बंगाल SIR में कटे नामों का बिहार-यूपी कनेक्शन! जानिए अब क्यों शुरू हो गया नया बवाल

चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल में एसआईआर प्रक्रिया का ड्राफ्ट जारी कर दिया है, जिसमें करीब 58 लाख लोगों के नाम काट दिए हैं. बंगाल में ज्यादातर हिंदी भाषा बोलने वाले लोगों के नाम काटे हैं, जबकि मुस्लिम बहुल सीटों पर नाम कम कटे हैं. ऐसे में बीजेपी और टीएमसी के बीच सियासी बवाल छिड़ गया है.

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बंगाल में एसआईआर ड्राफ्ट पर टीएमसी और बीजेपी में फाइट (Photo-ITG) बंगाल में एसआईआर ड्राफ्ट पर टीएमसी और बीजेपी में फाइट (Photo-ITG)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 18 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 10:55 AM IST

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने राज्य की वोटर लिस्ट की विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया का कार्य पूरा किया. एसआईआर की ड्राफ्ट वोटर लिस्ट मंगलवार को जारी कर दी गई है. ड्राफ्ट के अनुसार, मतदाताओं की संख्या 7.66 करोड़ से घटकर 7.08 करोड़ रह गई है, इस प्रकार, बंगाल में 58 लाख 20 हजार 898 वोटरों के नाम हटाए गए हैं.

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चुनाव आयोग के मुताबिक, SIR प्रक्रिया के बाद वोटर लिस्ट से नाम हटाए जाने के पीछे मुख्य कारण मतदाता की मृत्यु, स्थायी पलायन, डुप्लीकेशन (दो जगह नाम होना) और गणना फॉर्म जमा न करना शामिल हैं. हालांकि, यह सूची अभी अंतिम नहीं है; अगले चरण में दावों और आपत्तियों के बाद इसमें बदलाव हो सकता है.

बंगाल में एसआईआर के पहले चरण के बाद जो वोटर लिस्ट का ड्राफ्ट सामने आया है, उसमें जिन लोगों के नाम हटाए गए हैं, उसमें ज्यादातर हिंदी बोलने वाले हैं. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक ड्राफ्ट के आंकड़ों का विश्लेषण करते हैं तो पता चलता है कि जिन विधानसभा क्षेत्रों में हिंदी भाषी आबादी ज्यादा है, वहां वोटरों के नाम सबसे ज्यादा कटे हैं जबकि मुस्लिम बहुल इलाके में नाम कम काटे गए हैं.

हिंदी भाषियों के नाम अधिक हटे

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बंगाल में एसआईआर के पहले चरण के बाद जो ड्राफ्ट सामने आया है, उसमें हटाए गए नामों में बड़ी संख्या हिंदी भाषियों की है, मीडिया रिपोर्ट्स और आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि जिन विधानसभा क्षेत्रों में हिंदी भाषी आबादी अधिक है, वहां वोटरों के नाम सबसे ज्यादा कटे हैं, जबकि मुस्लिम बहुल इलाकों में नाम कम हटाए गए हैं.

सीटों के अनुसार विवरण:

10 सीटों पर सर्वाधिक कटौती: कोलकाता और उससे सटे हुए विधानसभा क्षेत्रों में बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम हटे हैं. कोलकाता उत्तर जिले में 25.92% और कोलकाता दक्षिण जिले में 23.82% नाम हटाए गए हैं.

 

  • जोरासांको: 36.66 फीसदी

  • चौरंगी: 35.45 फीसदी

  • हावड़ा उत्तर: 26.89 फीसदी

  • कोलकाता पोर्ट: 26.09 फीसदी

  • भवानीपुर (ममता बनर्जी की सीट): 21.55 फीसदी

  • बैरकपुर: 19.01 फीसदी

  • आसनसोल उत्तर: 14.71 फीसदी

  • आसनसोल दक्षिण: 13.68 फीसदी

इन क्षेत्रों में हिंदी भाषी मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है, राजनीतिक रूप से इन सीटों पर बीजेपी की पकड़ मजबूत मानी जाती है.

