प्रद्युम्न की हत्या पर प्रसून की कविता पढ़कर आपकी आंखें हो जाएंगी नम

हरियाणा के गुड़गांव में रेयान इंटरनेशनल स्कूल के छात्र 7 साल के प्रद्युम्‍न की हत्‍या की घटना से पूरे देश में गुस्‍सा है. बॉलीवुड इंडस्ट्री कई स्टार्स ने इस घटना को लेकर दुख व्यक्त किया है. हाल ही में सेंसर बोर्ड के प्रमुख और गीतकार पसून जोशी ने भी घटना पर मार्मिक कविता लिखी है.

Advertisement
प्रद्युम्‍न प्रद्युम्‍न

अनुज कुमार शुक्ला

  • दिल्ली,
  • 12 सितंबर 2017,
  • अपडेटेड 5:28 PM IST

हरियाणा के गुड़गांव में रेयान इंटरनेशनल स्कूल के छात्र 7 साल के प्रद्युम्‍न की हत्‍या की घटना से पूरे देश में गुस्‍सा है. प्रद्युम्न दूसरी कक्षा का छात्र था. बस कंडक्‍टर ने कुकर्म की कोश‍िश नाकाम होने के बाद गला रेतकर मार डाला. बॉलीवुड के कई स्टार्स ने इस घटना पर दुख व्यक्त किया है.

सेंसर बोर्ड के प्रमुख और गीतकार पसून जोशी ने भी घटना पर मार्मिक कविता लिखी है. सोशल मीडिया में उनकी कविता वायरल हो गई है. इसे एक हजार से ज्यादा बार शेयर किया गया है. लोगों ने दोषी को कड़ी सजा देने की मांग की है. संजय दत्त ने भी प्रद्युम्न की हत्या का जिक्र करते हुए कहा, ये बेहद डरावना वक्त है. एक पिता के तौर पर वो खुद को लाचार महसूस करते हैं.

Advertisement

संजय दत्त ने कहा, 'यह डरावना है..मेरा मतलब बच्चे स्कूल में भी सुरक्षित नहीं हैं.. गुड़गांव (गुरुग्राम) में जो एक छोटी बच्चे के साथ हुआ वह किसी भी माता-पिता को डरा सकता है. जहां तक बच्चों की बात है तो हर किसी को बहुत सजग रहना होगा. बच्चों की सुरक्षा को लेकर यह माता-पिता के लिए डरावना समय है.'

 

प्रसून जोशी की कविता

जब बचपन तुम्हारी गोद में आने से कतराने लगे,

जब मां की कोख से झांकती जिंदगी,बाहर आने से घबराने लगे,

समझो कुछ गलत है

जब तलवारें फूलों पर जोर आजमाने लगें,

जब मासूम आंखों में खौफ नजर आने लगे,

समझो कुछ गलत है

जब ओस की बूंदों को हथेलियों पे नहीं,

हथियारों की नोंक पर थमना हो,

जब नन्हें-नन्हें तलुवों को आग से गुजरना हो,

समझो कुछ गलत है

Advertisement

जब किलकारियां सहम जायें

जब तोतली बोलियां खामोश हो जाएं

समझो कुछ गलत है

कुछ नहीं बहुत कुछ गलत है

क्योंकि जोर से बारिश होनी चाहिये थी

पूरी दुनिया मेंहर जगह टपकने चाहिये थे आंसू

रोना चाहिये था ऊपरवाले को

आसमान से फूट-फूट कर

शर्म से झुकनी चाहिये थीं इंसानी सभ्यता की गर्दनें

शोक नहीं सोच का वक्त है

मातम नहीं सवालों का वक्त है.

अगर इसके बाद भी सर उठा कर खड़ा हो सकता है इंसान

तो समझो कुछ गलत है.

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement