देश के लिए एथलेटिक्स में जीता गोल्ड मेडल, आज रेहड़ी लगाने को है मजबूर...

दिल्ली के पहाड़गंज इलाके में रहने वाले राजकुमार तिवारी ने स्केटिंग में देश के लिए गोल्ड मेडल जीत कर काफी नाम कमाया है, लेकिन गरीबी की वजह से वे पुरानी दिल्ली में रेहड़ी लगाने का काम करते हैं...

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Rajkumar Tiwari Rajkumar Tiwari

विष्णु नारायण

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  • 19 मई 2016,
  • अपडेटेड 6:31 PM IST

कहते हैं कि कड़ी मेहनत और संघर्ष के दम पर इंसान कुछ भी हासिल कर सकता है. पहाड़ का सीना चीर सकता है. समंदर पर बांध बना सकता है. हिमालय फतह कर सकता है. तूफान की रफ्तार से भी तेज दौड़ सकता है और भी बहुत कुछ. और इसी क्रम में आते हैं दिल्ली के पहाड़गंज इलाके में रहने वाले राजकुमार तिवारी.
वे स्केटिंग करते हैं. उनके घर-परिवार की माली हालत बेहद खराब है इसके बावजूद वे साल 2013 में दक्षिण कोरिया में आयोजित स्पेशल ओलम्पिक वर्ल्ड विंटर गेम्स में भारत के लिए गोल्ड मेडल जीत चुके हैं.

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देश के लिए मेडल जीतने पर मिलीं सिर्फ शाबाशियां...
राजकुमार कहते हैं कि उनकी गलती सिर्फ इतनी है कि गरीब होने के बावजूद उन्होंने स्केटिंग जैसे महंगे खेल को चुना. साल 2013 में जब उन्होंने देश के लिए गोल्ड मेडल जीता तो उन्हें खूब शाबाशियां मिलीं, वे सुर्खियों में भी बने रहे लेकिन यह चांदनी सिर्फ चंद दिनों तक टिकी. कुछ लोगों ने शुरुआती दिनों में सपोर्ट तो किया लेकिन यह लंबा नहीं चला.
वे ओलम्पिक के लिए क्वालिफाई करने का सपना देखते हैं लेकिन उनके पास बेहतर ट्रेनिंग और कोच को देने के पैसे तक नहीं हैं. कई बार तो हालात ऐसे बन पड़ते हैं कि उनके पास स्केट भी नहीं होते.

लोग मदद का वादा करते हैं और भूल जाते हैं...
आप इस बात को जान कर हैरान हो जाएंगे कि इस खिलाड़ी के पास ट्रेनिंग के भी पैसे नहीं होते. गुड़गांव के एक बड़े मॉल में उन्हें एक घंटे स्केटिंग के 550 रुपये देने होते हैं और कई बार तो उनके पास इतने पैसे भी नहीं होते. जब वे वहां स्केटिंग करते हैं तो ऐसे कई लोग होते हैं जो उनकी प्रशंसा करते हैं. मदद के वादे भी करते हैं लेकिन बाद में भूल जाते हैं.
उनके पास इतने पैसे भी नहीं होते कि वे एक ट्रेनर हायर कर सकें. गौरतलब है कि एक स्केटिंग कोच की सप्ताह भर की फीस दो से तीन हजार रुपये तक होती है.

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अपने पैशन को पूरा करने के लिए लगाते हैं रेहड़ी...
कहते हैं कि पैशन बहुत गजब की चीज होती है. दिन का चैन और रातों की नींद हर लेती है. राजकुमार भी ओलम्पिक्स में भारत का प्रतिनिधित्व करने का सपना देखते हैं. हालांकि गरीबी की वजह से ऐसा होना फिलहाल तो मुश्किल दिखलाई पड़ता है. इसी परिस्थिति से लड़ने के लिए राजकुमार को आज भी पुरानी दिल्ली के सदर बाजार इलाके में रेहड़ी लगाते देखा जा सकता है.
इस रेहड़ी पर वे नकली सोने से बनने वाले कान के टॉप्स और झुमके वगैरह बेचते हैं. उनके पिताजी भी इसी काम में लगे हैं और इससे वे हर माह 15,000 की कमाई कर लेते हैं. इस पूरी कमाई से घर का किराया और छोटे भाईयों की फीस भी भरी जाती है.

स्कूलिंग नहीं कर पाने का है अफसोस, स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री को लिखी चिट्ठी...
राजकुमार आज 22 साल के हैं और उन्होंने इसी साल 10वीं की परीक्षा पास की है. घर का खर्चा चलाने के लिए उन्हें रेहड़ी संभालनी पड़ती है. वे स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री को चिट्ठियां भी लिख चुके हैं लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं आया है. उन्हें फंड मिलने में खूब दिक्कतें होती हैं और स्पेशल एथलीट होने की वजह से उन्हें भेदभाव भी झेलना पड़ता है.

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एक टीवी शो से लगी है आस...
राजकुमार इन दिनों रिएलिटी शो इंडियाज गॉट टैलेंट में स्केटिंग के जलवे दिखाने की कोशिश में हैं. उन्हें इस बात की उम्मीद है कि शायद टेलीविजन पर देखने के बाद उन्हें कुछ मदद मिल जाए. आज भी पैरों में स्केट बांधने के बाद वे अपना सारा गम भूल जाते हैं. तालियों की गड़गड़ाहट आज भी उनके हौसलों को एक नई उड़ान देने का काम करती है. उनका मानना है कि इंडियाज गॉट टैलेंट जीतने के बाद वे ओलंपिक ट्रेनिंग के अपने सपने को पूरा कर सकेंगे और देश का नाम और रोशन करेंगे.

अब हम तो बस यही दुआ करेंगे कि राजकुमार को वो सब-कुछ हासिल हो जाए जिसके लिए वे संघर्ष कर रहे हैं और वे देश का नाम रोशन कर सकें.

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