उजड़ते कोठे, खत्म होती तवायफें... 'हीरामंडियों' से आईं टैलेंटेड महिलाओं ने फिल्म इंडस्ट्री बनाने में निभाया बड़ा रोल

1947 में देश की आजादी (और बंटवारे) से पहले तक फिल्मों का कारोबार इतना पसर चुका था कि इसे बाकायदा फिल्म इंडस्ट्री कहा जा सके. इस इंडस्ट्री के शुरुआती हिस्से में बहुत सी हुनरमंद महिलाओं ने इसे आगे बढ़ाया, जो तवायफ कल्चर की विरासत अपने साथ सहेजकर लाई थीं.

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बिब्बो और निग्गो बिब्बो और निग्गो

सुबोध मिश्रा

  • नई दिल्ली ,
  • 27 मई 2024,
  • अपडेटेड 4:30 PM IST

संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज 'हीरामंडी' रिलीज होने के बाद से, 'तवायफ' शब्द पर लोगों का काफी अटेंशन है. इस शब्द से जुड़े नेगेटिव-पॉजिटिव, सभी तरह के अर्थ और व्याख्याएं सोशल मीडिया बहसों का हिस्सा बन चुके हैं. मगर जिस एक चीज पर अक्सर बहुत कम ध्यान जाता है, वो है तवायफ कल्चर से निकलीं टैलेंटेड महिलाएं और फिल्म इंडस्ट्री की शुरुआत में उनके हुनर का रोल. 

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1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम को कुचलने में कामयाब हो चुके अंग्रेजों ने नवाबों और रियासतों पर लगाम लगानी शुरू की. कद्रदान कमजोर हुए तो कोठे और तवायफों पर भी असर पड़ा. पैसे वालों और रईसों के बिना, कोठे, जो कभी संगीत और नृत्य के जीवंत केंद्र थे, धीरे-धीरे बदनाम होते गए. 20वीं सदी की शुरुआत से ही कोठे दम तोड़ने लगे थे. जो कभी शाही रुतबे वाली तवायफें थीं, उन्हें अब अपनी जिंदगी चलाने के लिए नए रास्ते तलाशने थे. और कोठों से निकली कई टैलेंटेड महिलाओं को अपने हुनर के साथ एक नई जिंदगी का मौका दिया फिल्मों ने. 

1913 में पहली भारतीय फिल्म, दादासाहब फाल्के की 'राजा हरीशचंद्र' रिलीज हुई. सिनेमा के देश में पैर पसारने शुरू किए और 1947 में देश की आजादी (और बंटवारे) से पहले तक फिल्मों का कारोबार इतना पसर चुका था कि इसे बाकायदा फिल्म इंडस्ट्री कहा जा सके. इस इंडस्ट्री के शुरुआती हिस्से में बहुत सी हुनरमंद महिलाओं ने इसे आगे बढ़ाया, जो तवायफ कल्चर की विरासत अपने साथ सहेजकर लाई थीं. आपको बताते हैं ऐसी ही कुछ महिलाओं के बारे में:

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फातमा बेगम 
इंडियन सिनेमा की पहली फीमेल डायरेक्टर कही जाने वालीं फातमा बेगम को कथित रूप से, सचिन रियासत के नवाबजादे सिदी मोहम्मद यकूत खान की पत्नी बताया जाता रहा है. मगर वो असल में एक तवायफ परिवार से आती थीं, और नवाब से उनका रिश्ता लंबा चला था. 

फातमा बेगम

1922 में एक्टिंग डेब्यू करने वालीं फातमा बेगम ने, 1926 में अपना प्रोडक्शन हाउस शुरू कर दिया था. 1926में ही उन्होंने 'बुलबुल-ए-परिस्तान' डायरेक्ट की और पहली फीमेल डायरेक्टर बनीं. उनकी फिल्मों ने ट्रिक फोटोग्राफी से स्पेशल इफेक्ट्स दिखानी की शुरुआत की. अपने प्रोडक्शन के अलावा वो अपने जमाने के बड़े स्टूडियोज कोहिनूर स्टूडियो और इम्पीरियल स्टूडियोज के लिए एक्टिंग-डायरेक्शन-राइटिंग और प्रोडक्शन का काम भी देखती थीं.फातमा बेगम की बेटी जुबेदा, भारत की पहली टॉकी (आवाज वाली फिल्म) 'आलम आरा' में एक्ट्रेस थीं और साइलेंट फिल्मों की स्टार रहीं.  

जद्दनबाई 
हिंदुस्तानी सिनेमा की पहली फीमेल म्यूजिक डायरेक्टर कही जाने वालीं जद्दनबाई, 1892 में इलाहाबाद के एक कोठे पर ही पैदा हुई थीं. क्लासिकल संगीत की ट्रेनिंग से वो बेहतरीन गायक और अपनी मां, दलीपाबाई से भी मशहूर तवायफ बनीं. 1933 में जद्दनबाई ने एक्टिंग शुरू की और कुछ फिल्में करने के बाद उन्होंने 'संगीत फिल्म्स' नाम से अपना प्रोडक्शन हाउस शुरू कर दिया. इस कंपनी की पहली फिल्म 'तलाश-ए-हक' (1935) के लिए उन्होंने म्यूजिक भी कम्पोज किया, जिससे उन्हें अक्सर पहली फीमेल महिला म्यूजिक डायरेक्टर कहा जाता है. 

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जद्दनबाई

इसी फिल्म से जद्दनबाई ने बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट अपनी बेटी नरगिस को लॉन्च किया, जो आगे चलकर हिंदी फिल्मों की टॉप एक्ट्रेस बनीं. और नरगिस केबेते संजय दत्त आज भी जनता के फेवरेट एक्टर्स में से एक हैं. जद्दनबाई की फिल्म 'मैडम फैशन' से ही चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर सुरैया लॉन्च हुईं और उन्हें आज भी हिंदी की महानतम एक्ट्रेसेज में गिना जाता है. जद्दनबाई के बेटे अनवर हुसैन भी बाद के दौर में पॉपुलर एक्टर हुए और उन्होंने कई बड़ी फिल्मों में नेगेटिव किरदार निभाए. 

बिब्बो
इशरत सुल्ताना उर्फ बिब्बो इतनी खूबसूरत और पॉपुलर एक्ट्रेस थीं कि 1939 में आई फिल्म 'गरीब के लाल' में एक गाने में रफी कश्मीरी ने एक लाइन लिखी- 'तुझे बिब्बो कहूं या सुलोचना'. ये सुलोचना भी बिब्बो के ही दौर की एक और बेहद पॉपुलर एक्ट्रेस थीं. 

बिब्बो

दिल्ली में जन्मीं बिब्बो ने 1934 की फिल्म 'अदल-ए-जहांगीर' के लिए म्यूजिक कम्पोज किया था. टेक्निकली जद्दनबाई नहीं, बिब्बो भारत की पहली फीमेल म्यूजिक डायरेक्टर थीं. मगर शायद उनके पाकिस्तान जाने की वजह से, भारत के रिकॉर्ड में जद्दनबाई को पहली 'इंडियन' फीमेल कंपोजर गिना गया.

पहली इंडियन फिल्म 'आलम आरा' का हिस्सा रहीं बिब्बो ने आजादी से पहले करीब 40 फिल्में कीं और बंटवारे के बाद पाकिस्तान में भी 50 से ज्यादा फिल्मों में नजर आईं. 1930 के दशक में तो बिब्बो टॉप इंडियन एक्ट्रेसेज में से एक थीं. एक दिलचस्प फैक्ट ये भी है कि उन्होंने पाकिस्तान एक राष्ट्रपति रह चुके जुल्फिकार अली भुट्टो के पिता, शाहनवाज भुट्टो से शादी की थी.

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नसीम बानो 
रोशनारा बेगम उर्फ नसीम बानो दिल्ली की तवायफ कम्यूनिटी के एक परिवार में, 1916 पैदा हुई थीं. उनकी मां छमियां बाई इतनी मशहूर सिंगर थीं कि, अपने करियर के पीक पर 3500 रुपये सैलरी कमाने वालीं नसीम ने दावा किया था कि उनकी मां अब भी उनसे ज्यादा कमाती हैं. 1935 में नसीम बानो ने सोहराब मोदी की फिल्म 'खून का खून' से एक्टिंग डेब्यू किया था, जो अपने दौर के सबसे बड़े फिल्ममेकर्स में गिने जाते थे. 

नसीम बानो

तगड़ी जिद और भूख हड़ताल पर बैठकर अपनी मां को राजी करने के बाद उन्हें एक्टिंग करने की इजाजत मिली. और इस इजाजत का पूरा फायदा उन्होंने उठाया. नसीम बानो ने अपने करियर में 20 से ज्यादा फिल्में कीं और बड़े प्रोडक्शन्स में काम किया. उनकी 'पुकार', 'शीश महल' और 'चल चल रे नौजवान' अपने दौर की बहुत पॉपुलर फिल्में हैं, नसीम बानो की बेटी सायरा बानो ने भी एक्टिंग में कदम रखा और 60-70 के दशक में टॉप हिंदी एक्ट्रेसेज में से एक रहीं. 
 
निग्गो
लाहौर के हीरामंडी रेड लाइट एरिया में जन्मीं नरगिस बेगम उर्फ निग्गो के डांसिंग स्किल्स ने उन्हें एक्टिंग का मौका दिलवाया. पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री में ये आम बात थी कि फिल्ममेकर्स, हीरामंडी से अपनी फिल्मों के लिए टैलेंटेड लड़कियों को कास्ट करते थे. 

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निग्गो भी ऐसे ही आईं और उनकी पहली ही फिल्म 'इशरत' (1965) ने उन्हें दर्शकों और फिल्ममेकर्स का फेवरेट बना दिया. उन्होंने 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया और पाकिस्तानी फिल्मों की फेवरेट आइटम गर्ल रहीं. निग्गो ने तो हीरामंडी छोड़ी, मगर हीरामंडी ने उन्हें नहीं छोड़ा. 1972 में निग्गो ने अपनी फिल्म के प्रोड्यूसर ख्वाजा मजहर से शादी की. 

निग्गो

मगर हीरामंडी का ट्रेडिशन कहता था कि वहां की कोई लड़की तबतक बाहर शादी नहीं कर सकती, जबतक उन्हें इसके बदले मुआवजा न दिया जाए. सारी कोशिशें नाकाम होने के बाद निग्गो की मां ने बहाना बनाया कि वो बीमार हैं और एक आखिरी बार उनसे मिलना चाहती हैं. निग्गो गईं तो उन्हें हीरामंडी में रहने के लिए ही ब्रेनवाश कर दिया गया. 

इधर उनके न वापस आने से परेशान उनका पति गुस्से में हीरामंडी पहुंचा और उसने निग्गो पर, उनकी मां के घर में ही फायरिंग कर दी. निग्गो के मामा और दो म्यूजिशियन भी इस घटना में मारे गए. 

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