डिजीज X, वो बीमारी जिसके कहर को लेकर WHO भी घबराया हुआ है

Covid के बाद अगली महामारी Disease X हो सकती है. World Health Organization भविष्य की जानलेवा बीमारियों की जो लिस्ट तैयार कर रहा है, उसमें ये बीमारी सबसे ऊपर है. ये जितनी संक्रामक होगी, उतनी ही जानलेवा भी. इबोला की खोज का हिस्सा रह चुके वैज्ञानिकों ने माना कि इसमें मृत्युदर Ebola virus से भी ज्यादा हो सकती है.

Advertisement
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन फ्यूचर पेंडेमिक की सूची बना रहा है (Pixabay) वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन फ्यूचर पेंडेमिक की सूची बना रहा है (Pixabay)

मृदुलिका झा

  • नई दिल्ली,
  • 24 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 4:06 PM IST

चीन में एक बार फिर कोरोना के मामले बढ़ने लगे हैं. बीजिंग समेत कई बड़े शहरों में लॉकडाउन लग चुका. जनजीवन बुरी तरह अस्त-व्यस्त है. दो साल तक बाकी दुनिया में भी तांडव मचा चुकी इस महामारी का अब तक खात्मा भी नहीं हुआ कि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) की नई रिपोर्ट डराने लगी. ये भविष्य में इंसानों पर हमला कर सकने वाली बीमारियों की लिस्ट बना रहा है, जिसमें कई दूसरी जानी-पहचानी महामारियों के बीच डिजीज X सबसे खतरनाक है. 

Advertisement

नाम से ही डरावनी लगती इस बीमारी के बारे में जानने से पहले ये समझते हैं कि क्यों WHO बीमारी पैदा कर सकने वाले वायरस-बैक्टीरिया की लिस्ट बनाता है. ये इसलिए है ताकि देश मिलकर इनपर रिसर्च कर सकें और बचाव के उपाय आजमा सकें. जिस तरह से हर सौ सालों में एक बड़ी महामारी आकर दुनिया को तितर-बितर कर जाती है, उसमें ये एक बड़ी जरूरत है. याद दिला दें कि अब से एक सदी पहले भी स्पेनिश फ्लू नाम की बीमारी आई थी, जिसमें करोड़ों जानें गईं. 

डिजीज X नाम की बीमारी कहां से आएगी, कैसी होगी, फिलहाल साइंटिस्ट इस बारे में कुछ नहीं जानते- प्रतीकात्मक फोटो (Pixabay)

कोविड का दूसरा झटका आया ही था, कि तभी डिजीज X की बात होने लगी. साल 2021 में वैज्ञानिकों ने माना कि ये फ्यूचर बीमारी इबोला से भी ज्यादा जानलेवा हो सकती है. बता दें कि आमतौर पर पश्चिमी अफ्रीका में दिखने वाली इस वायरल बीमारी से ग्रस्त लगभग 80 प्रतिशत मरीजों की जान चली जाती है.

Advertisement

इबोला वायरस की खोज में अहम हिस्सा निभा चुके वैज्ञानिक जीन जैक्यू ने ही डिजीज X को लेकर भी आगाह किया. उनका मानना है कि डिजीज X यानी वो बीमारी, जिसके बारे में कोई कुछ नहीं जानता. ये किससे होगी, किस देश से शुरुआत होगी और कैसे खात्मा होगा. X के मायने हैं, जिसकी उम्मीद न हो. 

इबोला का अब तक इलाज नहीं खोजा जा सका है- प्रतीकात्मक फोटो (Pixabay)

WHO ने भी कोविड से पहले ही डिजीज X की बात कही थी. जेनेवा में आने वाली महामारियों पर काम की ब्लू प्रिंट तैयार करते हुए ऐसे रोगों पर चर्चा हुआ, जिनका ओर-छोर भी फिलहाल वैज्ञानिकों को नहीं पता. इसके लगभग दो साल के भीतर कोविड आ गया. तब भी परेशान वैज्ञानिकों ने माना था कि कोविड भी डिजीज X की श्रेणी में खड़ी बीमारी है, जिससे मुकाबला मुश्किल है. वैसे इसके तुरंत बाद ही देशों ने वैक्सीन तैयार कर ली और महामारी की रफ्तार और तीव्रता दोनों कम हुई. 

कुछ महीने पहले ही कांगों के इंगेडे क्षेत्र में रहस्यमयी बुखार के साथ एक मरीज पहुंचा. उसे रक्तस्त्राव भी हो रहा था. पहले तो स्थानीय डॉक्टरों ने केस को इबोला समझा लेकिन टेस्ट निगेटिव आने के बाद समझ आया कि ये कोई दूसरी ही बीमारी है. आइसोलेशन में रखे गए मरीज के बारे में इससे ज्यादा कोई जानकारी नहीं मिल सकी, ये भी नहीं कि वो जीवित है, या नहीं. 

Advertisement
बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियों में एक समय के बाद रेजिस्टेंट पैदा हो जाता है- प्रतीकात्मक फोटो (Pixabay)

ये भी संभव है डिजीज X की शुरुआत इंसानों से न होकर, पशु-पक्षियों से हो. ये पैटर्न कई बीमारियों में दिख चुका है. जैसे कंस्पिरेसी के बावजूद कोविड के मामले में ज्यादातर देश मानते हैं कि ये चमगादड़ों से आई बीमारी है. इसी तरह से सार्स और मर्स भी जानवरों से आए. यहां तक कि एड्स जैसी लाइलाज बीमारी भी संक्रमित चिंपाजी से इंसानों तक पहुंची. यलो फीवर भी साल 1901 में पशुओं से हम तक पहुंचा. इसके बाद से रेबीज, लाइम डिजीज जैसी लगभग 2 सौ बीमारियां हैं, जो संक्रमित पशु-पक्षियों से इंसानों तक आईं. 

फिलहाल जिसके बारे में किसी को कुछ नहीं पता, उस बीमारी यानी डिजीज X को फ्यूचर पेंडेमिक की लिस्ट में सबसे ऊपर माना जा रहा है. दुनिया के 300 से भी ज्यादा वैज्ञानिक 25 से ज्यादा वायरस और बैक्टीरिया को इस श्रेणी में रखेंगे, जिनकी जानकारी नहीं के बराबर है. 

फिलहाल 25 से ज्यादा वायरस और बैक्टीरिया को लेकर रिसर्च एंड डेवलपमेंट शुरू हो सकता है- प्रतीकात्मक फोटो (Pixabay)

यहां ये जानना जरूरी है कि वायरस से होने वाली बीमारियां भले ही ज्यादा खतरनाक हों, लेकिन बैक्टीरिया भी कम जानलेवा नहीं. पूरी दुनिया में जितने लोग विषाणुजन्य बीमारियों से मरते हैं, उससे कहीं ज्यादा बैक्टीरिया के कारण मारे जाते हैं.

Advertisement

इसकी एक वजह ये है कि किसी पर बैक्टीरियल अटैक के बाद उसे ठीक करने के लिए जो एंटीबायोटिक मिलती है, वो धीरे-धीरे बैक्टीरिया पर कम असर करने लगती है. एक समय वो आता है कि एंटीबायोटिक की स्पेसिफिक डोज का बैक्टीरिया पर असर ही नहीं होता. ये एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement