Baberu Assembly Seat: कभी कांग्रेस-कम्युनिस्टों का रहा गढ़, BJP को 2 बार मिली जीत

कहा जाता है यहां एक बर्बर नाम के राजा रहा करते थे जिससे यहां का नाम बबेरू (Baberu) पड़ा था. बबेरू कस्बे में मढ़ी दाई मंदिर का अपना एक अलग इतिहास है तथा कमासिन में सिंहवाहिनी माता का प्रसिद्ध मंदिर है. जो यहां के लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है.

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बबेरू विधानसभा सीट पर पिछड़ी और अनुसूचित जाति के मतदाताओं का दबदबा बबेरू विधानसभा सीट पर पिछड़ी और अनुसूचित जाति के मतदाताओं का दबदबा

aajtak.in

  • बांदा,
  • 29 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 8:46 AM IST
  • बर्बर नाम के राजा के नाम पर पड़ा इस शहर का नाम
  • यहां पिछड़ी और अनुसूचित जाति के मतदाता सर्वाधिक
  • बीजेपी 1996 के बाद 2017 में ही जीत सकी है चुनाव

उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के अंतर्गत आने वाली बबेरू विधानसभा सीट मतदाताओं के लिहाज से बड़ी विधानसभा सीट है. बबेरू विधानसभा सीट की संख्या है 233. यह जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां की भाषा खड़ी बोली और क्षेत्रीय भाषा है. हालांकि इस विधानसभा में रेलमार्ग की कोई व्यवस्था नहीं है और ज्यादातर प्राइवेट बसों के सहारे आवागमन होता है. 

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कहा जाता है यहां एक बर्बर नाम के राजा रहा करते थे जिससे यहां का नाम बबेरू पड़ा था. बबेरू कस्बे में मढ़ी दाई मंदिर का अपना एक अलग इतिहास है तथा कमासिन में सिंहवाहिनी माता का प्रसिद्ध मंदिर है. जो यहां के लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है. 

उच्च शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी यहां पर कोई बड़ा नाम नहीं है. पालीटेक्निक कॉलेज निर्माणाधीन है. युवाओं को उच्च शिक्षा हेतु महानगर की ओर जाना पड़ता है. सरकार की नजर में सिर्फ सरकारी अस्पताल से ही यहां के लोगों का स्वास्थ्य का ध्यान रखा जा रहा है. गंभीर परिस्थितियों में जिला अस्पताल या मेडिकल कालेज रेफर किया जाता है. शिक्षा के क्षेत्र में कुछ निजी महाविद्यालय खुले हैं जो निजी व्यवसाय के तौर पर चलते दिखाई देते हैं.

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सामाजिक तानाबाना

अगर क्षेत्र में विकास की बात करें तो लोगों का कहना है कि पहले की स्थिति की तुलना में अभी कोई खास फर्क नहीं. लोग आज भी पीपे के पुल या नाव के सहारे पड़ोसी फतेहपुर, राजधानी लखनऊ और चित्रकूट का आवागमन करते हैं. यहां बड़े पार्क और स्टेडियम भी नहीं हैं.

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बबेरू विधानसभा में सर्किल के हिसाब से 4 थाने (बबेरू, मरका, कमासिन और बिसंडा) हैं. जबकि दो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बबेरू और कमासिन में हैं. 

जातीय समीकरण के लिहाज से देखें तो यहां पिछड़ी और अनुसूचित जाति के मतदाता सर्वाधिक हैं. पिछड़ी जाति में यादव और पटेल की संख्या अधिक है. धर्म विशेष में मुस्लिम आबादी भी 25 हजार के आसपास है. जबकि ब्राह्मण और ठाकुर मतदाताओं की संख्या भी 50 हजार के आसपास बताई जा रही है.

जानकारी के अनुसार परिसीमन के बाद बबेरू विधानसभा पिछड़े वर्ग के मतदाताओं का केंद्र बन गया था. करीब एक दर्जन गांवों के जुड़ने के बाद कुर्मी मतदाताओं की संख्या में इजाफा भी हुआ है. पूर्व में भी जातीय समीकरण के हिसाब से सभी प्रमुख दलों ने पिछड़े वर्ग के प्रत्याशी उतारे हैं. हालांकि यहां के मतदाताओं का रुझान किसी एक पर हमेशा केंद्रित नहीं रहा.

