फारूक अब्दुल्ला: कश्मीर का वो नेता जो गाता है भजन, राम मंदिर का है पैरोकार, श्रीनगर से मैदान में

फारूक अब्दुल्ला जितने बेबाक हैं, उतने ही बिंदास भी. फारूक मंदिर में भजन भी गाते दिख जाते हैं. अयोध्या में राम मंदिर बनने की पैरवी भी करते हैं. फारूक ने कहा था कि अगर मंदिर बनता है तो एक पत्थर वे भी लेकर जाएंगे.

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जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला.

राहुल विश्वकर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 17 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 7:52 AM IST

जम्मू-कश्मीर की सियासत में बीते कई दशकों से अब्दुल्ला परिवार का अच्छा खास दखल रहा है. शेख अब्दुल्ला के बेटे फारूक अब्दुल्ला नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष हैं. 82 वर्षीय डॉ. फारूक अब्दुल्ला की राज्य की सियासत में कितनी अहमियत है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे तीन बार इस रियासत के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. बेबाक राय के लिए जाने जाने वाले फारूक अब्दुल्ला खुलकर पत्थरबाजी करने वाले लड़कों की हिमायत करते रहे हैं. श्रीनगर लोकसभा सीट से एक बार फिर से फारूक अब्दुल्ला चुनावी मैदान में हैं. यहां उनका मुकाबला पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के प्रत्याशी इरफान अंसारी और पीडीपी के आगा मोहसिन से है. दूसरे चरण के चुनाव में 18 अप्रैल को यहां वोटिंग है.

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मोदी सरकार की कश्मीर नीति के सख्त विरोधी

फारूक अब्दुल्ला 2019 में मोदी सरकार के खिलाफ बनने वाले महागठबंधन में प्रमुख चेहरों में से हैं. दिल्ली और कोलकाता में महागठबंधन की रैली में उन्होंने मोदी सरकार को कई मुद्दों पर घेरा था. पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद उन्होंने मोदी सरकार की कश्मीर नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि बीजेपी के कारण ही आज कश्मीर के लोग पिस रहे हैं. फारूक अब्दुल्ला जितने बेबाक हैं, उतने ही बिंदास भी. फारूक मंदिर में भजन भी गाते दिख जाते हैं. अयोध्या में राम मंदिर बनने की पैरवी भी करते हैं. फारूक ने कहा था कि अगर मंदिर बनता है तो एक पत्थर वे भी लेकर जाएंगे.

1982 में बने पहली बार मुख्यमंत्री, ऐसी रही सियासी पारी

8 सितंबर 1982 में पहली बार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने. उनका पहला कार्यकाल एक साल 298 दिन ही चला. इसके बाद 7 नवंबर 1986 को फारूक दूसरी बार मुख्यमंत्री बने. उनका दूसरा कार्यकाल 3 साल 73 दिन तक चला. 9 अक्टूबर 1996 को फारूक तीसरी बार सीएम बने. उन्होंने इस बार अपना कार्यकाल पूरा किया.

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UPA-2 में रह चुके हैं मंत्री

फारूक यूपीए-2 के दौरान केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं. फारूक अब्दुल्ला के पुत्र उमर अब्दुल्ला भी अपने वालिद के नक्शे-कदम पर चलते हुए बखूबी उनकी विरासत को संभाल रहे हैं. उमर भी राज्य की कमान संभाल चुके हैं. 5 जनवरी 2009 को वे राज्य के मुख्यमंत्री बने. उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया.

1937 में जन्म, जयपुर से ली MBBS की डिग्री

21 अक्टूबर 1937 को जन्मे फारूक अब्दुल्ला की मां का नाम बेगम अकबर जहां अब्दुल्ला है. फारूक अब्दुल्ला ने अपनी श्रीनगर में ही अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की. इसके बाद उन्होंने जयपुर स्थित एसएमएस मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री ली. इसके बाद उन्होंने लंदन में प्रैक्टिस भी की. इसी दौरान उन्होंने ब्रिटिश मूल की नर्स मौली से शादी की. फारूक के एक बेटा उमर और तीन बेटियां साफिया, हिना और सारा हैं. सारा ने राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट से शादी की.

पिता की मौत के बाद बने सीएम

फारूक अब्दुल्ला पहली बार 1980 में हुए आम चुनाव में श्रीनगर से सांसद चुने गए. इसके बाद 1981 में उन्हें नेशनल कॉन्फ्रेंस का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया. 1982 में पिता शेख अब्दुल्ला की मौत के बाद फारूक ने उनकी सियासी विरासत पूरी तरह संभालते हुए राज्य के मुख्यमंत्री बने. लेकिन फारूक अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. उनके बहनोई गुलाम मोहम्मद शाह ने मुखाल्फत कर दी, जिसके चलते वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. इसके बाद फारूक लंदन चले गए. 1996 में वे कश्मीर लौटे और 1996 में विधानसभा चुनाव लड़े. 1999 में उनकी पार्टी ने अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में बनी गठबंधन सरकार में शामिल हुई. इसके एवज में उनके बेटे उमर अब्दुल्ला को केंद्र में मंत्री पद मिला.

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2002 में राज्यसभा के रास्ते गए दिल्ली

2002 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उमर अब्दुल्ला ने पार्टी की कमान संभाल ली और फारूक अब्दुल्ला ने राज्य सभा के रास्ते दिल्ली की सियासत का रुख किया.  2009 में उन्हें फिर से चुन लिया गया, लेकिन 2009 के आम चुनाव में उन्होंने श्रीनगर लोकसभा सीट से जीत दर्ज की और कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री बने.

2014 में मिली हार, उपचुनाव में जीते

2014 के चुनाव में फारूक फिर से श्रीनगर सीट से ही लड़े, लेकिन इस बार उन्हें पीडीपी प्रत्याशी तारीक हमीद करा के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा. 2017 में हुए उपचुनाव में उन्होंने वापसी करते हुए बड़े अंतर से जीत दर्ज की.

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