जानिए सिरका बेचकर करोड़ों कमाने वाले इस शख्‍स की कहानी

बस्ती में रहने वाले सभापति शुक्ला के एक आइडिया ने पूरे गांव की तकदीर बदल दी. जानिए उनकी दिलचस्‍प कहानी...

Advertisement
सभापति शुक्ला सभापति शुक्ला

स्नेहा

  • बस्‍ती ,
  • 06 फरवरी 2016,
  • अपडेटेड 2:51 PM IST

हौसले बुलंद हो तो नामुमकिन काम भी मुमकिन हो जाता है. इस कहावत को सभापति शुक्ला ने सच कर दिखाया है. इसकी वजह भी बेहद रोचक है क्‍योंकि उन्‍होंने सिरका बेचकर करोड़ों की कमाई कर मिसाल कायम कर दी है. यही नहीं अब उनके गांव केसवापुर को सिरकेवाले गांव के नाम से जाना जाता है. जानिए सभापति शुक्ला की बेहद दिलचस्प के बारे में:

Advertisement

कहां से आया बिजनेस का आइडिया:
सभापति शुक्ला की पत्नी ने घर में इस्तेमाल करने के लिए 50 लीटर सिरका बनाया. सिरका ज्यादा होने के कारण सभापति शुक्ला ने उस सिरके को अपने दोस्तों में बांट दिया. घर में बने सिरके का स्वाद सभी को इतना पसंद आया कि लोग फिर से डिमांड करने लगे. यही से सभापति को बिजनेस का आइडिया आया. घर में बने सिरके को पैक करके वो बेचने लगे. मुनाफा हुआ तो पूरा परिवार सिरके के बिजनेस में लग गया.

बिजनेस की शुरुआत:
जब शुरू में इन्होंने सिरका बनाकर दोस्तों में बांटना शुरू किया तो उनकी जमकर आलेचना भी हुई. यहां तक की दोस्तों ने उन्हें सिरका वाले बाबा जी कहकर बुलाना शुरू कर दिया. इन आलोचनाओं को सकारात्‍म लेते हुए   सभापति ने अपनी ढृढ़ ईच्छा शक्ति से व्यापक पैमाने पर सिरका बनाना शुरू किया.
यही नहीं उन्‍होंने सिरके की इंडस्ट्री के रूप में गांव को तब्दील कर दिया. यह सिरका अब यूपी ही नहीं देश के अन्य प्रदेशों में भी पसंद किया जाने लगा है.

Advertisement

बदली पूरे गांव की तस्‍वीर:
एनएच 28 पर बस्ती से 55 किलो मीटर दूरी पर बसा गांव केसवापुर कभी अपने दुर्दशा पर आंसू बहा रहा था. यहां के लोग रोजगार की तलाश में बड़े शहरों की तरफ रोजी रोटी की तलाश करने जाते थे. लेकिन एक नई सोच ने पूरे गांव के लोगों के लिए तरक्की का रास्ता खोल दिया. आज हालात ये हैं कि गांव के लोग सिरका व्यवसाय से जुड़ कर गांव में ही रोजगार पैदा कर अपनी आजीविका चला रहे हैं.
यह सब सभापति की मेहनत का नतीजा है कि अब केसवापुर गांव देश के कई प्रदेशों में सिरका वाले गांव के नाम से जाने जाना लगा है. हालांकि इस पूरी कहानी में 15 वर्ष का समय जरूर लगा लेकिन आज इस गांव का कोई भी युवा बेरोजगार नहीं है.

क्‍या है मुनाफा:
200 लीटर सिरका निर्माण में दो हजार रुपये की लागत आती है. 2 हजार रुपये प्रति ड्रम बचत भी होती है. अकेले शुक्ला जी के यहां 40 से 50 महिलाएं रोजगार में लगी हुई हैं.

सफलता का सिलसिला:
सभापति ने एक लीटर सिरका फैजाबाद की दुकान में बेचेने से काम शुरू किया था. धीरे-धीरे जिन दुकानों में सिरका गया वहां से उसकी डिमांड बढ़ती गई. बस फिर क्या था, वह जब इस व्यवसाय से जुड़े तो उन्‍होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. आज वह लाखों लीटर सिरके का निर्माण कर करोड़ों रुपये का वार्षिक टर्न ओवर कमा रहे हैं.

Advertisement

अब यह सिरका उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्, पंजाब, बंगाल, दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश समेत अन्य राज्य में सप्लाई होता है. युवा वर्ग अब अपने गांव में ही रोजगार कर रहे है. सरकार की ओर से किसी सहायता के बगैर शुरू की गई इस सिरका इंडस्‍ट्री में महिलाएं भी बराबर की हिस्सेदारी निभा रही है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement