बॉलीवुड एक्टर आफताब शिवदासानी हाल ही में फिल्म 'मस्ती 4' में नजर आए. माना जा रहा था कि इस फिल्म से आफताब ने बॉलीवुड में 'कमबैक' किया है. इंडिया टुडे/आजतक से बातचीत में उन्होंने हंसकर इसे खारिज कर दिया. एक्टर का कहना है कि वे कभी गए ही नहीं थे. हिंदी सिनेमा में लगभग 26 साल और 64-65 फिल्में देने वाले इस एक्टर के लिए 'वापसी' जैसा शब्द कभी मायने नहीं रखता.
ब्रेक पर नहीं थे आफताब
बातचीत में आफताब ने कहा, 'मुझे वापसी का मतलब कभी समझ नहीं आया, क्योंकि मैं कहीं गया ही नहीं था. मैं यहीं था, सबके सामने था. कभी-कभी जो काम आप करना चाहते हैं, वह मिलता नहीं. हर एक्टर के पास ख्वाहिशों की एक लिस्ट और टिक करने वाले बॉक्स होते हैं. लेकिन कभी-कभी सब सही वक्त पर होता है, बस धैर्य रखना पड़ता है.'
वे मानते हैं कि धैर्य कुछ लोग रखते हैं, कुछ नहीं. एक्टर ने कहा, 'हममें से कुछ इंतजार करते हैं, कुछ नहीं करते. कुछ जल्दबाजी में फैसले ले लेते हैं, कुछ बस टिके रहने और इंतजार करने का फैसला करते हैं, और मैंने यही किया. मैं टिका रहा, इंतजार करता रहा और शुक्र है कि भगवान की कृपा से अब मेरे पास कुछ दिलचस्प फिल्में लाइन में हैं. उम्मीद है हम बार को और ऊंचा कर पाएंगे.'
आलोचना के बारे में पूछने पर आफताब बोले, 'न तारीफ को सीरियसली लेता हूं, न आलोचना को. मैं कुछ भी नहीं पढ़ता. वजह ये है कि इससे मेरा फोकस हट जाता है. मैं हमेशा अपने दर्शकों के लिए काम करता आया हूं, किसी और चीज के लिए नहीं.'
26 साल से इंडस्ट्री में कर रहे काम
लंबे करियर के बावजूद आफताब शिवदासानी का सफर ताजा लगता है. इसपर उन्होंने कहा, '26 साल और गिनती जारी है... करीब 64-65 फिल्में, लेकिन मुझे लगता है मेरा काम तो अभी शुरू भी नहीं हुआ. मुझे लगता है मैं पहली बार इंटरव्यू दे रहा हूं. हर पल नया पल है. हर दिन नया दिन है. कल को हम दोहरा नहीं सकते. इसलिए आज ही एकमात्र दिन है जो आपके पास है. मैं सिर्फ वर्तमान के लिए जीता हूं.'
कॉमेडी के बदलते स्वरूप पर एक्टर बोले, 'कॉमेडी सबसे मुश्किल जॉनर है. हाउसफुल, गोलमाल और धमाल इसलिए चलते हैं क्योंकि वो एक तरह की कॉमेडी है. फिर मस्ती जैसी एडल्ट कॉमेडी चलती है. सिचुएशनल कॉमेडी भी चलती है. एक सफल कॉमेडी फिल्म बनाने में स्क्रिप्ट, परफॉरमेंस, टाइमिंग, सब कुछ मायने रखता है. फिर सवाल ये कि हम सेट पर तो हंस रहे हैं, लेकिन दर्शक थिएटर में हंसेंगे भी या नहीं? हमारा मकसद हमेशा यही रहता है कि दर्शक थिएटर में हंसे, सिर्फ मॉनिटर के सामने क्रू न हंसे.'
ओटीटी बनाम थिएट्रिकल सफलता के मौजूदा डिबेट पर आफताब बिल्कुल साफ हैं. उनका कहना है- 'बॉक्स ऑफिस नंबर्स हमेशा सोचते हो, क्योंकि आखिरकार सफलता का पैमाना अभी भी बॉक्स ऑफिस ही है. ओटीटी हो या न हो, ये नहीं बदल सकता.' वे मानते हैं कि क्रिएटिव संतुष्टि अलग बात है, लेकिन कमर्शियल फेलियर में टैलेंट बर्बाद हो जाता है. आफताब ने कहा, 'मेरे साथ करियर में कई बार ऐसा हुआ है.'
ओटीटी बनाम थिएटर पर बोले आफताब
थिएट्रिकल और ओटीटी के बीच फर्क पर भी आफताब शिवदासानी ने बात की. वह बोले, 'अगर फिल्म थिएटर में नहीं चली लेकिन ओटीटी पर चल गई, तो अभी ये डिबेट है कि सफलता कैसे नापी जाए. ओटीटी प्लेटफॉर्म ही बता सकता है कि कितने व्यूज आए. कोई और तरीका नहीं है. दोनों साथ-साथ चलते हैं, लेकिन अलग-अलग माध्यम हैं.'
आफताब शिवदासानी ने ज्यादातर सिर्फ थिएट्रिकल फिल्में की हैं, इसलिए उनके लिए बॉक्स ऑफिस ही मुख्य पैमाना है. फिर भी वे ओटीटी की कमर्शियल ताकत को मानते हैं. उन्होंने बताया, 'मैंने केवल दो वेब शो किए हैं करियर में.' एक्टर ने आगे कहा, 'अगर कोई शो ओटीटी पर बहुत बड़ा हिट हो जाए तो आपको और ज्यादा ओटीटी ऑफर्स मिलेंगे और ज्यादा पैसे भी, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप सिनेमा के बड़े स्टार बन गए.'
कई एक्टर्स कहते हैं कि ओटीटी पर क्रिएटिव फ्रीडम ज्यादा है, लेकिन आफताब का मानना है कि मुख्य फर्क फॉर्मेट और लंबाई का है, न कि कलात्मक आजादी का. उन्होंने कहा, 'ओटीटी पर कई एपिसोड होते हैं, इसलिए कहानी को खोलने का वक्त मिलता है. फिल्म में सब कुछ दो घंटे में समेटना पड़ता है. बाकी एक्टिंग तो हर जगह एक ही होती है. जब तक आप कुछ बहुत गोर या बोल्ड न कर रहे हों जो सेंसर थिएटर के लिए रिजेक्ट कर दे. अब ओटीटी के भी अपने गाइडलाइंस हैं.' आफताब आगे 'वेलकम टू द जंगल' और 'कसूर' जैसी फिल्मों में नजर आएंगे. ये 2026 में रिलीज होंगी.
अनिता