नागपुर लोकसभा सीट पर किसी उम्मीदवार की जीत में दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के मतदाताओं की भूमिका अहम होती है. बीजेपी और कांग्रेस अगले महीने होने वाले चुनावों में इन समुदायों के वोट हासिल करने के लिए कड़ी मशक्कत कर रही हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी का समर्थन कर चुके दलित, खासकर नवबौद्ध, इस बार किसी अन्य विकल्प पर विचार कर सकते हैं. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी नागपुर से मौजूदा सांसद हैं. कांग्रेस ने पूर्व बीजेपी सांसद नाना पटोले को गडकरी के खिलाफ अपना उम्मीदवार बनाया है. नागपुर लोकसभा क्षेत्र के कई हिस्सों में दलित बौद्धों का अच्छा-खासा प्रभाव है.
नागपुर बीजेपी के वैचारिक मार्गदर्शक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का मुख्यालय है. इस शहर में दीक्षाभूमि भी है जो नवयान बौद्ध धर्म का एक पवित्र स्मारक है. भारतीय संविधान के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले बाबासाहेब भीम राव आंबेडकर ने इसी जगह पर 1956 में अपने हजारों समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था. इस सीट पर लोकसभा चुनावों के पहले चरण में यानी 11 अप्रैल को मतदान होगा.
क्या मानते हैं विश्लेषक
समाचार एजेंसी पीटीआई-भाषा के अनुसार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के पूर्व अध्यक्ष सुखदेव थोराट का कहना है कि इस बार दलितों में बीजेपी विरोधी रुझान लग रहा है. हालांकि, यह वोट कांग्रेस-राकांपा गठबंधन, प्रकाश आंबेडकर के वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) और मायावती की बसपा के बीच बंट जाएंगे. उन्होंने कहा कि इन वोटों को बंटने से बचाने का एकमात्र उपाय यह है कि वे एक हो जाएं.
बहरहाल, नागपुर उत्तरी विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक मिलिंद माने थोराट के आकलन से असहमत दिखे. उन्होंने दावा किया, गडकरी के पक्ष में दलित बौद्ध वोटों का प्रतिशत इस बार 27 प्रतिशत तक जाएगा जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में यह महज तीन-चार प्रतिशत था. सिर्फ विकास कार्यों के कारण ऐसा नहीं होगा, बल्कि आंबेडकरवादियों के साथ बीजेपी का संबंध भी एक बड़ा कारण होगा. बौद्धों ने बीजेपी पर विश्वास करना शुरू कर दिया है. बीजेपी विधायक ने कहा कि गडकरी दीक्षाभूमि को बराबर अहमियत देते हैं. माने ने कहा कि दलित, मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यक आसानी से गडकरी से संपर्क साध सकते हैं.
गडकरी के खिलाफ इसलिए उतरीं मैदान में
वहीं नितिन गडकरी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरीं नागपुर मेडिकल कॉलेज की डॉ. मनीषा बांगर इससे इत्तेफाक नहीं रखती हैं. डॉ. मनीषा aajtak.in से बातचीत में कहती हैं कि बीजेपी और कांग्रेस ने समाज की 80 फीसदी आबादी की हमेशा अनदेखी की है. दोनों पार्टियों का चरित्र एक जैसा है, इसलिए मुझ जैसे लोगों को चुनाव मैदान में उतरना पड़ रहा है. दलित और ओबीसी वोट बंटने के सवाल पर वह कहती हैं, 'हम बहुजन वोट को कांग्रेस और बीजेपी से वापस लाने के लिए चुनाव मैदान में उतरे हैं. ये दोनों पार्टियां बहुजन वोट के सहारे ही जीतती रही हैं, लेकिन उन्हें ठगने का काम करती हैं. इसलिए हम बहुजन वोट उनसे वापस लाने जा रहे हैं.
एक आकलन के मुताबिक नागपुर क्षेत्र में 50 फीसदी से ज्यादा वोटर ओबीसी हैं. इनमें मुख्यत: कुन्बी और तेली समुदायों के वोटर हैं. शेष करीब 15-20 फीसदी वोटर दलित हैं, जिनमें हिंदू और बौद्ध दोनों हैं. मुस्लिम वोट करीब 12 प्रतिशत है. कांग्रेस के अनुसूचित जाति विभाग के अध्यक्ष और विधायक नितिन राउत ने दावा किया कि दलितों में बीजेपी के खिलाफ बहुत रोष है.
वरुण शैलेश