मतुआ समुदाय और बीजेपी की चिंता

पश्चिम बंगाल की सियासत में बीजेपी के लिए मतुआ समुदाय अत्यंत महत्वपूर्ण है, ड्राफ्ट के अनुसार, मतुआ बहुल इलाकों में भी काफी नाम कटे हैं,

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  • कसबा (दक्षिण 24 परगना): 17.95 फीसदी

  • सोनारपुर दक्षिण: 11.29 फीसदी

  • बनगांव उत्तर (उत्तर 24 परगना): 9.71 फीसदी

हिंदी भाषी और मतुआ समुदाय के नाम कटने का सीधा असर बीजेपी की राजनीति पर पड़ सकता है, क्योंकि ये दोनों वर्ग पार्टी के कोर वोटबैंक माने जाते हैं.

यूपी और बिहार का कनेक्शन

पश्चिम बंगाल सालों से बिहार और यूपी जैसे पड़ोसी राज्यों से आने वाले कई प्रवासियों का ठिकाना रहा है. वे पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं. एसआईआर प्रक्रिया के दौरान शायद अपनी मूल जगह को चुना हो, क्योंकि यह उनकी प्राथमिक पहचान और ज़मीन से जुड़ा है. इसलिए हिंदी बोलने वाले इलाकों में ज़्यादा नाम काटे जाने के मामले सामने आए हैं.

एसआईआर ड्राफ्ट का डेटा दिखाता है कि मतुआ और गैर-बंगाली प्रवासी मज़दूर आबादी को सबसे ज़्यादा बाहर किए जाने का सामना करना पड़ सकता है. इसीलिए बंगाल में एसआईआर प्रक्रिया के दौरान बड़ी संख्या में हिंदी भाषा बोलने वाले मतुआ समुदाय के लोगों के नाम कटे हैं.

पूर्व सांसद और CPI(M) नेता सुजान चक्रवर्ती के अनुसार, हिंदी भाषी क्षेत्रों में नाम कटने की वजह यह हो सकती है कि वहां बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूर रहते हैं. संभव है कि उन्होंने अपने गृह राज्यों की वोटर लिस्ट में नाम रखने का फैसला किया हो, डेटा यह भी संकेत देता है कि मतुआ और गैर-बंगाली प्रवासी आबादी को इस प्रक्रिया में सबसे ज्यादा बाहर किए जाने का सामना करना पड़ा है.

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बीजेपी के लिए क्या टेंशन बढ़ाएगी?

पश्चिम बंगाल की सियासत में बीजेपी के लिए मतुआ समुदाय काफी अहम माने जाते हैं. ड्राफ्ट के लिहाज से एसआईआर प्रक्रिया के दौरान मतुआ समुदाय बहुल इलाकों में भी काफी नाम कटे हैं. दक्षिण 24 परगना की कसबा सीट से 17.95 फीसदी और सोनारपुर दक्षिण सीट से 11.29 फीसदी नाम हट गए. उत्तर 24 परगना के बनगांव उत्तर में 9.71 फसदी वोटरों का नाम हट गया है.

हिंदी भाषा बोलने वाले मतदाताओं और मतुआ समुदाय को नाम काटे जाने का सीधा असर बीजेपी की राजनीति पर पड़ सकता है. बंगाल में दोनों ही बीजेपी को कोर वोटबैंक माने जाते हैं. इन्हीं वोटों के सहारे बीजेपी अपने सियासी आधार को मजबूत करने की कवायद कर रही है, लेकिन एसआईआर प्रक्रिया के पहले दौर में इन नामों के कटने से बीजेपी के लिए किसी टेंशन से कम नहीं है.

