बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में गुरुवार को हुए मतदान ने राज्य के चुनावी इतिहास में एक नया चैप्टर लिख दिया है. 121 निर्वाचन क्षेत्रों में लगभग 3.75 करोड़ पात्र मतदाताओं में से रिकॉर्ड 64.66 प्रतिशत ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने इस भागीदारी को बिहार के इतिहास में अब तक का सबसे ज्यादा मतदान बताते हुए इसे उत्सवी माहौल में संपन्न हुए लोकतंत्र के महापर्व के रूप में दर्ज किया.
इस अभूतपूर्व मतदान प्रतिशत ने न केवल राजनीतिक दलों के बीच उत्साह पैदा किया है, बल्कि चुनावी विश्लेषकों के लिए भी यह एक जटिल पहेली बन गया है कि यह भारी मतदान किस राजनीतिक दिशा का संकेत दे रहा है. क्या ये सत्तारूढ़ एनडीए के प्रति निरंतरता में विश्वास या विपक्षी महागठबंधन के पक्ष में परिवर्तन की एक खामोश लहर है?
यह उच्च मतदान प्रतिशत सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी महागठबंधन दोनों को अपनी-अपनी जीत का आधार नजर आ रहा है. दोनों प्रमुख गठबंधनों ने इस उत्साहपूर्ण भागीदारी को अपने पक्ष में बढ़ते जनसमर्थन के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया है, जिससे राज्य का राजनीतिक तापमान और अधिक बढ़ गया है. महागठबंधन का आत्मविश्वास अलग कहानी कह रहा है.
आरजेडी नेता और महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने भारी मतदान के लिए बिहार की जनता का आभार व्यक्त किया और पूरे विश्वास के साथ दावा किया कि मैं अब पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि आपने महागठबंधन की जीत सुनिश्चित कर दी है. तेजस्वी यादव ने अपने चुनाव अभियान को 'हर घर को रोज़गार' के अभूतपूर्व वादे और युवाओं की आकांक्षाओं पर केंद्रित किया है.
बिहार चुनाव की विस्तृत कवरेज के लिए यहां क्लिक करें
बिहार विधानसभा की हर सीट का हर पहलू, हर विवरण यहां पढ़ें
महागठबंधन का मानना है कि यह उच्च मतदान दर सत्ता विरोधी लहर 'एंटी इनकंबेंसी' को दर्शाती है, जहां बड़ी संख्या में असंतुष्ट मतदाता परिवर्तन के लिए बाहर निकले हैं. कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने भी इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि उच्च मतदान प्रतिशत इस ओर इशारा करता है कि हमें स्पष्ट बहुमत मिलने जा रहा है. वहीं दूसरी ओर एनडीए के आत्मविश्वास में ज्यादा बढ़ोतरी दिख रही है. उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने विपक्षी दावों को खारिज करते हुए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि आज जिन सीटों पर मतदान हुआ, उनमें से हम लगभग 100 सीटें जीतने जा रहे हैं.
एनडीए की कुल सीटें 2010 के 206 सीटों के रिकॉर्ड को पार कर जाएगी. 20 वर्षों से राज्य की सत्ता में रहा एनडीए गठबंधन, आरजेडी-कांग्रेस के शासनकाल के कथित जंगल राज के विपरीत अपनी सुशासन की छवि, महिला सुरक्षा और केंद्र तथा राज्य सरकार द्वारा किए गए विकास कार्यों (सड़क, बिजली, शौचालय) पर भरोसा कर रहा है. उनका तर्क है कि महिला मतदाताओं और सुशासन के समर्थकों ने एनडीए की निरंतरता में विश्वास व्यक्त करने के लिए भारी संख्या में वोट किया है.
उधर, बदलाव का दावा करते हुए जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर का मानना है कि ये रिकॉर्ड मतदान तीव्र बदलाव की चाहत का प्रतीक है. उन्होंने दावा किया कि जनता यथास्थिति से ऊब चुकी है और 14 नवंबर के बाद, जब वोटों की गिनती होगी, बिहार में एक नई सरकार होगी. हालांकि, चुनावी इतिहास में मतदाता मतदान प्रतिशत का विश्लेषण अक्सर जटिल रहा है. सैद्धांतिक रूप से, उच्च मतदान को अक्सर सत्ता-विरोधी लहर के साथ जोड़ा जाता है, जहां बड़ी संख्या में असंतुष्ट मतदाता मौजूदा सरकार को हटाने के लिए वोट डालने आते हैं. हालांकि, हालिया चुनावी रुझान यह दिखाते हैं कि यह निष्कर्ष हमेशा सही नहीं होता है.
