बिहार की राजनीति में बाहुबलियों की बहार, जानिए क्या कहते हैं आंकड़े?

इस बार के चुनाव में भी कैसे बिहार में बाहुबलियों का बोलबाला है, कैसे एक और खतरनाक ट्रेंड बिहार की राजनीति में चल पड़ा है, इसे आज देखना और समझना बहुत जरूरी है. राजनीति का अपराधीकरण, हमारे नेताओं की पोल खोल रहा है.

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बिहार में चुनाव प्रचार की एक तस्वीर (PTI) बिहार में चुनाव प्रचार की एक तस्वीर (PTI)

aajtak.in

  • पटना,
  • 20 अक्टूबर 2020,
  • अपडेटेड 2:28 PM IST
  • पहले चरण के 1066 कैंडिडेट में 319 का क्रिमिनल रिकॉर्ड
  • हर तीसरे उम्मीदवार पर दर्ज हैं आपराधिक केस
  • इनमें 164 कैंडिडेट गंभीर मामलों में आरोपी

बिहार में असली बहार किसी की है, तो वो बाहुबलियों की है. राजनीति का मौसम कोई भी हो, राज किसी का भी हो, राजनीति कितनी भी बदल जाए, बिहार की राजनीति में बाहुबली सदाबहार हैं. चाहे कोई कितने भी दावे करे, इनका जमाना कभी नहीं गया. बाहुबलियों और अपराधियों का जोड़ राजनीति में बहुत मजबूत हो चुका है और इसे फिलहाल तोड़ पाना बहुत मुश्किल है.

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इस बार के चुनाव में भी कैसे बिहार में बाहुबलियों का बोलबाला है, कैसे एक और खतरनाक ट्रेंड बिहार की राजनीति में चल पड़ा है, इसे आज देखना और समझना बहुत जरूरी है. राजनीति का अपराधीकरण, हमारे नेताओं की पोल खोल रहा है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पुराने दिन याद दिलाते हुए कहते हैं, 'कितने व्यवसायियों को बिहार छोड़ कर जाना पड़ा था जो यहां काम करते थे. कितने चिकित्सकों, डॉक्टरों को जाना पड़ा था ये मालूम है लोगों को? नई पीढ़ी के लोगों को बताइए. लोगों को पता है क्या हाल था पहले अब क्या हाल है और ज़रा भी कोई गलतफहमी हो गई तो जो पहले का बिहार था वहीं पहुंच जाइए फिर.'

यानी कि नीतीश कुमार हर जगह ये बात जरूर याद दिलाते हैं. हर जगह नीतीश कुमार जंगलराज का डर दिखाते हैं. जंगलराज वही जो 1990 के दशक में दिखता था. जंगलराज वही जिसमें बाहुबलियों का राज चलता था लेकिन बाहुबलियों का ज़माना तो बिहार में सदाबहार है. सुशासन के दावे भी इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाते हैं. पार्टी कोई भी हो, चुनाव में बाहुबली ही याद आते हैं. खुद बिहार के चुनाव आयोग का आंकड़ा देख लीजिए.

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क्रिमिनल रिकॉर्ड वाले उम्मीदवार

पहले चरण के 1066 कैंडिडेट में 319 का क्रिमिनल रिकॉर्ड है. यानी करीब करीब हर तीसरे उम्मीदवार पर आपराधिक केस है. इनमें 164 कैंडिडेट तो ऐसे हैं, जो गंभीर मामलों में आरोपी हैं. गंभीर मामले यानी हत्या, हत्या की कोशिश, रेप, उगाही, किडनैपिंग. बिहार में पार्टी कोई भी हो, इससे फर्क नहीं पड़ता है. इसलिए चुनाव आते हैं तो बिहार फिर पहले जैसा दिखता है. बाहुबलियों को टिकट देने में ना कोई हिचक है, ना शर्म है. बस किसी तरह से वो सीट सेफ एंड सिक्योर हो जाए. बस किसी तरह ज़्यादा से ज़्यादा सीटों का नंबर आ जाए. लिस्ट बहुत लंबी है, आरजेडी इस लिस्ट में टॉप पर है, चुन चुन कर टिकट बांटे हैं. 

