राजस्थान: अब लोकसभा चुनाव में गुटबाजी का असर, आधी सीटों पर पसोपेश में कांग्रेस

राजस्थान कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट राजनीति के दो बड़े केंद्र हैं, ऐसे में दोनों खेमों के नेता टिकट बंटवारे को लेकर अपना दमखम दिखाने के प्रयास कर रहे हैं. यहां तक कि अशोक गहलोत के बेटे के नाम पर भी कांग्रेस के अंदर से ही विरोध के स्वर सामने आ रह हैं.

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राजस्थान कांग्रेस में कई अहम सीटों पर टकराव राजस्थान कांग्रेस में कई अहम सीटों पर टकराव

शरत कुमार

  • जयपुर,
  • 19 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 10:29 AM IST

लोकसभा चुनाव 2019 के लिए कांग्रेस अब तक उम्मीदवारों की पांच लिस्ट जारी कर चुकी है, लेकिन राजस्थान के एक भी प्रत्याशी का नाम घोषित नहीं हो पाया है. पिछले दो हफ्तों से लगातार प्रदेश नेताओं की बैठकें चल रही हैं, जिनमें कुल 25 सीटों में से लगभग पचास फीसदी पर नाम तय कर लिए गए हैं, लेकिन बाकी सीटों के प्रत्याशियों पर अभी अंदरूनी घमासान दिखाई दे रहा है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट के गुटों का असर भी टिकट वितरण में देरी की वजह माना जा रहा है. अजमेर, जयपुर और बाड़मेर जैसी हाई-प्रोफाइल सीटों पर टकराव ज्यादा है.

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दिल्ली में तीन दिनों की बैठक के बाद कांग्रेस में ज्यादातर सीटों पर नाम तय हो गए हैं, लेकिन अजमेर, बाड़मेर-जैसलमेर, जयपुर और भीलवाड़ा जैसी अहम सीटों पर अब भी पेंच फंसा है. अजमेर सीट की बात की जाए तो यहां हुए उपचुनाव में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा जीते थे, अब सचिन पायलट का खेमा चाह रहा है कि अशोक गहलोत के खास बने रघु शर्मा को एक बार फिर अजमेर सीट से ही टिकट दिया जाए. जबकि रघु शर्मा लोकसभा चुनाव लड़ना ही नहीं चाह रहे हैं. उनका कहना है कि यह सीट परंपरागत रूप से उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट की सीट रही है, ऐसे में वो ही अपना उम्मीदवार तय करें. इसी तरह दूसरी सीटों पर भी केंद्र और राज्य की राजनीति अहम बिंदु बन गया है.

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विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आए मानवेंद्र सिंह बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं, लेकिन राज्य के राजस्व मंत्री हरीश चौधरी कह रहे हैं कि उन्हें केंद्र की राजनीति करनी है. हालांकि, उनके इस तर्क के पीछे वजह कुछ और बताई जा रही है. सूत्रों का कहना है कि हरीश चौधरी को लगता है कि वरिष्ठ नेता होने के बावजूद उन्हें कम महत्व का मंत्री पद दिया गया है, ऐसे में अशोक गहलोत या सचिन पायलट के बजाय कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की टीम में रहकर राजनीति करना चाहते हैं.

इन सीटों पर भी टकराव

हरीश चौधरी ही नहीं दूसरे नेता भी जयपुर से निकलकर दिल्ली की राजनीति में आना चाहते हैं. राहुल गांधी के करीबी रहे कद्दावर नेता सीपी जोशी विधानसभा अध्यक्ष बनने के बाद हाशिए पर चले गए हैं, ऐसे में वो भी लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं और भीलवाड़ा सीट से एक बार फिर से टिकट की दावेदारी रख रहे हैं.

इसी तरह जयपुर शहर की सीट को लेकर भी घमासान है. जयपुर शहर लोकसभा सीट से कांग्रेस के विधायक और विधान सभा में मुख्य सचेतक महेश जोशी चुनाव लड़ना चाहते हैं. महेश जोशी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खास हैं, लेकिन जिस तरह सचिन पायलट और अशोक गहलोत गुट में मंत्री पद बंटे उसमें महेश जोशी खाली हाथ रह गए. इसलिए वो भी चाहते हैं कि राज्य के बजाय केंद्र में राजनीति करें. जबकि इसी सीट पर कांग्रेस का दूसरा गुट सुशील शर्मा के लिए टिकट मांग रहा है. जिन विधायकों को मंत्रीपद नहीं मिले वो तो लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते ही हैं, लेकिन चर्चा ये भी है कि कुछ मौजूदा मंत्रियों का कद देखते हुए उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ाया जाए, ताकि बीजेपी को शिकस्त दी जा सके.

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ऐसे हालात जयपुर ग्रामीण लोकसभा सीट पर रहे हैं, जहां से कृषि मंत्री लालचंद कटारिया को केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर के सामने उतारने पर विचार चल रहा है. हालांकि,  लालचंद कटारिया इस बात के लिए सहमत नहीं हैं और चाहते हैं कि उनकी पत्नी रेखा कटारिया को टिकट दिया जाए. टिकट पर टकराव सिर्फ बड़े नेताओं या मंत्रियों को लेकर ही नहीं है, बल्कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के परिवार पर भी पेच फंसा है.

वैभव गहलोत के नाम पर सहमति नहीं

जोधपुर सीट से भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने बेटे वैभव गहलोत को चुनाव लड़ाना चाहते हैं, जबकि कांग्रेस का दूसरा गुट चाहता है कि यहां से कोई जाट या विश्नोई समाज का उम्मीदवार उतारा जाए.

कुल मिलाकर राजस्थान में यह सियासी खींचतान दरअसल इसलिए हो रही है क्योंकि एक खेमा दूसरे को निपटाना चाहता है. ऐसे में माना जा रहा है कि इन विवादित सीटों पर अब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ही फैसला करेंगे, और होली के बाद कांग्रेस के उम्मीदवारों की सूची जारी की जाएगी.

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