मुस्लिम बहुल इलाके में कम नाम कटे

बंगाल में एसआईआर प्रक्रिया के पहले ड्राफ्ट में मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों पर बहुत कम नाम हटाए गए हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक मुर्शिदाबाद में 66.3 फीसदी और मालदा में 51.6 फीसदी मुस्लिम आबादी है. मुर्शिदाबाद में केवल 4.84 फीसदी और मालदा में मात्र 6.31 फीसदी मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं. बंगाल के किसी भी विधानसभा सीट पर मुस्लिमों के नाम कटने का आंकड़ा 10 फीसदी से ऊपर नहीं गया.

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मुर्शिदाबाद की डोमकल सीट पर 3.4 फीसदी, रेजिनगर सीट प 5.04 फीसी और शमशेरगंज सीट पर 6.86 फीसदी नाम काटे गए हैं. मालदा की मुस्लिम बहुल मानिकचक सीट में भी सिर्फ 6.08 फीसदी नाम हटे हैं. 50 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले चोपड़ा में 7.44 फीसदी, गोलपोखर में 7.03 फीसदी, इस्लामपुर में 8.17 फीसदी और चाकुलिया में 8.5 फीसदी वोट काटे गए हैं. मुस्लिम बहुल किसी भी सीट पर 10 फीसदी से कम वोट ही काटे गए हैं.

बीजेपी के मुद्दे की निकली हवा-टीएमसी

टीएमसी के महासचिव और सांसद अभिषेक बनर्जी ने कहा कि चुनाव आयोग के एसआईआर के बाद ड्राफ्ट वोटर लिस्ट ने बीजेपी के झूठ को बेनकाब कर दिया है कि बंगाल में एक करोड़ रोहिंग्या और बांग्लादेशी रह रहे हैं. चुनाव आयोग के आंकड़ों के हवाला देते हुए बनर्जी ने कहा कि चुनाव आयोग कह रहा है कि राज्य में करीब 1.83 लाख फर्जी वोटर पाए गए, आगे उन्होंने कहा कि उन्हें (बीजेपी) बंगाल को घुसपैठियों का अड्डा कहकर बदनाम करने के लिए लोगों से माफी मांगनी चाहिए.

अभिषेक बनर्जी ने कहा कि बीजेपी जिस तरह सभी बंगालियों को बांग्लादेशी कहकर बदनाम कर रही है, वह शर्मनाक है. यह अब रुकना चाहिए और उन लोगों को माफी मांगनी चाहिए. साथ ही टीएमसी प्रवक्ता अरूप चक्रवर्ती ने कहा, बीजेपी का नैरेटिव झूठ पर आधारित है. केंद्र ने जनगणना से पहले SIR करवाया. जनगणना के ज़रिए असली सच्चाई सामने आ जाती. ड्राफ्ट लिस्ट से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग बंगाल में हैं, बांग्लादेश से घुसपैठिए नहीं.

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टीएमसी के दवाब में काटे गए नाम-बीजेपी

वरिष्ठ बीजेपी नेता राहुल सिन्हा ने आरोप लगाया कि टीएमसी के दबाव के चलते बूथ लेवल अधिकारी निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर पाए. उन्होंने बताया कि हमने इस बारे में पहले ही चुनाव आयोग को बता दिया है. पश्चिम बंगाल के नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि एसआईआर प्रक्रिया के लिए निर्वाचन आयोग राज्य प्रशासन पर निर्भर करता है. पश्चिम बंगाल में प्रशासन जानबूझकर SIR के दौरान मतदाता सूची में हेरफेर किया गया है.

बीजेपी ने निर्वाचन आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को पत्र लिखकर एसआईआर में घोटालेबाजी का आरोप लगाया था. उन्होंने ममता सरकार द्वारा इस पूरी प्रक्रिया के दौरान तटस्थता के सिद्धांत का उल्लंघन करने का और पुलिस का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया था.

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