कर्नाटक विधानसभा चुनाव के मतदान की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे मुकाबला काफी रोचक होता जा रहा है. बीजेपी दक्षिण के अपने एकलौते दुर्ग को बचाए रखने की जंग लड़ रही है तो कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए हाथ-पैर मार रही है. कर्नाटक में कांग्रेस नेताओं की तिकड़ी इस बार बीजेपी के लिए चुनौती बन गई है, जिसे बोम्मई-येदियुरप्पा पार नहीं पा रहे हैं.
कर्नाटक कांग्रेस में तीन बड़े चेहरे हैं, जो विधानसभा चुनाव को अंजाम देने में जुटे हैं. इसमें पहला कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार, दूसरा पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और तीसरा नाम पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे हैं. ये तिकड़ी कांग्रेस नेताओं की सिर्फ जोड़ी नहीं है बल्कि इसके पीछे कर्नाटक का सियासी समीकरण भी है. इसी के सहारे कांग्रेस एक बार फिर से बीजेपी से हाथों से सत्ता छीनने की कोशिश में जुटी है. ऐसे में कांग्रेस के तीनों नेताओं की कहानी...
कांग्रेस के संकटमोटक डीके शिवकुमार
कर्नाटक चुनाव की कमान कांग्रेस की तरफ से डीके शिवकुमार संभाल रहे हैं, जो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं. वह राजनीति के मंझे हुए और जोड़तोड़ के खिलाड़ी माने जाते हैं. सात बार के विधायक, कर्नाटक में हाई प्रोफाइल मंत्री भी रहे हैं. कांग्रेस का उन्हें संकटमोचक भी कहा जाता है. कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस का पूरा दारोमदार उन्हीं के कंधों पर है. 2013 में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की थी तो उस समय भी शिवकुमार प्रदेश अध्यक्ष थे. उन्हीं की अगुवाई में पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में आई थी. इस बार भी जब से उन्होंने पार्टी की कमान संभाली है, तब से बीजेपी को एक के बाद एक बड़ा सियासी झटका दे रहे हैं.
डीके शिवकुमार कर्नाटक की प्रभावशाली वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं. सूबे में वोक्कालिगा 11 फीसदी हैं, जो करीब 48 विधानसभा सीटों पर प्रभाव रखते हैं. वोक्कालिगा जेडीएस का कोर वोटबैंक माना जाता है. जेडीएस के संस्थापक देवगौड़ा और कुमारस्वामी वोक्कालिग्गा समुदाय से आते हैं. बीजेपी के पास वोक्कालिगा समुदाय का कोई प्रभावी चेहरा नहीं है तो जेडीएस की राजनीतिक ताकत कमजोर हुई है. ऐसे में डीके शिवकुमार के चलते वोक्कालिगा समुदाय का झुकाव इस बार कांग्रेस की तरफ दिख रहा है. इसके अलावा वह राज्य के सबसे अमीर नेताओं में से एक हैं. बीजेपी और जेडीएस दोनो के लिए वह चिंता का सबब बने हुए हैं.
कर्नाटक में दमदार चेहरा हैं सिद्धारमैया
कर्नाटक की सियासत के सबसे प्रभावी चेहरे के तौर पर सिद्धारमैया का नाम आता है. सिद्धारमैया ने अपना सियासी सफर एचडी देवगौड़ा के साथ शुरू किया था, लेकिन जेडीएस की कमान जब कुमारस्वामी को सौंपी गई तो पार्टी छोड़कर अलग हो गए. सिद्धारमैया ने कांग्रेस का दामन थामा और पार्टी के ओबीसी चेहरा बन गए. कर्नाटक की राजनीति में शून्य से शिखर तक पहुंचे. विधायक, मंत्री, उपमुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री तक रहे. कर्नाटक में पांच सालों तक मुख्यमंत्री रहने वालो में उनका नाम आता है.
सिद्धारमैया कर्नाटक के कुरुबा समुदाय से आते हैं, लेकिन उनकी अन्य समुदायों पर भी अच्छी खासी पकड़ है. वह राज्य में ओबीसी के प्रमुख चेहरा माने जाते हैं. वह स्पष्ट बोलने वाले और जमीन से जुड़े हुए नेता हैं, जिसके चलते जनता से सीधे संपर्क में रहते हैं. इस बार सिद्धारमैया ने ऐलान कर दिया है कि 2023 का कर्नाटक विधानसभा चुनाव उनके लिए आखिरी है, जिसके चलते लोगों के बीच उनके प्रति लोगों का काफी झुकाव है. राज्य में किसी भी नेता की लोकप्रियता के मामले में भी वह सबसे आगे हैं, जबकि बीजेपी के पास उनके कद का कोई नेता फिलहाल नहीं है.
मल्लिकार्जुन खड़गे के कद का मिलेगा लाभ
कर्नाटक में कांग्रेस का तीसरा चेहरा मल्लिकार्जुन खड़गे का है, जिनके हाथों में इन दिनों पार्टी की कमान है. खड़गे ने एक साधारण कार्यकर्ता के तौर पर अपने सियासी सफर की शुरुआत की और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तक का मुकाम हासिल किया. खड़गे ने अपने पांच दशकों से अधिक के राजनीतिक जीवन में तमाम उतार-चढ़ाव देखे हैं. कर्नाटक चुनाव में खड़गे ने पूरी ताकत झोंक रखी है, जिसके चलते कांग्रेस को सियासी लाभ मिलता दिख रहा है. वह दलित समुदाय से आते हैं, जो राज्य में बड़ी ताकत है. ऐसे में दलित वोटों को कांग्रेस के पक्ष में जोड़ने का सियासी तानाबना बुन रहे हैं. पार्टी को एकजुट रखने से लेकर सियासी समीकरण तक को साधने की वह कवायद कर रहे हैं.
कांग्रेस की तिकड़ी का जातीय समीकरण
कांग्रेस के ये सिर्फ तीन नेता ही नहीं बल्कि उनके पीछे मजबूत जातीय समीकरण भी है. डीके शिवकुमार वोक्कालिगा जाति से हैं, जो राज्य में 11 फीसदी है. मल्लिकार्जुन खड़गे दलित समुदाय से आते हैं, जिसकी आबादी राज्य में करीब 20 फीसदी है. वहीं, सिद्धारमैया कोरबा समुदाय से आते हैं, जो 7 फीसदी के करीब है. सिद्धारमैया की सिर्फ कोरबा समुदाय में ही नहीं बल्कि ओबीसी के बीच मजबूत पकड़ मानी जाती है. इस तरह से कांग्रेस अपने सिर्फ तीन नेताओं के जरिए 38 फीसदी वोटों का सियासी कॉम्बिनेशन बना रखा है. इसके अलावा मुस्लिम और ओबीसी के साथ-साथ इस बार लिंगायत वोटों पर भी कांग्रेस अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रही है. ऐसे में बीजेपी के लिए कांग्रेस की तिकड़ी ने कड़ी चुनौती पेश कर रखी है.
कुबूल अहमद