वरिष्ठ अभिनेता और निर्देशक शेखर सुमन ने माना कि अब समाज में ह्यूमर के लिए ज्यादा जगह नहीं बची. ऐसा लोगों के कम पढ़े लिखे होने की वजह से है. आजतक के मुंबई मंथन में एक सवाल पर अपनी बात रखते हुए शेखर ने कहा, "पहले समाज ज्यादा पढ़ा लिखा था. सभ्य थे. मैं जिस ठहराव की बात कर रहा हूं लोगों में वो था. इसीलिए शरद जोशीजी, हरिशंकर परसाई जी या राही साहब, जब भी इन्होंने लिखा या व्यंग्य का सहारा लिया या कटाक्ष किया लोगों ने सराहा."
सुमन ने कहा, "लेकिन अगर आज के दिन तो शायद वो कोर्ट में केसेस लड़ रहे होते कि आपने ये क्यों कहा. समाज पर ये टिप्पणी क्यों की. उनके बारे में तय क्यों कहा. मजहब के बारे में ये क्यों कहा. तो कहीं कहीं जब जेहिनियत समाज से गायब गायब हो जाती है तो फूहड़ता आ जाती है."
"जब लोग अनपढ़ होते हैं तो वो समझ नहीं पाते क्या बातें हो रही हैं. और फिर बगैर बात के उसका विरोध कर रहे होते हैं जो कहा जाता है फिर ह्यूमर की जगह ख़त्म हो जाती है."
मंगलवार को आजतक के मुंबई मंथन 2018 में 'कहां गया सेन्स ऑफ ह्यूमर' में शेखर सुमन ने ह्यूमर को लेकर और भी बातें कही. सत्र का संचालन निधि अस्थाना ने किया. इस दौरान महशूर कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव भी मौजूद रहे.
राजू ने कहा, "जैसे आजकल ट्रेंड चला है ओपन माइक का. इंग्लिश स्टैंडअप कॉमेडी का. जो इंग्लिश में कहते हैं उन्हें लगता है कि सबकुछ कह लेंगे. क्योंकि वो जो कह रहे हैं उसका लोग बुरा नहीं मानेंगे."
सुमन ने कहा, "सामाजिक दायरे में सभ्यता के दायरे में रहना बेहद जरूरी है. अहम है. और उसमें ह्यूमर भी एक ऐसी चीज है जिसे जहां हम सब मिलकर एक दूसरे की बात समझ कर हंस सके वहीं ह्यूमर है. जब वो फूहड़ हो जाता है जहां लोगों को सुनने में शर्म आने लगती है तो उस दायरे से बाहर निकल जाती है."
सुमन ने कहा, "ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि यहां सोच इन्वाल्व नहीं है. और जहां सोच या अध्यात्म नहीं इन्वाल्व हो रहा है, ऐसी जगहों पर ह्यूमर फूहड़ हो ही जाएगा. यही वजह है कि कई लोग आज व्यापार के लिए इसका (ह्यूमर) इस्तेमाल कर रहे हैं. ये फूहड़ दौर है."
मोनिका गुप्ता