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मतदाताओं के लिहाज से बबेरू विधानसभा जिले की बड़ी विधानसभा सीट है. यहां की कुल जनसंख्या 5 लाख 64 हजार 506 है जिसमें पुरुष 3 लाख 3 हजार 61 और 2 लाख 61 हजार 445 महिलाएं हैं. जिला निर्वाचन कार्यालय के अनुसार 30 जुलाई 2021 तक यहां 3 लाख 32 हजार 484 कुल मतदाता हैं जिसमें 1 लाख 83 हजार 646 पुरुष और 1 लाख 48 हजार 820 महिला मतदाता शामिल हैं. 

राजनीतिक पृष्ठभूमि

आजादी के बाद 1989 तक कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी का दबदबा कायम रहा है. लेकिन बीच में दो बार निर्दलीय प्रत्याशियों को जीत मिली. इसके बाद बसपा और सपा का लगातार कब्जा बना रहा. बबेरू विधानसभा पर भाजपा को 1996 और उसके बाद 2017 में मोदी लहर से जीत मिली थी.

1951 और 1957 में लगातार दो बार कांग्रेस पार्टी से रामसनेही भारतीय को जीत मिली थी, लेकिन 1962 में निर्दलीय देशराज, 1967 में कांग्रेस से डी सिंह विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे. फिर लगातार तीन बार 1969, 1974 और 1977 सीपीआई (कम्युनिस्ट पार्टी) का कब्जा कायम रहा जिसमे दुर्जन और लगातार दो बार देवकुमार विधायक बने थे.

1980 में कांग्रेस से रामेश्वर प्रसाद, 1985 में निर्दलीय देवकुमार, 1989 में पुनः कांग्रेस से देवकुमार यादव विधानसभा पहुचे थे. देवकुमार को इसी विधानसभा सीट से 4 बार विधायक बनने का मौका यहां के मतदाताओं ने दिया था. लेकिन 1991 और 1993 में यह सीट बसपा के खाते में चली गई. गयाचरण दिनकर लगातार दो बार विधायक बने.

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1996 में पहली बार भाजपा को इस सीट पर शिवशंकर सिंह के रूप जीत हासिल हुई. फिर 2002 में बसपा ने ये सीट अपने पाले में खींच ली और गयाचरण दिनकर तीसरी बार विधायक बनकर लखनऊ पहुंचे. मतदाताओं का रुझान फिर बदल गया और 2007 तथा 2012 में सपा से विशम्भर सिंह यादव चुनाव जीते.

बनवास पर रही भाजपा को 2017 में मोदी लहर के चलते चंद्रपाल कुशवाहा के रूप में जीत दर्ज की. फिलहाल लोगों का रुख अब किस हवा की तरफ जाएगा अब तो ये वक्त तय करेगा.

2017 का जनादेश

उत्तर प्रदेश की 17वीं विधानसभा में करीब दर्जन भर प्रत्याशियों ने भाग्य टटोला था, लेकिन मोदी लहर के चलते भाजपा प्रत्याशी चंद्रपाल कुशवाहा ने जीत दर्ज की थी. उन्होंने बसपा के किरण यादव को करीब 25 हजार वोटों से पराजित किया था जबकि सपा से मौजूदा विधायक विशम्भर यादव तीसरे स्थान पर रहे.

हालिया राजनीति में यहां सपा व बसपा को मौका मिलता रहा है, लेकिन मोदी लहर के कारण भाजपा को 2017 में फिर से मौका मिला.

विधायक का रिपोर्ट कार्ड 

फिलहाल 65 वर्षीय चंद्रपाल कुशवाहा बबेरू से विधायक हैं. इनके पिता का नाम बद्री प्रसाद कुशवाहा है. चंद्रपाल के पास स्नातक की डिग्री है. वह पेशे से किसान हैं और पेंशनधारी भी हैं. विधायक बबेरू कस्बे में मनोरथ थोक में निवास करते हैं. बबेरू कस्बे में एक स्कूल के प्रबंधक भी है.

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जानकारी के अनुसार 2017 के चुनाव में दाखिल हलफनामे के अनुसार कुल मिलाकर एक करोड़ के आसपास संपत्ति थी. इन्हें विधानसभा का टिकट पार्टी में किसान मोर्चा के जिलाध्यक्ष एवं पार्टी सक्रियता के कारण दिया गया था.

(इनपुट --- सिद्धार्थ गुप्ता)

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