भदोही: इस कालीन नगरी में नए गठबंधन के आगे बीजेपी को मिलेगी कड़ी टक्कर

भदोही उत्तर प्रदेश के 80 संसदीय क्षेत्रों में से एक है. भदोही को कालीन शहर के नाम से जाना जाता है. क्षेत्रफल के लिहाज से यह उत्तर प्रदेश का सबसे छोटा जिला है और ज्ञानपुर शहर जिला मुख्यालय है. भदोही जिला गंगा नदी के मैदानी इलाकों में स्थित है, जो जिले की दक्षिण-पश्चिम सीमा का निर्माण करता है. गंगा के अलावा वरुण और मोर्वा यहां की प्रमुख नदियां हैं. भदोही जिला उत्तर में जौनपुर से, पूर्व में वाराणसी से, दक्षिण में मिर्जापुर से और पश्चिम में प्रयागराज से घिरा है.

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सांकेतिक तस्वीर (फाइल-PTI) सांकेतिक तस्वीर (फाइल-PTI)

सुरेंद्र कुमार वर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 05 फरवरी 2019,
  • अपडेटेड 3:58 PM IST

अपनी मनमोहक कालीन निर्माण और हस्तकला के लिए विश्वविख्यात भदोही उत्तर प्रदेश के 80 संसदीय क्षेत्रों में से एक है. भदोही को कालीन शहर के नाम से जाना जाता है. क्षेत्रफल के लिहाज से यह उत्तर प्रदेश का सबसे छोटा जिला है और ज्ञानपुर शहर जिला मुख्यालय है. भदोही जिला गंगा नदी के मैदानी इलाकों में स्थित है, जो जिले की दक्षिण-पश्चिम सीमा का निर्माण करता है. गंगा के अलावा वरुण और मोर्वा यहां की प्रमुख नदियां हैं. भदोही जिला उत्तर में जौनपुर से, पूर्व में वाराणसी से, दक्षिण में मिर्जापुर से और पश्चिम में प्रयागराज से घिरा है.

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15वीं शताब्दी तक 'भार' को सागर राय के साथ मोनास राजपूतों द्वारा पराजित किया गया था, और इस जीत के बाद सागर राय के पोते, जोधराय ने इसे मुगल सम्राट शाहजहां से एक जमींदार सनद के रूप में प्राप्त किया था. हालांकि लगभग 1750 ईस्वी भूमि राजस्व बकाया भुगतान के कारण, प्रतापगढ़ के राजा प्रताप सिंह ने बकाया भुगतान के बदले में पूर्ण परगना को बनारस के बलवंत सिंह को सौंप दिया.

1911 में भदोही को महाराजा प्रभु नारायण सिंह ने अपने रियासत बनारस के अधीन शामिल कर लिया. भदोही ने 30 जून 1994 को उत्तर प्रदेश के 65वें जिले के रूप में राज्य के नक्शे पर अपनी नई पहचान बनाई. जिला बनने से पहले यह वाराणसी जिले का हिस्सा था.

इस जगह का नाम उस क्षेत्र के 'भार राज्य' से पड़ा जिसने भदोही को अपनी राजधानी बनाया. 'भार राज्य' के शासकों के नाम पर कई पुराने टैंक समेत ऐतिहासिक धरोहर हैं. अकबर के शासनकाल के दौरान, भदोही को एक दस्तुर बना दिया गया और इलाहाबाद के शासन में शामिल कर लिया गया.

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भदोही में एशिया में अपनी तरह का एकमात्र इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कॉरपेट टेक्नॉलोजी (आईआईसीटी) स्थित है, जिसकी स्थापना 2001 में भारत सरकार ने किया था. कालीन उद्योग के अलावा बनारसी साड़ी और लकड़ी के टोकरी बनाना भी अहम उद्योग है.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

भदोही संसदीय क्षेत्र में 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार गोरखनाथ ने जीत हासिल की थी. उन्होंने सपा के छोटेलाल भिंड को 12,963 मतों के अंतर से हराया था. उस समय कुल 13 लोग मैदान में थे. इस चुनाव में बीजेपी पांचवें स्थान पर रही थी और उसे महज 8.76 फीसदी मत मिले थे. कांग्रेस के सूर्यमणि त्रिपाठी तीसरे और अपना दल के रामरती चौथे स्थान पर रहे.

सामाजिक ताना-बाना

2011 की जनगणना के मुताबिक जिले में 53 फीसदी पुरुषों की आबादी है जबकि महिलाओं की आबादी 47 फीसदी है. यहां पर हिंदुओं की 53 फीसदी और मुसलमानों की 45 फीसदी आबादी रहती है. स्त्री-पुरुष अनुपात के आधार पर एक हजार पुरुषों में 950 महिलाएं हैं.  यहां पर साक्षरता दर काफी अच्छा है 90 फीसदी लोग साक्षर है जिसमें पुरुषों की 94 फीसदी और महिलाओं की 86 फीसदी आबादी शिक्षित है.

