आज भी समाज में ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों के साथ खराब रवैया अपनाया जाता है. लेकिन वह ये भूल जाते हैं कि ट्रांसजेंडर हम में से ही एक हैं. वहीं अगर इरादा मजबूत हो तो आप अपने काम से समाज की बोलती भी बंद कर सकते हैं. ऐसी ही एक कहानी है ट्रांसजेंडर अत्री कर की. वह इस साल यूपीएससी की सिविल सर्विस प्रीलिम्स की परीक्षा देने वाली है. इस परीक्षा को देने वाली वह बंगाल की पहली ट्रांसजेंडर हैं.
कौन हैं अत्री
28 वर्षीय अत्री पेशे से टीचर हैं. वह सिविल सेवक बनना चाहती थीं. लेकिन ट्रांसजेंडर होने बावजूद होने काफी मेहनत करने पड़ी. समाज में उन्हें काफी कुछ झेलना पड़ा. लेकिन काफी मुश्किलें आने बावजूद भी उन्होंने अपने सपनों के आड़े किसी को नहीं आने दिया और आगे बढ़ती रहींं.
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ऐसे शुरू हुआ संघर्ष
जब अत्री ने 2017 में यूपीएससी का फॉर्म भरा, तो उन्होंने देखा कि फॉर्म में लिंग वाले विकल्प में सिर्फ पुरुष और स्त्री का ही कॉलम है. ऐसा ही पीसीएस की परीक्षा में भी हुआ था. वहीं बंगाल लोक सेवा आयोग ने सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया था. जब अत्री लोक सेवा के अधिकारियों के पास अपनी शिकायत लेकर पहुंचीं तो उनकी समस्या को किसी ने नहीं सुना.
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जिसके बाद उन्होंने हाई कोर्ट का रुख किया. वहीं उन्होंने जब रेलवे में एक पद के लिए भी फॉर्म भरा था, जिसमें महिला और पुरुष के साथ 'अन्य' का भी विकल्प था. वहां पर उन्हें जनरल कैटिगरी में रख दिया गया था. जिसके बाद अत्री इन दोनों मामलों को लेकर कोलकाता हाई कोर्ट पहुंचीं.
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अत्री की शिकायत सुनी गई. कोर्ट ने बंगाल लोक सेवा आयोग और रेलवे चयन बोर्ड को फटकार लगाते हुए कहा कि बंगाल लोक सेवा आयोग 'अन्य' का विकल्प उपलब्ध करवाएं. रेलवे चयन बोर्ड अत्री को आरक्षित वर्ग में रखें. आपको बता दें, इस साल उन्हें 29 जनवरी को पीसीएस की परीक्षा में बैठने का मौका मिला था. जिसके बाद वह सिविल सर्विस की परीक्षा देने वाली हैं.
प्रियंका शर्मा