सेना प्रमुख बोले- मैं किसी से लड़ता नहीं, पर युद्ध हुआ तो तीनों सेनाएं 1971 जैसा हाल करेंगी

सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकंद नरवणे (Army Chief Gen MM Naravane) ने कहा 1971 के युद्ध के समय मैं सिर्फ 11 साल का था. इसलिए युद्ध में नहीं था. वैसे भी मैं किसी से लड़ता नहीं हूं. लेकिन भविष्य में युद्ध हुआ तो तीनों भारतीय सेनाएं 1971 जैसा हाल कर देंगी. जनरल नरवणे एजेंडा आजतक के सेशन 'सबसे बड़ी जीत के 50 साल' में बोल रहे थे. 3 दिसंबर 1971 को ही भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान से जीत हासिल की थी.

Advertisement
एजेंडा आजतक में 1971 के युद्ध की कहानियां शेयर करते सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे. (फोटोः राजवंत रावत) एजेंडा आजतक में 1971 के युद्ध की कहानियां शेयर करते सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे. (फोटोः राजवंत रावत)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 03 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 6:20 PM IST
  • 71 के युद्ध के समय मेरी उम्र 11 साल थीः सेना प्रमुख
  • देशवासियों के जज्बे की वजह से हम सीमा पर खड़े रह पाते हैं.
  • करगिल में भी देश के लोगों ने सेना का बहुत सपोर्ट किया.

सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकंद नरवणे (Army Chief Gen MM Naravane) ने कहा 1971 के युद्ध के समय मैं सिर्फ 11 साल का था. इसलिए युद्ध में नहीं था. वैसे भी मैं किसी से लड़ता नहीं हूं. लेकिन भविष्य में युद्ध हुआ तो तीनों भारतीय सेनाएं 1971 जैसा हाल कर देंगी. जनरल नरवणे एजेंडा आजतक के सेशन 'सबसे बड़ी जीत के 50 साल' में बोल रहे थे. ये सेशन 1971 में पाकिस्तान पर हासिल जीत पर रखा गया था. 3 दिसंबर 1971 को ही भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान से जीत हासिल की थी.

Advertisement

जनरल नरवणे ने बताया कि 1971 के युद्ध के समय मेरे पिता जी दिल्ली में तैनात थे. हम वसंत बिहार में रहते थे. हमें बताया गया था कि युद्ध की तैयारी करें. हमने खिड़कियों पर काले कागज लगवाए थे. जब सायरन बजता था तब वो जरूरी निर्देशों का पालन करते थे. हम भी चेक करने वाली टीम में शामिल होकर ये देखते थे कोई इस आदेश का पालन कर रहा है या नहीं. डंडा लेकर हर दरवाजे को पीटते थे या चेक करते थे. तब ये नहीं सोचा था कि मैं सेनाध्यक्ष बनूंगा.

सेना प्रमुख बोले- 1971 के युद्ध के समय बांग्लादेश के लोगों ने भी जीत में दिलाई थी मदद. (फोटोः चंद्रदीप कुमार)

9 साल बाद सेना में शामिल हुआ, तब पता चला हम तो लिविंग हिस्ट्री जी रहे हैं

जनरल नरवणे ने कहा कि 1971 के 9 साल बाद मैं सेना में शामिल हुआ. सेकेंड लेफ्टिनेंट बना. भर्ती के बाद सैनिकों और यंग ऑफिसर्स को एक डाइजेस्ट पढ़ने को दी जाती है. मैंने भी पढ़ी. उसमें 1971 की लड़ाई के बारे में कई सारे पन्ने थे. एक बात साफ समझ में आई कि मार्च-अप्रैल 1971 से ही सबको पता था कि युद्ध होने वाला है. तैयारियां कैसी चल रही हैं. ट्रेनिंग पर जोर दिया जा रहा था. उस डाइजेस्ट में सबकुछ लिखा है. उन पन्नों से ये लग रहा था कि अब क्या होने वाला है. उन ऑफिसर्स के नाम थे जो उस लड़ाई में हिस्सा थे. उनकी कहानियां थीं. वो जब हम पढ़ते थे तो हमें लगता था कि हम उस लड़ाई का हिस्सा थे. हमारे साथ तो लिविंग हिस्ट्री थी. 

Advertisement

1971 का युद्ध टेस्ट से वनडे में बदल गया था, अब तो टी-20 होता है

हमारी तीनों सेनाओं ने मिलकर 1971 में विजय हासिल की थी. हम सब एक साथ थे. सिनर्जी पूरी थी. इसलिए हमें ये शानदार जीत मिली. अगर कभी भविष्य में युद्ध होता है तो हम तीनों सेनाएं मिलकर इसी तरह की कामयाबी हासिल करेंगे. 1971 को 50 साल हो गए. इतने सालों में कई बदलाव आए हैं. पहले के युद्ध और अब के युद्ध में अंतर आ गया है. अब युद्ध टेस्ट मैच जैसा नहीं रहा, ये टी-20 हो गया है. उस समय पहले से तैयारी करने का मौका मिला था. लेकिन अब तैयारी के लिए मौका नहीं मिलेगा. हमें हमेशा तैयार रहना होगा. 

भारतीय सेना अब टेक्नोलॉजी ओरिएंटेड सेना है, हमारे देश के लोगों का जज्बा ऊंचा है

हमें टैक्टिक्स, टेक्नीक और प्रोसीजर में बदलाव लाना होगा. पिछले 50 सालों में टेक्नोलॉजी बहुत बढ़ गई है. बड़े पैमाने पर फौज में आ गई है. हमें टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना होगा ताकि हम और कारगर हो सकें. मैं अभी नोट्स मोबाइल पर पढ़ रहा हूं. पहले मैं चार पांच पन्ने लेकर पढ़ता था. टेक्नोलॉजी ओरिएंटेड सेना है हमारी.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement