शमशाद बेगम: वो मुस्लिम सिंगर जिसने की हिंदू से शादी, गाए 6000 गाने

शमशाद बेगम सिंगर तो जबरदस्त थीं ही साथ में बहुत बिंदास भी थीं. तभी तो उस जमाने में ही उन्होंने मुस्लिम होकर भी एक हिंदू से शादी की. ये आज भी इतना आसान नहीं है और समाज की दृष्टि इसे कबूल कर पाने में पूरी तरह सहज नहीं हो पाई है. शमशाद ने जब गणपत से शादी की, वो तो बहुत पुराने समय की बात है.

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शमशाद बेगम शमशाद बेगम

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 14 अप्रैल 2021,
  • अपडेटेड 7:48 AM IST

बॉलीवुड इंडस्ट्री में सिंगिंग का जब जिक्र किया जाता है तो महिला वर्ग में लता मंगेशकर और आशा भोसले के इर्द-गिर्द भारतीय म्यूजिक इंडस्ट्री का इतिहास घूमता नजर आता है. ये दोनों निसंदेह हैं भी इतनी बड़ी शख्सियत. मगर इन दोनों सिंगर से जरा और पहले की बात करें तो कुछ नायाब नाम और भी हैं जो मौसिकी की दुनिया में मिलते हैं. उनमें से एक नाम है शमशाद बेगम. वो आवाज जिसने कई पीढ़ियों को राहत की बारिशों में सराबोर कर दिया. शमशाद बेगम सिंगर तो जबरदस्त थीं ही साथ में बहुत बिंदास भी थीं. तभी तो उस जमाने में ही उन्होंने मुस्लिम होकर भी एक हिंदू से शादी की. ये आज भी इतना आसान नहीं है और समाज की दृष्टि इसे कबूल कर पाने में पूरी तरह सहज नहीं हो पाई है. शमशाद ने जब गणपत से शादी की, वो तो बहुत पुराने समय की बात है.

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शमशाद बेगम का जन्म 14 अप्रैल, 1919 को अमृतसर में हुआ था. उनके टैलेंट को सबसे पहले उनकी प्रिंसिपल ने पहचाना था. 1924 में उन्होंने शमशाद की सुरीली आवाज सुनकर स्कूल की प्रेयर-हेड बना दिया. शुरुआत ऐसे ही होती है. उन्होंने संगीत की कोई फॉर्मल ट्रेनिंग तो ली नहीं थी. लेकिन जो भी उनका गाना सुनता, मंत्रमुग्ध हो जाता था. 13 साल की ही उम्र से ही शमशाद ने जीनोफोन रिकॉर्ड के लिए गाना शुरू कर दिया था. उन्होंने कुछ ही समय में इस कंपनी के लिए 200 गाने रिकॉर्ड कर लिए. ये अपने आप में बड़ी बात थी. सिंगर अपने समय की सबसे महंगी गायिका भी थीं. उन्हें हर गाने के लिए 12.50 रुपये मिलते थे. उस जमाने में ये रकम बहुत ज्यादा थी. बात 30s-40s की हो रही है.

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बता दें कि शमशाद बेगम ने 6000 गाने गाए हैं.

 

ऐसा है शमशाद की शादी का किस्सा?

शमशाद बेगम साल 1932 में गणपत से मिली थीं. उस जमाने में शादी छोटी उम्र में ही हो जाती थी. शमशाद के घर वाले भी उनके लिए लड़का ढूंढ रहे थे. लेकिन शमशाद जिससे प्यार करती थीं, जिसे पसंद करती थीं उसी से शादी भी करना चाहती थीं. 1934 में देश में हिंदू-मुसलमान दंगे हो रहे थे. लाहौर से लेकर अयोध्या नफरत में जल रहा था. पर शमशाद बेगम और गणपत लाल बट्टो को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. दो प्यार करने वालों को भला जमाने की फिक्र क्या. दोनों के घर वाले तक इस शादी के खिलाफ थे. हर तरफ इसकी चर्चा थी. लोग ताने मारना शुरू कर चुके थे. मगर अंत में जीत प्यार की ही हुई. दोनों ने शादी कर ली. 

बॉलीवुड करियर की बात करें तो देव आनंद की फिल्म सीआईडी में उन्होंने एक गाना गाया था. लेकर पहला पहला प्यार. श्रोताओं का भी शमशाद से ये पहला प्यार ही था जो हमेशा बरकरार रहा. शमशाद ने कभी आर कभी पार लागा तीर-ए-नजर, मेरे पिया गए रंगून, छोड़ बाबुल का घर, कजरा मोहब्बत वाला, सैंया दिल में आना रे, रेशमी सलवार कुर्ता जाली दा, और कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना जैसे गाने शामिल हैं. शमशाद के किसी भी गाने का प्रभाव इतना ज्यादा था कि वे आज भी सुनने में नए से लगते हैं और ऐसा लगता है की आनेवाली कई पीढ़ियां भी इन्हें हमेशा यूहीं नया रखेंगी. 

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