कैराना सीट: 3 बार पार्टी बदल चुकीं तबस्सुम पर क्या जनता कर पाएगी भरोसा?

तबस्सुम हसन कैरना में सपा-बसपा और रालोद गठबंधन की ओर से चुनाव लड़ रही हैं. कैराना तबस्सुम हसन की पारिवारिक सीट रही है. तबस्सुम हसन के परिवार का कैराना में बड़ा जनाधार है. यही वजह है कि मोदी सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद हुए उपचुनाव में उन्होंने हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह के खिलाफ जीत दर्ज की थी.

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(फाइल फोटो- तबस्सुम हसन) (फाइल फोटो- तबस्सुम हसन)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 10 अप्रैल 2019,
  • अपडेटेड 4:00 PM IST

तबस्सुम हसन राष्ट्रीय लोक दल(आरएलडी) से सांसद हैं. वे एक राजनीतिक घराने से आती हैं.  कैराना तबस्सुम हसन की पारिवारिक सीट है. उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में कैराना ही ऐसी सीट है जो किसी मुस्लिम सांसद के हवाले है. तबस्सुम हसन दिवंगत मुनव्वर हसन की पत्नी हैं. मुनव्वर हसन कैराना सीट से दो बार विधायक और दो बार सांसद भी रह चुके हैं. कैराना सीट से ही तबस्मसुम हसन के ससुर चौधरी अख्तर हमन सी भी सांसद रह चुके हैं.

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तबस्सुम हसन, 2009 में बहुजन समाज पार्टी से सांसद रह चुकी हैं. तबस्सुम हसन 2009 से अब तक तीन पार्टियां बदल चुकी हैं.तबस्सुम के पति मुनव्वर हसन की एक रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई थी. मौत के कुछ ही दिन बाद हुए चुनाव में उन्होंने दिग्गज नेता हुकुम सिंह के खिलाफ जीत हासिल की थी. पति की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए तबस्सुम को खासी मेहनत करनी पड़ी. 2014 में तबस्सुम हसन ने अपनी सीट बेटे नाहिद के लिए खाली की. नाहिद समाजवादी पार्टी की ओर से चुनाव लड़े. बीजेपी के दिग्गज नेता हुकुम सिंह उनके सामने थे. मोदी लहर में भरपूर कोशिशों के बाद भी तबस्सुम बेटे की सीट बचा पाने में नाकामयाब रहीं.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट राजनीतिक लिहाज से बेहद अहम सीट है. 2014 में मोदी लहर के बीच इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के हुकुम सिंह ने जीत दर्ज की थी, लेकिन उनके निधन के बाद 2018 में हुए उपचुनाव में संयुक्त विपक्ष की प्रत्याशी तबस्सुम ने भारतीय जनता पार्टी की मृगांका सिंह को मात दी. इससे देश में अलग संदेश गया और कहा जाने लगा कि मोदी लहर थम गई है.

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राष्ट्रीय लोकदल की उम्मीदवार तबस्सुम हसन को समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस ने समर्थन दिया था. 2017 में प्रचंड बहुमत के साथ उत्तर प्रदेश की सत्ता में आने वाली बीजेपी के लिए इस हार को बड़े झटके के तौर पर देखा गया. उत्तर प्रदेश में महागठबंधन की आस देखी जाने लगी लेकिन सपा और बसपा एक हो गए और कांग्रेस को सम्मानजनक सीट न मिलने के चलते उसे महागठबंधन का मोह छोड़ना पड़ा.

इस बार कैराना में त्रिकोणीय मुकाबला होने की संभावना है. भाजपा ने इस बार मृगांका सिंह की जगह प्रदीप चौधरी को टिकट दिया है. वहीं कांग्रेस ने अपने दमदार नेता हरेंद्र सिंह मलिक को मैदान में उतारा है. देखने वाली बात यह होगी कि क्या तबस्सुम फिर से जीत हासिल करने में कामयाब होती हैं या नहीं.

सांसद के तौर पर संसद में तबस्सुम हसन को काफी ही कम समय मिला. वो सिर्फ दो ही सदनों में हिस्सा ले सकीं. इस दौरान उन्होंने 4 सवाल पूछे. सितंबर, 2018 में तबस्सुम को संसद की ह्यूमन रिसॉर्स डेवलेपमेंट की स्टैंडिंग कमेटी में शामिल किया. वह दो बार कैराना से सांसद रहने के अलावा शामली से जिला पंचायत का चुनाव भी जीत चुकी हैं.  फिलहाल एक बार फिर वे बीजेपी और कांग्रेस को सपा-बसपा और रालोद गठबंधन की ओर से टक्कर देने उतरी हैं.

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आठ लोकसभा सीटों पर 11 अप्रैल को मतदान होना है, जिसमें से एक कैराना लोकसभा सीट भी है. इस सीट से कुल 13 उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं. भले ही साल 2018 में हुए कैराना उपचुनाव में आरएलडी के टिकट पर तबस्सुम हसन ने जीत दर्ज की थी लेकिन टिकटों के ऐलान से ठीक पहले वो आरएलडी छोड़ एसपी में चली गईं और अब एसपी उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं.

