क्या आपने कभी सोचा है कि दुनिया में कोई ऐसा भी देश हो सकता है, जहां बच्चियों को खेलने की आजादी न हो. जी हां, एक देश ऐसा भी है और उसका नाम है सऊदी अरब. यहां बच्चियों को फील्ड में खेलने की अनुमति नहीं दी जाती.
लेकिन खबर है कि अब इसकी आजादी दे दी गई है. अब वे स्कूलों में खेल सकेंगी.#FIFA World Cup शुरू होने के 20 साल बाद भारत हुआ क्वालिफाई, जानें फिर क्यों नहीं खेल सका मैच
दरअसल, सऊदी में 65 फीसदी महिलाओं का वजन सामान्य से ज्यादा है. यानी वहां की 65 प्रतिशत महिलाएं मोटापे की चपेट में हैं. इस बाबत वहां के शिक्षा मंत्रालय ने अगले शैक्षिक सत्र से सभी सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए शारीरिक शिक्षा (फिजिकल एजुकेशन) का विषय अनिवार्य कर दिया है. हालांकि सऊदी में महिलाएं अपने अधिकारों और खेलों में भाग लेने की मांग लंबे समय से कर रही थीं.
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खेलों और शारीरिक गतिविधियों में लोगों की कम दिलचस्पी के कारण बढ़ने वाला मोटापा सरकार की चिंता का कारण बना हुआ है. सऊदी में महज 13 प्रतिशत आबादी ही हफ्ते में एक दिन व्यायाम करती है. सरकार इसे 40 फीसदी करना चाहती है, लिहाजा सरकार ने विजन 2013 के तहत देश के लोगों की खेलों में दिलचस्पी बढ़ाने के लिए कई कदम उठा रही है.
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हालांकि मौजूदा सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने यह बात भी स्पष्ट कर दी है कि लड़कियों को शारीरिक शिक्षा की पढ़ाई धीरे-धीरे और इस्लामिक शरिया कानूनों के अनुसार ही करवाई जाएगी.
बता दें कि सऊदी में महिलाओं को लेकर काफी रूढ़िवादी मानसिकता है. महिलाओं को घर से बाहर निकलने पर खास नियमों का पालन करना होता है. जैसे, वे तंग कपड़ों में दिखें, पूरा शरीर ढका हो आदि. यही नहीं, कट्टरपंथी महिलाओं के गाड़ी चलाने का भी विरोध करते हैं. सार्वजनिक स्थानों पर भी महिलाओं और पुरुषों के प्रवेश द्वार भी अलग होते हैं. पहली बार 2012 के लंदन ओलिंपिक में महिलाएं सऊदी अरब की टीम का हिस्सा बनीं थी. रियो डी जनेरियो ओलिंपिक में देश की ओर से सिर्फ चार महिलाओं ने हिस्सा लिया था.
वंदना भारती