 

जेडीयू-आरजेडी सबने दिए टिकट

मोकामा की चर्चित सीट से बाहुबली अनंत सिंह को इस बार आरजेडी से टिकट मिला है, इन पर 38 क्रिमिनल केस हैं. दानापुर से आरजेडी ने रीतलाल यादव को टिकट दिया है, ये अगस्त में ही बेऊर जेल से छूट कर आए हैं, इन पर 33 क्रिमिनल केस हैं. गया की अतरी सीट पर आरजेडी के अजय यादव कैंडिडेंट हैं, इन पर 14 क्रिमिनल केस हैं. गया की बेलागंज सीट से जेडीयू के अभय सिंह कैंडिडेट हैं, इन पर भी 14 क्रिमिनल केस हैं.

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गया की ही गुरुआ सीट पर पप्पू यादव की जनअधिकार पार्टी ने सुधीर वर्मा को टिकट दिया, इन पर 37 क्रिमिनल केस हैं, एक वक्त इन पर 25 हज़ार रुपये का इनाम था. बक्सर की ब्रह्मपुर सीट पर एलजेपी के हुलास पांडे कैंडिडेट हैं, ये बाहुबली नेता सुनील पांडे के भाई है, इन पर मर्डर और उगाही के कई केस हैं. लेकिन राजनीति की ये डर्टी पिक्चर यही खत्म नहीं होती. 

जिन बाहुबलियों को पार्टियों से टिकट नहीं मिला, या उन्हें अयोग्य होने का डर था, या फिर वो चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य थे, उन्होंने अपनी पत्नियों को टिकट दिलवा दिया.

इन बाहुबलियों की पत्नी को मिला टिकट 

रेप के दोषी पूर्व विधायक राजबल्लभ यादव की पत्नी बिभा देवी नवादा से आरजेडी की कैंडिडेट हैं. एक साल से फरार रेप के आरोपी विधायक अरुण यादव की पत्नी किरण देवी संदेश से आरजेडी की कैंडिडेट हैं. वैशाली की महनार सीट से बाहुबली रामाकिशोर सिंह की पत्नी वीणा सिंह को आरजेडी ने टिकट दिया. सहरसा जेल में बंद डॉन आनंद मोहन सिंह की पत्नी, लवली आनंद और बेटे चेतन आनंद को सहरसा और श्योहर से आरजेडी ने टिकट दिया. 

जेडीयू ने एकमा, रुपौली और अतरी सीटों पर मनोरंजन सिंह धूमल, अवधेश मंडल और बिंदी यादव जैसे बाहुबलियों की पत्नियों को टिकट दिया. बीजेपी ने बाहुबली अखिलेश सिंह की पत्नी अरुणा देवी को नवादा से कैंडिडेट बनाया, अखिलेश सिंह पर 27 क्रिमिनल केस हैं.

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ये बिहार का सबसे खतरनाक ट्रेंड है. जिसमें अपराधियों को टिकट देने में अगर थोड़ी राजनैतिक असुविधा हो रही है, तो फिर उनकी पत्नी, बेटे या रिश्तेदारों को टिकट दे दिया जाता है. कुल मिलाकर चुनाव आते ही कि सबको बाहुबली पसंद आने लगते हैं. फिर चाहे वो सुशासन के दावे करने वाले हों या फिर वो हों, जिनके जंगलराज का डर दिखाया जाता है.

क्या कहते हैं आकड़े?

चुनावी राजनीति पर नज़र रखने वाली एक संस्था है एडीआर. एडीआर और बिहार इलेक्शन वॉच ने एक स्टडी की. इसमें 2005 के बाद से बिहार में लोकसभा और विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले कैंडिडेट्स का अध्ययन किया गया. इस अध्ययन से निकले आंकड़े बहुत हैरान करने वाले हैं.

2005 के बाद से बिहार में 10 हज़ार 785 कैंडिडेट्स ने लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ा, इनमें 30 प्रतिशत कैंडिडेट्स का क्रिमिनल रिकॉर्ड था. जबकि 20 प्रतिशत कैंडिडेट्स पर तो दर्ज मामले बहुत सीरियस थे. जिनमें हत्या, हत्या की कोशिश, रेप, किडनैपिंग, उगाही जैसे केस हैं.

इसमें 2005 के बाद से बिहार के सांसद और विधायकों का भी अध्ययन किया गया. इनमें 57 प्रतिशत जनप्रतिनिधियों के खिलाफ अपराधिक मामले थे. 36 प्रतिशत के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले थे. यानी क्रिमिनल रिकॉर्ड वाले लोगों को पार्टियां ना सिर्फ टिकट देती हैं बल्कि ये चुनाव जीतकर संसद और विधानसभा में भी बैठ जाते हैं.

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