समाजवादी पार्टी में आने से पहले ही बड़े नेता बन गए थे आजम खान

आजम खान के राजनीतिक कद का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में जब बीजेपी ने पूरी यूपी में एकतरफा जीत दर्ज की, उस माहौल में भी आजम खान न सिर्फ खुद चुनाव जीते, बल्कि अपने बेटे अब्दुल्ला आजम खान को भी फतह दिलाई.

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सपा नेता आज़म खान सपा नेता आज़म खान

जावेद अख़्तर

  • नई दिल्ली,
  • 18 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 9:16 AM IST

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, देश का वो शिक्षा संस्थान जो सांस्कृतिक तौर पर अपनी अलग पहचान रखता है. इसी यूनिवर्सिटी से शैक्षणिक और राजनीतिक तालीम पाकर आजम खान उत्तर प्रदेश की राजनीति में अहम मुकाम तक पहुंचे और आज पूरे देश में वो अपने अलग अंदाज-ए बयां के लिए मशहूर हैं. हालांकि, उर्दू जुबान के खूबसूरत लफ्जों में दिए गए उनके बयान कई बार विवाद का केंद्र भी बने हैं.

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आजम खान देश की आजादी के एक साल बाद 14 अगस्त 1948 को रामपुर में पैदा हुए. मोहल्ला घायर मीर बाज खान में जन्मे आजम खान ने ग्रेजुएशन रामपुर के डिग्री कॉलेज से किया. इसके बाद वो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी चले गए, जहां से उन्होंने वकालत की पढ़ाई की और 1974 में बेचलर ऑफ लॉ की डिग्री हासिल की.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्‍वविद्यालय से ही आजम खान ने राजनीति में कदम रखा. उन्होंने 1976 में जनता पार्टी का दामन थामा और जिला स्‍तर की राजनीति की.

इसके बाद जल्द ही वह चुनावी राजनीति में आ गए और 1980 में उन्होंने विधानसभा का चुनाव जीता. इसके बाद उनकी जीत का जो सिलसिल शुरू हुआ, वो चुनाव-दर चुनाव आगे ही बढ़ता चला गया. वह कुल 9 बार विधायक बन चुके हैं. जबकि पांच बार यूपी सरकार में मंत्री रह चुके हैं.

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आजम खां अपने शहर रामपुर से ही किंग बनते रहे हैं. 1980 में रामपुर सीट पर पहला चुनाव उन्होंने जनता पार्टी (सेकुलर) के टिकट पर लड़ा और जीता. इसके बाद 1985 में वह लोकदल के टिकट पर जीतकर आए. 1989 में जनता दल के टिकट पर जीते और 1991 में जनता पार्टी से चुनकर आए. दरअसल, जनता पार्टी में विखराव के कारण वह 80 के दशक में कई दलों में आते जाते रहे.

1993 में सपा के टिकट पर लड़ा चुनाव

अक्टूबर 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी का गठन किया और इसके बाद 1993 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में आजम खान सपा के टिकट पर उतरे. इस चुनाव में वह जीत गए. लेकिन 1996 में अफरोज अली खान ने रामपुर से कांग्रेस के टिकट पर बाजी मारी. इस बीच आजम खान 1996-2002 तक राज्यसभा के सदस्य रहे.

यूपी की सियासत में मुस्लिम चेहरा

आजम खान को यूपी में सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे के रूप में पहचाना जाता है. वह हमेशा प्रदेश व देश के मुसलमानों से जुड़े मद्दों पर अपनी राय रखते हैं. हालांकि, कई बार उनके बयान विवाद की वजह बनते हैं. समाजवादी पार्टी से मुसलमानों को जोड़ने का श्रेय भी आजम खान को ही जाता है.

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1989 में जब आजम खान पहली बार कैबिनेट मंत्री बने तो उन्हें श्रम व रोजगार के अलावा मुस्लिम वक्फ और हज विभाग की जिम्मेदारी मिली. 1994 में वह भारत के अल्पसंख्यक फोरम के अध्यक्ष भी बने.

पार्टी के अंदर भी उनका टकराव देखने को मिला. 2009 के लोकसभा चुनाव में वह सपा की उम्‍मीदवार जया प्रदा के खिलाफ खड़े नजर आए, उन्होंने जमकर जया प्रदा का विरोध किया. इसके बाद 17 मई 2009 को उन्होंने पार्टी के महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया. हालांकि, जल्द ही 4 दिसंबर 2010 को पार्टी ने उनका निष्‍कासन रद्द करते हुए वापस बुला लिया.

आजम खान का बड़ा कद

आजम खान यूपी के कद्दावर नेताओं में हैं. वह मुलायम सिंह यादव के सबसे पुराने साथियों में हैं. 2012 में जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तो आजम खान ने उनकी सरकार में भी कैबिनेट मंत्री के रूप में काम किया.

2017 के विधानसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी ने एकतरफा जीत दर्ज करते हुए 324 सीटों पर कब्जा जमाया तो उस स्थिति में भी आजम खान अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे. सिर्फ इतना ही नहीं, उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ रहे अपने बेटे अब्दुल्ला आजम की जीत भी स्वार सीट से सुनिश्चित की.

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