बिहार के एकमात्र मुस्लिम CM अब्दुल गफूर खान, जिन्हें जेपी आंदोलन के बाद गंवानी पड़ी थी कुर्सी

जेपी आंदोलन के कारण उनपर इस्तीफे का दबाव बना. इसके अलावा उनके शासन काल में ही 1975 में बिहार के समस्तीपुर में ललित नारायण मिश्रा की हत्या हो गई. ये घटनाएं खान के खिलाफ गईं और 1975 में कांग्रेस की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अब्दुल गफूर खान को हटाकर उनकी जगह जगन्नाथ मिश्रा को मुख्यमंत्री बना दिया.

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अब्दुल गफूर खान अब्दुल गफूर खान

सुजीत कुमार

  • नई दिल्ली,
  • 02 अक्टूबर 2020,
  • अपडेटेड 4:09 PM IST
  • अब्दुल गफूर खान 1973 में बने बिहार के मुख्यमंत्री
  • दो साल के भीतर गंवानी पड़ी CM की कुर्सी
  • अब्दुल गफूर खान के शासन काल में जेपी आंदोलन

बिहार की सियासत में जातीय समीकरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. सोशल इंजीनियरिंग के बहाने सभी दल जातीय समीकरण साधते हैं. और ऐसे ही मुस्लिम यादव समीकरण के जरिए लालू यादव ने प्रदेश की सत्ता संभाली और 15 साल तक राज किया. सूबे में मुस्लिम वोटरों को सभी साधते हैं लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि बिहार में आजादी के बाद अबतक एकमात्र मुस्लिम मुख्यमंत्री ही हुए- अब्दुल गफूर खान. वो भी सिर्फ दो साल तक ही सत्ता पर काबिज रह सके.

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बिहार की राजनीति में सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने के लिए मुस्लिम वोट निर्णायक साबित होता है. प्रदेश में करीब 16 फीसदी मुस्लिम आबादी है. इसलिए सभी राजनीतिक दल मुस्लिमों वोट पाने की जुगत में रहते हैं. आजादी के बाद से बिहार का मुस्लिम समुदाय परंपरागत रूप से कांग्रेस के साथ रहा था और 70 के दशक में सूबे को मुस्लिम मुख्यमंत्री के रूप में अब्दुल गफूर खान मिले. 

अब्दुल गफूर खान का राजनीतिक सफर

बिहार के गोपालगंज जिले में 18 मार्च 1918 में अब्दुल गफूर खान पैदा हुए. कहा जाता है कि वह बचपन से ही पढ़ने में तेज थे और देश के लिए कुछ करना चाहते थे. गोपालगंज से प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद अब्दुल गफूर खान पढ़ाई के लिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी चले गए और यहीं से इनका सियासी सफर शुरू हुआ. उसी समय देश में स्वतंत्रता संग्राम चरम पर था और अब्दुल गफूर खान भी आजादी की लड़ाई में कूद पड़े. कहते हैं इस दौरान उन्हें जेल भा जाना पड़ा.

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1973 में अब्दुल गफूर खान बने मुख्यमंत्री

अब्दुल गफूर खान 1952 में बिहार विधानसभा चुनाव में जीतकर विधायक बने. तब आजादी के बाद से लगातार कांग्रस पार्टी का मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कब्जा रहा. अब्दुल गफूर खान ने प्रदेश के 15वें मुख्यमंत्री के रूप में जुलाई 1973 में कुर्सी संभाली. लेकिन वह अपनी कुर्सी ज्यादा समय तक नहीं बचा सके. अब्दुल गफूर खान 2 जुलाई 1973 से 11 अप्रैल 1975 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. उस समय देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं. कहा जाता है कि खान अपनी ही पार्टी के नेताओं की साजिश के शिकार हुए और जल्द ही सत्ता की कुर्सी गंवानी पड़ी.

