हिंदी को महारानी न बना कर रखें, सपनों की भाषा है इसे पढ़ें: आशुतोष राणा

आशुतोष राणा ने साहित्य आजतक 2018 में अपनी किताब के बारे में बातचीत की और कई कविताओं का पाठ किया. इस दौरान उन्होंने अपनी व्यक्तिगत लाइफ के बारे में भी कई जानकारियां साझा की.

Advertisement
आशुतोष राणा आशुतोष राणा

पुनीत पाराशर

  • नई दिल्ली,
  • 18 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 8:02 PM IST

साहित्य आजतक 2018 के मंच पर एक्टर आशुतोष राणा शिरकत करने पहुंचे. हिंदी को प्रोत्साहित करने को लेकर उन्होंने कहा- "मेरी किताब तो भइया बेस्ट सेलर हो गई है, लेकिन बार-बार मैं सुनता हूं कि हिंदी की बड़ी दुर्गति है. हिंदी क्यों नहीं बोली जाती? जबकि हिंदी हमारे काम काज की भाषा नहीं होगी ये हमारे अपनों की भाषा है ये हमारे सपनों की भाषा है. हमारे राज्य की भाषा है हमारे राष्ट्र की भाषा है."

Advertisement

"इस भाषा को महारानी बना कर न रखें, इसे राजधानी बना कर न रखें कि 15 दिन का हमने पखवाड़ा बनाया और अपने-अपने काम हम अंग्रेजी में करने लगे. मेरा आपसे निवेदन है कि हिंदी पढ़ें, हिंदी की किताबें खरीदें. क्योंकि यदि आप हिंदी की किताबें खरीदेंगे तो हिंदी के प्रकाशक बढेंगे."

आशुतोष ने कहा, "खुद की भाषा में देखा गया सपना किसी दूसरे की भाषा से मिली हकीकत से कहीं अधिक कल्याणकारी होता है. तो यदि हम और आप अपनी भाषा तो थोड़ा रुतबा देंगे तो पाएंगे कि संग्राहक नहीं सृजक हो गए हैं."

आज तक की सीनियर जर्नलिस्ट श्वेता सिंह से बातचीत में आशुतोष ने हाल ही में आई अपनी बेस्ट सेलर बुक पर भी बात की. सेशन की शुरुआत उन्होंने अपनी किताब के व्यंग्य 'चित्त और वित्त' से की. व्यंग्य पाठन के दौरान कहा- "क‍िसी के चित्त में जगह बनानी हो तो उसका वित्त फंसा लो. चित्त के संबंध चलें न चलें, लेकिन वित्त के जरूर चलते हैं. वित्त में चित्त का वास होता है. नवंबर का महीना वित्त के लिहाज से कोई नहीं भूल सकता."

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement