Fast food definition in india: उत्तर प्रदेश के अमरोहा में 11वीं क्लास की लड़की की फास्ट फूड खाने से मौत हो गई है. उसे बचपन से ही फास्ट फूड खाने का शौक था. चाऊमीन, मैगी, पिज्जा और बर्गर उसका रोज़ का हिस्सा बन चुके थे. घरवालों के मुताबिक़, वह घर का सादा खाना पसंद नहीं करती थी, बल्कि दुकान से मिलने वाले पैकेट वाले स्नैक्स भी रोजाना खाती थी. पेट दर्द के कारण जब उसे दिल्ली AIIMS में भर्ती कराया गया तो पता चला कि उसकी आंतों की दीवारें एक-दूसरे से चिपक गई हैं और पाचन तंत्र डैमेज हो चुका है. ऑपरेशन के बावजूद भी डॉक्टर उसे बचा नहीं पाए. मेडिकल रिपोर्ट में साफ़ कहा गया कि यह सालों से की जा रही अनहेल्दी ईटिंग का नतीजा था.
अब कई लोगों के मन में सवाल होता है कि आखिर ये फास्ट फूड होते क्या हैं और क्या भारत में मिलने वाली समोसा-भजिया-जलेबी भी फास्ट फूड में आते हैं? अगर आप भी इस बात को लेकर कन्फ्यूज हैं तो आइए हम आपको इस बारे में विस्तार से बताते हैं.
दिल्ली के अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल में इंटरनल मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. संचयन रॉय के मुताबिक, 'फास्ट फूड ऐसे भोजन को कहा जाता है जो जल्दी तैयार हो जाता है, स्वाद में तो काफी होता है लेकिन न्यूट्रिशन के लिहाज से काफी कम और सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकता है.'
'आमतौर पर लोग फास्ट फूड का मतलब सिर्फ पिज्जा, बर्गर, नूडल्स या फ्रेंच फ्राइज समझते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि हमारे रोजमर्रा के कई देसी नाश्ते भी इसी श्रेणी में आ सकते हैं. समोसा, भजिया, पकौड़े, कचौड़ी और जलेबी जैसे खाद्य पदार्थ भी फास्ट फूड हैं क्योंकि इन्हें डीप फ्राई किया जाता है और इनमें मैदा, रिफाइंड तेल व चीनी की मात्रा बहुत अधिक होती है.'
'ऐसे फूड्स शरीर को तुरंत एनर्जी तो देते हैं लेकिन यह एनर्जी थोड़े समय की होती है और इसके बदले शरीर में चर्बी, कोलेस्ट्रॉल और शुगर बढ़ने का खतरा रहता है. लगातार इनका सेवन करने से मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़, फैटी लिवर और दिल की बीमारियों का जोखिम बढ़ सकता है.'
2015 के एक रिव्यू के मुताबिक, आजकल कई फास्ट फूड रेस्टोरेंट हर आइटम में मौजूद कैलोरीज बताते हैं लेकिन ये नहीं बताते कि वो हेल्दी है या नहीं. फास्ट फूड आमतौर पर पोषण के मामले में खराब ही होते हैं.
ऑफिस ऑफ डिजीज प्रिवेंशन एंड हेल्थ प्रमोशन का कहना है, हर तरह का फास्ट फूड नुकसान नहीं पहुंचाता. कोई भी व्यक्ति फास्ट फूड आइटम के न्यूट्रिशनल कंटेंट पर रिसर्च करके सोच-समझकर सिलेक्ट कर सकता है.
इंडियन फास्ट फूड इंडस्ट्री के मुताबिक, वेस्टर्न आइटम्स जैसे बर्गर-पिज्जा के साथ-साथ भारतीय स्ट्रीट फूड जैसे समोसा, भजिया, जलेबी, कचौरी और चाट भी फास्ट फूड में शामिल हैं क्योंकि ये डीप फ्राइड होते हैं और रिफाइंड तेल में ट्रांस फैट भरपूर होता है. एक समोसा में 17-28 ग्राम तक फैट हो सकता है. हाई-ट्रांस फैट से हार्ट डिजीज, मोटापा और डायबिटीज का खतरा बढ़ाते हैं.
डॉ. संचयन रॉय कहना है, 'बच्चों और युवाओं में फास्ट फूड खाने की आदत आगे चलकर गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती है. समोसा या जलेबी कभी-कभार खाना नुकसानदेह नहीं है, लेकिन इन्हें रोज़मर्रा के खाने का हिस्सा बना लेना सही नहीं है. बेहतर है कि घर का ताजा, संतुलित और कम तेल-मसाले वाला भोजन खाया जाए, जैसे दाल, सब्ज़ी, फल, सलाद और साबुत अनाज. स्वाद के साथ-साथ सेहत का ध्यान रखना ही समझदारी है, क्योंकि आज की छोटी लापरवाही कल की बड़ी बीमारी बन सकती है.'
