पटना में पालीगंज विधानसभा का एक गांव है अकबरपुर. ये इस विधानसभा का सबसे बड़ा गांव है. सवर्ण बाहुल्य इस गांव के युवाओं को भी 1992 से 2002 को वो दौर याद है जब उनके बचपन के दिन थे. मां इन्हें लड़कियों वाली फ्रॉक पहना के रखती थीं ताकि यदि गांव पर हमला हो तो इन बच्चों को लड़का समझ कर मार न दिया जाए. जातीय संघर्ष वाले खौफ के वो दिन खत्म हो चुके हैं. लेकिन उसकी यादें आज भी यहां के मतदाताओं की दिशा तय करती हैं.
दी लल्लनटॉप को सुनाई डर की कहानी
चुनाव यात्रा में अकबरपुर पहुंची दी लल्लनटॉप की टीम को यहां के युवा और पेशे से टेक्नीकल कंसल्टेंट नीतीश कुमार ने बताया कि बचपन में हमें फ्रॉक पहना कर रखा जाता था, इसलिए हम आज जिंदा है. हम छोटे थे लेकिन आज भी उन दिनों की हल्की यादें जेहन में मौजूद हैं.
महाराष्ट्र में टेक्सटाइल्स इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे अरुणेश कुमार ने बताया कि पूरे बिहार के लिए आज रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है. तेजस्वी भले ही 10 लाख नौकरी की बात कर रहे हैं लेकिन उन पर भरोसा नहीं कर सकते क्योंकि दोबारा जंगलराज नहीं चाहिए. नीतीश का 15 साल भी देख चुके हैं.
हथियार उठा कर बचाई अपनों की जान
गांव के एक बुजुर्ग नीतीश की एक मामले में तारीफ करते हैं. वो कहते हैं कि नीतीश के आने के बाद कानून-व्यवस्था में बेहतरी देखने को मिली. उसके पहले तो हमें अपनी रक्षा के लिए हथियार उठाना पड़ा था. उन्होंने बताया कि मैं खुद रणबीर सेना में था. हम अपने परिवार और जमीन की रक्षा के लिए मुकाबला करते थे. 1992 में एमसीसी, माले और पीपुल्स वार ग्रुप ने हमारे गांव पर हमला किया था. करीब साढ़े सात से आठ घंटे तक मुठभेड़ चली थी. दोनों तरफ के कई लोग मारे गए थे. पुलिस प्रशासन को इसकी जानकारी थी लेकिन वो लोग तमाशा देख रहे थे.
लाल झंडे पर नहीं होती थी कार्रवाई
एक बुजुर्ग ने ये भी बताया कि लालू के राज में वो साफ कहते थे कि हम लाल झंडा गाड़ने पर कार्रवाई नहीं करेंगे. वो लोग किसी भी खेत पर लालझंडा लगाकर कब्जा कर लेते थे. 2200 रकबा जमीन पर हम कई सालों तक खेती नहीं कर सके थे. संघर्षों के बाद हमें जमीन मिली. नीतीश ने भले सुशासन दिया लेकिन अब उनको दोबारा मौका नहीं देना है. ना ही जंगलराज को वापस लाना चाहते हैं. अब मुद्दे पर मतदान होगा.