11 साल की उम्र में पहली बार अष्टमी के दिन पहनी थी साड़ी, अनुपमा फेम रुपाली ने शेयर की यादें

टीवी शो अनुपमा फेम रुपाली गांगूली चाहे कितनी भी व्यस्त रहें लेकिन उनकी हमेशा से यही कोशिश रही है कि दुर्गा पूजा के मौके पर वे पंडाल जाकर पुष्पांजली जरूर देकर आएं. इस साल भी रुपाली ने अष्टमी और नवमी के दिन काम से ब्रेक लेकर फेस्टिवल सेलिब्रेट करने का प्लान किया है. रुपाली हमसे बातचीत कर पुराने दिनों के दुर्गा पूजा की यादों को शेयर करती हैं.

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रुपाली गांगूली रुपाली गांगूली

नेहा वर्मा

  • मुंबई,
  • 13 अक्टूबर 2021,
  • अपडेटेड 11:57 AM IST
  • रुपाली गांगूली ऐसे सेलिब्रेट कर रही हैं दुर्गा पूजा
  • 11 साल में पहली बार पहनी थी साड़ी

दुर्गा पूजा का जिक्र करते ही हर बंगाली इमोशनल हो जाता है. पूजा की एक्साइटमेंट तो शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है. इसका जिक्र करते ही आप हर बंगाली की आंखों में एक अलग किस्म का चमक देखेंगी... ये कहते हुई रुपाली गांगूली इमोशनल हो जाती हैं. 

अनुपमा शो में शूटिंग की व्यस्तता के बावजूद रूपाली ने इस साल दुर्गा पूजा के लिए दो दिन अष्टमी और नवमी के लिए छुट्टी ली है. इस साल रुपाली के लिए दुर्गा पूजा बेहद खास भी है. आखिर क्या है स्पेशल इसपर उन्होंने आजतक डॉट इन से एक्सक्लूसिव बातचीत के दौरान बताया है. 

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अष्टमी की पुष्पांजली के लिए स्कूल से लेती थी छुट्टी

दुर्गा पूजा से जुड़ी यादों का पिटारा लेकर बैठ जाऊं, तो बहुत सी ऐसी यादें हैं, जो जेहन में आज भी ताजा है. दुर्गा पूजा हमेशा से स्पेशल रहा है, सप्तमी से ही हमारे दुर्गा पूजा की शुरूआत हो जाती थी. अष्टमी पूजा हम सभी के लिए कंपलसरी हुआ करती थी. हम स्कूल से छुट्टी लेकर हम घर पर रहते थे. चाहे स्कूल में कुछ भी हो लेकिन अष्टमी की पुष्पांजली मिस नहीं होना चाहिए. हमारे बीच कुछ भी नहीं आ सकता था. पापा हमें पंडाल लेकर पुष्पांजली दिलवाया करते थे. 

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अष्टमी क दिन ही पहनी थी पहली बार साड़ी

मुझे याद है कि 11 साल की उम्र में अष्टमी के दिन पहली बार मैंने साड़ी पहनी थी. आपको पता है बंगाली फादर इन सब चीजों को लेकर कितने इमोशनल होते हैं. उस दिन पूरा परिवार इमोशनल था. भोग खिचड़ी खाना भी हमारे रूटीन का अहम हिस्सा होता था. भोग से ज्यादा टेस्टी आजतक मैंने किसी चीज को नहीं पाया है. 

शिवाजी पार्क में मारते थे अड्डा

शाम के वक्त हम दादर के शिवाजी पार्क में अड्डा मारते थे. चटाई घर से लेकर जाते थे और वहां बैठकर हम अपना टाइम पास करते थे. वो पिकनिक का माहौल होता था. यह बहुत अच्छा वक्त होता था, जब हम सभी एक दूसरे से मिलते और ढेर सारी बातें करते थे. अलग-अलग ग्रुप्स होते थे, पैरेंट्स के अलग ग्रुप, टीनएज बच्चे अलग कोने में. 

नवमी में पंडाल घूमना होता था कंपलसरी

पंडाल घूमना भी बंगाली के लिए कंपलसरी होता था. नवमी का दिन हमने पंडाल दर्शन के लिए रखा था. हर नवमी के दिन हम एक पंडाल से दूसरे पंडाल घुमा करते थे. खार, रामकृष्ण मिशन, मुखर्जी बाड़ी आदि जगहों में जाया करते थे.  

घर पर मिली सीख, दुर्गा की तरह बनो

मेरे पापा ने हमेशा मुझे क्वीन की तरह रखा है. हमेशा मुझसे कहा गया है कि मेरे अंदर शक्ति है, मैं चाहूं, तो जिंदगी में कुछ भी अचीव कर सकती हूं. मैं बचपन से ही स्ट्रॉन्ग रही हूं. मुझसे कहा जाता था कि दुर्गा की तरह बनो, चाहे कुछ भी हो जाए, गलत चीजों को मत स्वीकारों, हमेशा उसके लिए लड़ो जो आपको सही लगे. 

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