रिसर्च से साबित हुआ है कि हाई-फैट फास्ट फूड आंतों की परमीयबिलिटी बढ़ाते हैं जिससे बैक्टीरिया का रिसाव होता है और सूजन पैदा होती है. अहाना के केस में डॉक्टरों ने आंतों में संक्रमण, छेद और उनका आपस में चिपकना बताया जो लगातार प्रोसेस्ड फूड से आंतों की दीवारों को कमजोर होने का परिणाम था. हाई-फैट डाइट से आंतों की टाइट जंक्शन्स डैमेज हो जाते हैं, लिपोपॉलीसैकेराइड (LPS) बढ़ता है जो इम्यून सिस्टम को ट्रिगर कर क्रॉनिक इंफ्लेमेशन का कारण बनता है.
2011 में अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन में पब्लिश रिसर्च के मुताबिक, जिन हेल्दी लोगों ने लगातार 5 दिनों तक फास्ट फूड या जंक फूड खाया था उन्होंने फोकस (Attention), स्पीड (Speed) और मूड को मापने वाले कॉग्नेटिव टेस्ट में खराब परफॉर्मेंस दी थी. इस रिसर्च से निष्कर्ष निकालता है कि रोजाना फास्ट फूड खाने से याददाश्त कमजोर हो सकती है, मेटाबॉलिक डिसऑर्डर का जोखिम बढ़ाता है, बढ़ते बच्चों की ग्रोथ में रुकावट पैदा करता है और कब्ज एवं गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (पेट से संबंधित) बीमारियों जैसी समस्याओं को जन्म देता है.
PubMed का कहना है, ट्रांस फैट्स से एंडोथीलियम (ब्लड वेसिल्स की अंदरुनी परत) डैमेज होती है, LDL कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है और HDL घटता है जिससे हार्ट अटैक, स्ट्रोक और लीवर डैमेज का जोखिम 28-34 प्रतिशत तक बढ़ जाता है. भारतीय स्ट्रीट फूड में रीयूज्ड ऑयल से वेजिटेबल और सैचुरेटेड फैट्स बनते हैं जो मोटापा, हाइपरटेंशन और कैंसर से जुड़े हैं. वयस्कों में ये हार्मोनल असंतुलन भी पैदा करते हैं जैसा कि WHO और ICMR की रिपोर्ट्स में भी बताया गया है.
2023 में संसद में स्वास्थ्य मंत्री मनसुख वाडिया ने कहा था, 'अनुमान है कि हर साल लगभग 540,000 मौतें इंडस्ट्रियल तरीके से बनाए गए ट्रांस-फैटी एसिड के सेवन के कारण होती हैं. ज़्यादा ट्रांस फैट के सेवन से किसी भी कारण से मौत का खतरा 34 प्रतिशत और कोरोन हार्ट डिजीज से मौत का खतरा 28% बढ़ सकता है. ऐसा शायद लिपिड लेवल पर पड़ने वाले असर के कारण होता है: ट्रांस फैट LDL (लो-डेंसिटी लिपोप्रोटीन) या खराब कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ाता है, जबकि HDL (हाई-डेंसिटी लिपोप्रोटीन) या अच्छे कोलेस्ट्रॉल का लेवल कम करता है.'
भारत में फास्ट फूड और जंक फूड से सीधे जुड़ी मौतों का आंकड़ा ट्रांस फैट्स (जो इनमें प्रमुख होते हैं) से जुड़ा है, क्योंकि ये हृदय रोगों का मुख्य कारण बनते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और FSSAI की रिपोर्ट्स के अनुसार, ट्रांस फैट्स से भारत में प्रति वर्ष 60,000 से 77,000 मौतें होती हैं, जो वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक है
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन और FSSAI के अनुसार, ट्रांस फैटी एसिड के सेवन से हर साल दुनिया भर में लगभग 5.4 लाख मौतें होती हैं जिनमें से भारत में इसके सबसे अधिक मामले होते हैं.
ICMR की 2024 रिपोर्ट बताती है कि 56.4 प्रतिशत बीमारी बोझ (DALYs) अनहेल्दी डाइट से आता है जिसमें जंक फूड मुख्य है और ये मोटापा, डायबिटीज और हृदय रोगों को बढ़ावा देता है.
WHO के अनुसार, भारत में 60,000 से अधिक मौतें ट्रांस फैट्स से कोरोनरी हार्ट डिजीज (CHD) के कारण, जहां 2 प्रतिशत कैलोरी ट्रांस फैट से आने पर CHD में 23 प्रतिशत वृद्धि होती है.
अहाना की ट्रेजडी चेतावनी है कि फास्ट फूड धीमा जहर है. भारत में फास्ट फूड और जंक फूड से सीधे जुड़ी मौतों का आंकड़ा ट्रांस फैट्स से जुड़ा है जो फास्ट फूड में काफी अधिक होता है. इसलिए पैरेन्ट्स बच्चों को घर का खाना खिलाने पर जोर दें और बाहर के खाने को सीमित करें. एक्सपर्ट्स सलाह देते हैं कि एयर-फ्राइड विकल्प या फल-सब्जी स्नैक्स चुनें ताकि ये 'साइलेंट हेल्थ एपिडेमिक' न फैले,
मृदुल राजपूत