मोहम्मद रफी का नाम फिल्म इंडस्ट्री में बेहद सम्मान के साथ लिया जाता है. दुनिया उनकी गायकी की दीवानी है. रफी साहब को गुजरे भले ही कई दशक बीत गए हैं मगर उनके संगीत का असर आज की पीढ़ी तक जिंदा है. लोग रफी साहब के गाने शिद्दत से सुनते हैं. रफी ने हर एक मिजाज के गानों को बेहद खूबसूरती से गाया. वे स्वाभाव से भी काफी सरल थे. वे धर्म और मजहब से ऊपर इंसानियत के कद्रदार थे. तभी उन्होंने दुनियाभर में कंसर्ट्स किए और हर भाषा में गाने गाए. उन्होंने कई सारे भजन भी गाए जो आज भी हमें सुकून से भर देते हैं.
एक मुसलमान होने के बाद भी हिंदू धर्म के देवी-देवताओं के भक्ति सॉन्ग गाना स्वाभाविक तौर पर किसी भी मुस्लिम के लिए आम बात नहीं. मगर इसके बावजूद जब भी म्यूजिक डायरेक्टर रफी साहब के पास कोई भक्ति सॉन्ग लेकर गए उन्होंने गहरे इमोशन्स के साथ उन गानों को गाया और उनके साथ इंसाफ किया. रफी ने 1970 में आई, गोपी फिल्म में सुख के सब साथी गीत गाया था. इसके अलावा बैजू बावरा फिल्म में मन तड़पत हरि दर्शन को आज, मधुमती में मधुबन में राधिका नाचे रे, वक्त फिल्म में बड़ी देर भाई नंदलाला, सुहाग फिल्म में ओ शेरोवाली और ब्लफमास्टर फिल्म से गोविंदा आला रे जैसे भजन गाए जो आज भी बहुत पॉपुलर हैं. उन्होंने कई सारी गुर्बानियां और सुफी सॉन्ग भी गाए.
रफी अपने धर्म को पूरी सच्चाई से निभाते थे. वे हर वक्त की नमाज पढ़ते थे. एक समय तो ऐसा भी आ गया था जब रफी साहब ने इस्लाम के लिए सिंगिंग भी छोड़ दी थी. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक जब मोहम्मद रफी हज करने गए थे तो वहां से लौटने के बाद उन्होंने अचानक फिल्मी दुनिया छोड़ने का फैसला कर लिया था. मोहम्मद रफी के बेटे शाहिद रफी ने बीबीसी को बताया कि रफी साहब ने इस्लाम की बात पर एक बार फिल्मों में गाना बंद कर दिया था. लेकिन अल्लाह का शुक्र था कि उन्होंने कुछ समय बाद अपने फ़ैसले को बदल दिया और सभी ने राहत की सांस ली. रफी साहब का जन्म 24 दिसंबर, 1924 को हुआ था. जबकि 31 जुलाई, 1980 को उनका निधन हो गया.
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