भदोही लोकसभा क्षेत्र में 5 विधानसभा क्षेत्र (भदोही, ज्ञानपुर, औराई, प्रतापपुर और हंडिया) आते हैं जिसमें एक सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व की गई है.  इन 5 विधानसभा क्षेत्रों में से प्रतापपुर और हंडिया विधानसभा क्षेत्र पहले फूलपुर संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आते थे अब भदोही संसदीय क्षेत्र में आ गए हैं. जबकि शेष 3 विधानसभा क्षेत्र पहले से ही मिर्जापुर संसदीय क्षेत्र में पड़ते थे.

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विधानसभा चुनाव 2017 के आधार पर देखा जाए तो प्रतापपुर में बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी. बहुजन समाज पार्टी के मोहम्मद मुज्तबा सि्ददकी ने यह चुनाव जीता था. उन्होंने अपना दल (सोनेलाल) के प्रत्याशी करन सिंह को नजदीकी मुकाबले में 2,654 मतों से हराया था.

ज्ञानपुर विधानसभा क्षेत्र पर निशाद पार्टी का कब्जा है और इस पार्टी के विजय मिश्रा ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के उम्मीदवार महेंद्र कुमार भिंड को 20,230 मतों के अंतर से हराया था. संसदीय क्षेत्र के साथ-साथ भदोही विधानसभा क्षेत्र भी है और यहां से भारतीय जनता पार्टी के रविंद्र नाथ त्रिपाठी विधायक हैं. रविंद्र नाथ ने समाजवादी पार्टी के जाहिद बेग को बेहद कांटेदार मुकाबले में 1,105 वोटों के अंतर से पराजित किया था. हांडिया पर बहुजन समाज पार्टी की पकड़ है. उसके प्रत्याशी हकीम लाल ने अपना दल (सोनेलाल) की प्रमिला देवी को 8,526 मतों के अंतर से हरा दिया था.

जहां तक औराई विधानसभा सीट की बात है तो यह सुरक्षित सीट (अनुसूचित जाति) है और यहां से बीजेपी के दीनानाथ भास्कर विधायक हैं. दीनानाथ ने 2017 के चुनाव में सपा उम्मीदवार मधुबाला को 19,979 मतों से हराया था. भदोही राज्य के बेहद पिछड़े जिलों में आता है और यहां करीब 2 साल पहले हुए विधानसभा चुनाव के आधार पर देखा जाए तो किसी भी राजनीतिक दल की पकड़ मजबूत नहीं है. 5 विधानसभा क्षेत्रों में से 3 जगहों पर हार-जीत का अंतर 10 हजार से कम का रहा जिसमें 2 जगहों पर 3 हजार से भी कम है. वहीं 2 जगहों पर यह जीत का अंतर करीब 20 हजार का रहा है.

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2014 का जनादेश

भदोही संसदीय क्षेत्र से इस समय बीजेपी के वीरेंद्र सिंह सांसद हैं. 2014 में आम चुनाव से पहले बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया था और यह चुनाव मोदी के नाम पर लड़ा गया, जिसमें बीजेपी को बंपर फायदा मिला और पूर्ण बहुमत के साथ चुनाव जीत गई.

भदोही में भी बीजेपी को मोदी लहर का फायदा मिला और उसे 1,58,141 मतों के अंतर से बड़ी जीत मिली. इस चुनाव में भदोही से 14 उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई थी, जिसमें वीरेंद्र सिंह ने बसपा के राकेश धर त्रिपाठी को हराकर संसद में पहुंचने में कामयाबी हासिल की.

वीरेंद्र सिंह को चुनाव में 4,03,544 वोट (41.12%) मिले जबकि राकेश धर त्रिपाठी को 2,45,505 मत (25.01%) मिले. इस चुनाव में कांग्रेस पांचवें स्थान पर खिसक गई.

सांसद का रिपोर्ट कार्ड

2014 में चुनाव जीतने वाले वीरेंद्र सिंह एक सामाजिक कार्यकर्ता और किसान हैं. उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के दोकती में हुआ था. उन्होंने स्नातक तक की शिक्षा हासिल की है. वह अब तक 3 बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं.

जहां तक उनके तीसरे संसदीय कार्यकाल में उनकी संसद में उपस्थिति का सवाल है तो उनकी उपस्थिति 91% (8 जनवरी, 2019) रही है. उन्होंने 26 बहस में हिस्सा लिया. बहस के दौरान उन्होंने कुल 9 बार सवाल उठाए. अब तक वर्तमान लोकसभा के चले कुल 16 सत्रों में उनकी 2 बार संसद में उपस्थिति 100% रही.

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भदोही साक्षर जिला होने के साथ-साथ लघु उद्योगों की नगरी है. यहां पर हिंदुओं और मुसलमानों की आबादी करीब-करीब बराबर है. 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां के मुकाबले बेहद नजदीकी रहे थे, ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि प्रदेश में बदले राजनीतिक समीकरण में सपा-बसपा गठबंधन और कांग्रेस में प्रियंका गांधी की राजनीति में एंट्री के बाद 2019 का लोकसभा चुनाव बेहद दिलचस्प हो गया है और अब देखना होगा कि यहां की जनता का क्या फैसला होता है.

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