जम्मू-कश्मीर की राजनीति के प्रमुख चेहरों में शुमार कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद सत्ता में हों या विपक्ष में, हर समय अपनी प्रासंगिकता बनाए रखते हैं. जम्मू-कश्मीर के एक छोटे से गांव में पैदा हुए गुलाम नबी आजाद ने तकरीबन 5 दशकों की पारी में अपनी सियासी सूझ-बूझ से ‘दिल्ली दरबार’ में गहरी पैठ बना ली. केंद्र में अब तक कई अहम पदों पर काम कर चुके आजाद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं.
‘दिल्ली दरबार’ में बनाए रखी अपनी अहमियत
तकरीबन पांच दशकों का राजनीतिक अनुभव रखने वाले गुलाम नबी आजाद यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी के करीबी नेताओं में से एक हैं. 70 साल के गुलाम नबी आजाद राजनीति के पुराने पंडित हैं. इंदिरा गांधी से लेकर राहुल गांधी तक के साथ काम करने का अनुभव उन्हें कांग्रेस की अग्रिम पंक्ति के नेताओं में शुमार करता है. हर दौर में गुलाम नबी आजाद ने ‘दिल्ली दरबार’ में अपनी अहमियत बनाए रखी.
उत्तर प्रदेश के रह चुके हैं प्रभारी
कांग्रेस में सत्ता परिवर्तन होने के बाद इन दिनों गुलाम नबी आजाद के पास कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं है. उत्तर प्रदेश के प्रभारी की जिम्मेदारी प्रियंका गांधी वाड्रा और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास चले जाने से अब उनके पास पार्टी में कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं है. केंद्र की सियासत में कोई बड़ी भूमिका न होने पर अब माना जा रहा कि गुलाम नबी आजाद एक बार फिर से राज्य का रुख कर सकते हैं. इससे पहले भी जब नई दिल्ली में अपने लिए कोई बड़ी भूमिका न मिलते देख आजाद ने जम्मू-कश्मीर में ही रहना मुनासिब समझा था.
रह चुके हैं जेएंडके के मुख्यमंत्री
हालांकि केंद्र में इतने बड़े ओहदों पर रहने के बाद अब आजाद के लिए राज्य में वापसी इतनी आसान भी नहीं रहने वाली. राज्य में लोकसभा चुनाव के साथ ही कुछ दिनों के भीतर विधानसभा चुनाव भी होने हैं. गुलाम नबी आजाद अपने अनुभव का फायदा उठाते हुए फिर से राज्य में कांग्रेस का बड़ा चेहरा बन सकते हैं. साल 2002 में भी आजाद केंद्र से राज्य का रुख करते हुए जम्मू-कश्मीर में बड़ी भूमिका में नजर आए थे. कांग्रेस में नई जान फूंकते हुए आजाद के ही नेतृत्व में पार्टी ने विधानसभा चुनाव लड़ा था. 2002 के चुनाव में कांग्रेस ने पीडीपी के साथ गठबंधन करते हुए जम्मू-कश्मीर में 3 प्लस 3 के फॉर्मूले पर सरकार बनाई थी. इस फॉर्मूले के तहत पहले तीन साल में पीडीपी के मुखिया मुफ्ती मोहम्मद सईद सीएम की कुर्सी पर बैठे और उसके बाद अगले तीन सालों के लिए गुलाम नबी आजाद मुख्यमंत्री बने.
जेएंडके की राजनीति में रखते हैं बड़ा ‘दखल’
गुलाम नबी आजाद ने दिल्ली में रहने के बाद भी जम्मू-कश्मीर की सियासत पर कभी अपनी पकड़ ढीली नहीं पड़ने दी. तमाम विवादों के बावजूद आज भी गुलाम नबी आजाद जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे बने हुए हैं. हालांकि इसके पीछे ये भी कहा जाता है कि गुलाम नबी आजाद दिल्ली में बैठकर भी राज्य की राजनीति में लगातार ‘दखल’ देते रहे हैं. इसी के चलते जम्मू-कश्मीर में बीते कई वर्षों में कांग्रेस का कोई बड़ा नेता पनप ही नहीं सका. राज्य में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने रहने के चलते ही दिल्ली में भी उन्हें लगातार तवज्जो मिलती रही है.
1980 में महाराष्ट्र से जीते पहला लोकसभा चुनाव
पहली बार गुलाम नबी आजाद 1980 में सातवें लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की वाशिम संसदीय सीट से लड़े और जीते. इसके बाद 1984 में भी वे इसी सीट से कामयाब हुए. इसके बाद 1990 से 96 तक आजाद महाराष्ट्र से राज्यसभा पहुंच गए. इसके बाद वे फिर जम्मू-कश्मीर से 1996 से 2002 तक राज्यसभा सांसद रहे. 2002 में उन्हें फिर जेएंडके कोटे से ही राज्यसभा भेजा गया, लेकिन 30 नवंबर 2005 को जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी होने पर उन्होंने 29 अप्रैल 2006 को राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया. 2008 में अमरनाथ यात्रा के लिए जमीन विवाद के चलते उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद यूपीए-2 में मनमोहन सरकार में आजाद देश के स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके हैं. 2014 में मोदी सरकार आने पर कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा में नेता विपक्ष बनाया. 2015 में आजाद फिर से जम्मू-कश्मीर से राज्यसभा पहुंचे.
डोडा जिले के भद्रवाह में हुआ जन्म
7 मार्च 1949 को डोडा जिले के भद्रवाह में सोटी गांव में पैदा हुए गुलाम नबी आजाद के पिता का नाम रहमतुल्ला और मां का नाम बसा बेगम है. 27 मार्च 1980 को उन्होंने शमीम देव से निकाह किया. उनके एक बेटा और एक बेटी है. शिक्षा की बात की जाए तो गुलाम नबी आजाद ने भद्रवाह के ही गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज से जूलॉजी में एमएससी की है. जम्मू और श्रीनगर के कॉलेज में भी उन्होंने पढ़ाई की है. भद्रवाह में ही 1973 में ब्लॉक कांग्रेस कमेटी में सचिव पद से सियासत में आगाज करने वाले गुलाम नबी ने अगले कुछ दशकों में ऐसी पैठ बनाई कि दिल्ली तक उनका जलवा बुलंद हो गया.
राहुल विश्वकर्मा