हाल के कुछ विधानसभा चुनावों में उच्च मतदान प्रतिशत ने सत्ता-विरोधी जनादेश को दर्शाया. उदाहरण के लिए, 2023 में राजस्थान और छत्तीसगढ़ दोनों में पिछले चुनावों (2018) की तुलना में मतदान प्रतिशत में वृद्धि देखी गई, जिसके परिणामस्वरूप वहां सत्ता परिवर्तन हुआ और मतदाताओं ने विपक्ष को चुना. दूसरी ओर, महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों में, सत्ता-समर्थक जनादेश के साथ-साथ मतदान प्रतिशत में भी उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई.
यह इंगित करता है कि मतदाता केवल असंतोष के कारण ही नहीं, बल्कि मौजूदा सरकार के प्रति गहरे विश्वास और समर्थन को व्यक्त करने के लिए भी उत्साह से वोट करते हैं. मुख्य निर्वाचन अधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल ने विशेष रूप से उल्लेख किया है कि महिलाएँ काफी उत्साह के साथ बड़ी संख्या में वोट डालने के लिए आईं. यह महिला मतदाताओं की बढ़ती राजनीतिक जागरूकता और सुरक्षा एवं कल्याणकारी योजनाओं में उनकी बढ़ती हिस्सेदारी को दर्शाता है, जिसके लाभार्थी एनडीए सरकार की योजनाओं के तहत बड़ी संख्या में हैं.
बिहार में 64.66% जैसे रिकॉर्ड-तोड़ मतदान के पीछे निम्नलिखित कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. इसमें युवाओं और महिलाओं की निर्णायक भूमिका की तरफ भी देखना होगा. तेजस्वी यादव ने 'रोजगार' के मुद्दे को केंद्र में रखा, जिससे राज्य के बड़े युवा वर्ग में उत्साह बढ़ा. वहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने महिला सुरक्षा और कल्याण योजनाओं पर ज़ोर दिया, जिसने महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाया है.
दूसरी तरफ मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) भी एक फैक्टर रहा. ईसीआई ने एसआईआर के बाद यह पहला चुनाव कराया है, जिससे मतदाता सूची अधिक सटीक और अद्यतन हुई होगी. सूची में नए और सही मतदाताओं के शामिल होने से मतदान प्रतिशत पर सकारात्मक असर पड़ा. आमने- सामने यानी सुशासन बनाम जंगलराज की फाइट के दो प्रमुख नैरेटिव के इर्द-गिर्द केंद्रित रहा. इस स्पष्ट ध्रुवीकरण ने दोनों खेमों के समर्थकों को अपने उम्मीदवार के पक्ष में एकजुट होकर वोट डालने के लिए प्रेरित किया.
उच्च मतदान प्रतिशत को लेकर कई अन्य लोगों की राय जुदा भी है. बिहार की राजनीति को नजदीक से समझने वाले लोगों से बातचीत के बाद ये निष्कर्ष भी निकल रहा है कि चीजें पहले से काफी बदल गई हैं. लोगों में अवेयरनेस आ गया है. महामारी और लॉकडाउन के बाद मतदाताओं में सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों के प्रति जागरूकता बढ़ी है. कई लोगों ने अपनी समस्याओं के समाधान के लिए मतदान को एक महत्वपूर्ण उपकरण माना होगा, ऐसा भी हो सकता है.
जानकार मानते हैं कि बिहार में यह रिकॉर्ड-तोड़ मतदान दर एक द्विअर्थी संकेत है. यह या तो स्थायित्व और सुशासन की निरंतरता में मतदाताओं के नए सिरे से विश्वास का सूचक है, या फिर बेरोजगारी और आर्थिक असमानता के चलते परिवर्तन की तीव्र भूख का प्रदर्शन है. बिहार का मतदाता पारंपरिक रूप से जातिगत समीकरणों, विकास के एजेंडे, और नेतृत्व की छवि के जटिल मिश्रण के आधार पर वोट करता रहा है. 14 नवंबर को मतगणना के दिन जब मतपेटियां खुलेंगी, तभी स्पष्ट हो पाएगा कि यह 'उत्सवी माहौल' किसके पक्ष में 'ऐतिहासिक जीत' लेकर आया है.
सुजीत झा