गफूर के शासन काल में बिहार में जेपी आंदोलन

मार्च 1974 में बिहार से जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में छात्र आंदोलन की शुरुआत हुई थी. उस समय बिहार के मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर खान थे. देखते ही देखते यह आंदोलन पूरे देश में फैल गया. 18 मार्च, 1974 को पटना में छात्रों और युवकों द्वारा आंदोलन शुरू किया गया था. बाद में इसका नेतृत्व जेपी ने किया था. 18 मार्च को विधान मंडल सत्र की शुरुआत होने वाली थी. दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को राज्यपाल संबोधित करने वाले थे. 

उधर, पटना के छात्र आंदोलनकारियों ने योजना बनाई कि वे राज्यपाल को विधान मंडल भवन में जाने से रोकेंगे और उनका घेराव करेंगे. इस योजना का पता लगने के कारण सत्ताधारी विधायक सुबह 6 बजे ही विधान मंडल भवन में आ गए. वहीं विपक्षी विधायकों ने राज्यपाल के अभिभाषण के बहिष्कार का निर्णय कर लिया, इसलिए वे वहां गए ही नहीं. उधर प्रशासन राज्यपाल को किसी भी कीमत पर विधान मंडल भवन पहुंचाने की कोश‍िश कर रहा था. 

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छात्रों पर पुलिस का लाठीचार्ज
 
राज्यपाल की गाड़ी को छात्रों ने रास्ते में रोक लिया. पुलिस प्रशासन ने जब छात्रों को रोकने की कोशिश की तो वे भड़क गए. पुलिस ने छात्रों पर लाठीचार्ज कर दिया. इसमें कई छात्र घायल हो गए. भीड़ बेकाबू हो गई और आंसू गैस के गोले छोड़े गए. लूटपाट और आगजनी होने लगी. इस घटना में कुछ छात्र मारे गए. जयप्रकाश नारायण (जेपी) से आंदोलन की कमान संभालने को कहा गया. जेपी ने शर्त रखी कि आंदोलन में कोई भी व्यक्ति किसी पार्टी से जुड़ा नहीं होना चाहिए. 

लोगों ने उनकी मांग मांग ली और राजनीतिक पार्टियों से जुड़े छात्र इस्तीफा देकर जेपी के साथ चले गए. इसमें कांग्रेस के भी कई छात्र शामलि थे. इसके बाद जेपी ने आंदोलन की कमान संभाल ली और बिहार के मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर खान से इस्तीफे की मांग की गई. 

क्यों गंवानी पड़ी कुर्सी?

कहा जाता है कि अब्दुल गफूर खान के खिलाफ उनकी ही पार्टी के नेताओं ने साजिश रची और उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी. केदार पांडे और जगन्नाथ मिश्रा उनके समकालीन नेता थे. इन लोगों के बीच कुर्सी की खींचतान चलती रही. लेकिन अब्दुल गफूर खान के मुख्यमंत्री रहते बिहार में कई अहम घटनाएं हुईं.

जेपी आंदोलन के कारण उन पर इस्तीफे का दबाव बना. इसके अलावा उनके शासन काल में ही 1975 में बिहार के समस्तीपुर में ललित नारायण मिश्रा की हत्या हो गई. ये घटनाएं खान के खिलाफ गईं और 1975 में कांग्रेस की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अब्दुल गफूर खान को हटाकर उनकी जगह जगन्नाथ मिश्रा को मुख्यमंत्री बना दिया. 

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समता पार्टी के गठन में अहम भूमिका

नीतीश कुमार ने जब राजद से अलग होकर नई समता पार्टी बनाई तो पार्टी के गठन में अब्दुल गफूर खान ने सक्रीय भूमिका निभाई. वह समता पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष भी रहे. 1996 में समता पार्टी के टिकट पर अब्दुल गफूर खान गोपालगंज से सांसद चुने गए. बाद में 1984 में राजीव गांधी की कैबिनेट में वह मंत्री भी बने. 10 जुलाई 2004 को लंबी बीमारी के बाद पटना में उनका निधन हो गया. उसके बाद से अबतक बिहार में कोई और मुस्लिम मुख्यमंत्री नहीं बन सका है. 

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