तकनीक से किया ऐसा
ब्रायन जॉनसन ने कहा कि सीमन में माइक्रोप्लास्टिक की इस कमी का कारण उनकी रोजाना की ड्राई सौन थेरेपी है. इस तकनीक में वे लगभग 200 °F (लगभग 93 °C) तापमान पर 20 मिनट तक सौना लेते हैं और इसके दौरान अपने प्राइवेट पार्ट के पास एक आइस-पैक लगाते हैं ताकि स्पर्म हेल्थ को सही रखा जा सके.
इसके साथ ही उन्होंने अपने प्लास्टिक एक्सपोजर (उत्सर्जन) को भी बहुत कम किया है जैसे कि वे माइक्रोवेव में प्लास्टिक कंटेनर का उपयोग नहीं करते, उन्होंने रिवर्स ऑस्मोसिस वाटर फिल्टर लगाया है, प्लास्टिक बर्तनों कम इस्तेमाल करते हैं, प्लास्टिक की बॉटल में पानी नहीं पीते आदि.
ब्लड में भी कम हुआ माइक्रोप्लास्टिक
माइक्रोप्लास्टिक हार्मोन के कार्य में बाधा पैदा कर सकता है और ऑक्सीडेटिव तनाव पैदा कर सकता है जिससे शुक्राणुओं की संख्या कम हो सकती है और प्रजनन क्षमता कम हो सकती है.
ब्रायन ने बताया कि सीमन के साथ-साथ उनके खून से भी माइक्रोप्लास्टिक में कमी आई है जो कि पहला मामला हो सकता है जिसमे एक व्यक्ति के खून और सेमेन में माइक्रोप्लास्टिक्स दोनों में समय के साथ समान दर से कमी देखी गई हो.
क्या कहते है वैज्ञानिक
इस तरह के दावों के लिए वैज्ञानिक चेतावननी देते हुए कहते हैं कि हम माइक्रोप्लास्टिक्स के संपर्क में भले ही अधिक आ रहे हैं लेकिन मानव स्वास्थ्य पर इनके प्रभावों का डेटा अभी बहुत सीमित है. उदाहरण के लिए अभी यह पूरी सटीकता के साथ पता नहीं है कि माइक्रोप्लास्टिक्स ह्यूमन रिप्रोडक्टिव ऑर्गंस, खून आदि में पाए गए हैं.
हम यह जानते हैं कि वे हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन, हमारे द्वारा पिए जाने वाले पानी और हमारे द्वारा सांस ली जाने वाली हवा में मौजूद हैं. मस्तिष्क, हृदय, फेफड़े, लिवर और प्लेसेंटा के साथ-साथ खून, लार, यूरिन, ब्रेस्ट मिल्क और वीर्य जैसे बॉडी लिक्विड में भी चावल के दाने से भी छोटे माइक्रोप्लास्टिक का पता लगाया जा चुका है.
ब्रायन जॉनसन का यह प्रयोग व्यक्ति (n = 1) लेवल पर हुआ है इसलिए इसे वैज्ञानिक रूप से की गई क्लीनिकल रिसर्च नहीं माना जा सकता. उनके अनुभव को एक इंस्पायरिंग केस स्टडी के रूप में देखा जा सकता है लेकिन इसे सामान्य लोगों पर उसी तरह लागू करना अभी सुरक्षित नहीं माना गया.
सौना में पसीना आने के कारण कुछ विषाक्त पदार्थ निकलते हैं लेकिन रिसर्चों से पता चला है कि सौना में अधिक तापमान वास्तव में शुक्राणु की गुणवत्ता और प्रोडक्शन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. यह भी स्पष्ट नहीं है कि जननांगों पर बर्फ लगाने के साथ सौना के उपयोग पर कोई रिसर्च हुई भी है या नहीं.
आजतक लाइफस्टाइल डेस्क