कैराना में पलायन का मुद्दा भी नहीं आया काम

कैराना में जाट और मुस्लिम वोटर हावी हैं. मई 2018 में उपचुनाव हुए. जब चुनाव लड़ने की बात आई तो विपक्ष ने एकता दिखाते हुए बीजेपी के खिलाफ संयुक्त उम्मीदवार उतारा. गोरखपुर-फूलपुर फॉर्मूले के तहत तबस्सुम हसन को मौका मिला और भारतीय जनता पार्टी की ओर से हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को मैदान में उतारा गया था. लेकिन बीजेपी का यह इमोशनल कार्ड नहीं चल सका. हिंदुत्व का एजेंडा कामयाब नहीं हो पाया. उपचुनाव से पहले और विधानसभा चुनाव के दौरान कैराना में पलायन के मुद्दे ने काफी सुर्खियां बटोरीं. 2017 के विधानसभा चुनाव में तो इस मुद्दे को काफी भुनाया भी गया था.

कैराना लोकसभा सीट का समीकरण

कैराना लोकसभा सीट पश्चिमी उत्तर प्रदेश को प्रभावित करने वाली सीट है. 2014 के आंकड़ों के अनुसार इस सीट पर कुल 15,31,755 वोटर थे. इनमें 8,40,623 पुरुष और 6,91,132 महिला वोटर थीं. 2018 में हुए उपचुनाव में इस सीट पर 4389 वोट नोटा को डाले गए थे. कैराना लोकसभा क्षेत्र में कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं. पांच में से चार विधानसभा सीटें भारतीय जनता पार्टी के खाते में गई थीं. इनमें नकुड़  बीजेपी, गंगोह बीजेपी, कैराना बीजेपी, थाना भवन बीजेपी, शामली बीजेपी के खाते में ही गई थीं.

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2018 उपचुनाव के नतीजे

तबस्सुम हसन, राष्ट्रीय लोक दल, कुल वोट मिले 481182

मृगांका सिंह, भारतीय जनता पार्टी, कुल वोट मिले 436564

उपचुनाव में कैराना में कुल 54 फीसदी ही वोट पड़े थे. रालोद की तबस्सुम ने बीजेपी की मृगांका सिंह को 44618 वोटों से मात दी थी.

2014 के चुनाव में क्या रहा समीकरण

आपको बता दें कि 2014 से पहले भारतीय जनता पार्टी इस सीट पर एक ही बार चुनाव जीत पाई थी लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यहां मोदी लहर का फायदा मिला. यहां से चुनाव लड़े हुकुम सिंह को कुल 50 फीसदी वोट मिले थे, जबकि उनके सामने खड़े समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को 29 और बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार को 14 फीसदी ही वोट मिल पाए थे. हुकुम सिंह ने यहां तीन लाख वोटों से जीत दर्ज की थी.

कैराना ने दिखाया गठबंधन का रास्ता

2014 में केन्द्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी की सरकार बनने के बाद से ही कई राज्यों में भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की. 2017 में जब उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत से जीत हासिल की तो सपा-बसपा के जनाधार पर चोट पहुंची. गोरखपुर-फूलपुर के उपचुनाव में जब सपा-बसपा ने एक होकर बीजेपी को मात दी तो कैराना में भी विपक्षी पार्टियों का बल मिला. समझौते के तहत रालोद उम्मीदवार को मौका मिला. समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने तबस्सुम को समर्थन का ऐलान किया. इसके बाद से ही देश में बीजेपी के मोदी मैजिक को महागठबंधन के द्वारा टक्कर दी जा सकती है इसका संदेश गया था. इस बार का मुकाबला भी ऐसा ही होने वाला है. वैसे कांग्रेस भी पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ रही है लेकिन कहा जा रहा है कि असली मुकाबला सपा-बसपा और रालोद के संयुक्त गठबंधन बनाम बीजेपी के बीच है.

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बीजेपी ने प्रदीप चौधरी पर लगाया दांव

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के हुकुम सिंह ने कैराना सीट से बाजी मारी थी. लेकिन उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में सपा के समर्थन से यह सीट आरएलडी जीतने में कामयाब रही थी. आरएलडी के टिकट पर तबस्सुम हसन ने बीजेपी की उम्मीदवार मृगांका सिंह के खिलाफ 44618 वोटों से जीत दर्ज की थी.

बीजेपी ने इस बार नए चेहरे पर दांव खेला है. मृगांका सिंह की जगह, गंगोह से विधायक प्रदीप चौधरी पर दांव लगाया है. प्रदीप चौधरी नकुड़ और गंगोह से तीन बार विधायक रह चुके हैं.

गुर्जर समुदाय से ताल्लुक रखने वाले प्रदीप आरएलडी, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में भी रह चुके हैं. 2016 में प्रदीप चौधरी बीजेपी में शामिल हुए और 2017 में वह गंगोह से विधायक चुने गए. जातीय समीकरण के लिहाज से इस सीट पर सबसे ज्यादा 5 लाख मुस्लिम मतदाता हैं. जबकि करीब 4 लाख बैकवर्ड (जाट, गुर्जर, सैनी, कश्यप, प्रजापति और अन्य शामिल) वोटर्स हैं.

कैराना सीट का इतिहास

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट राजनीतिक लिहाज से काफी अहम सीट है. यह लोकसभा सीट 1962 अस्तित्व में आई. पहले ही चुनाव में इस सीट से निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी. उसके बाद इस सीट पर सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी और कांग्रेस के पास ही रही. लेकिन 1996 में इस सीट पर समाजवादी पार्टी ने जीत दर्ज की, 1998 में भारतीय जनता पार्टी, फिर लगातार दो बार राष्ट्रीय लोक दल, 2009 में बहुजन समाज पार्टी और 2014 में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. 2018 में जब उपचुनाव हुए तो बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा.

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