कोच्चि मेट्रो की अनोखी पहल, 23 ट्रांसजेंडर्स को दी नौकरी

कोच्चि मेट्रो रेल के प्रबंध निदेशक इलियास जॉर्ज ने बताया कि मेट्रो ट्रांसजेंडर को नौकरियों में अपनी हिस्सेदारी देना चाहती है और स्टेशनों पर ट्रांसजेंडर और महिलाओं के बीच कोई भेदभाव नहीं होगा.

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आम प्रतियोगी की तरह हुई परीक्षा आम प्रतियोगी की तरह हुई परीक्षा

वंदना भारती

  • नई दिल्ली,
  • 18 मई 2017,
  • अपडेटेड 9:07 PM IST

कोच्चि मेट्रो ने एक अनोखी पहल की है. अगले महीने से शुरू होने वाली कोच्चि मेट्रो में ट्रांसजेंडर समूह के 23 लोगों को अलग-अलग पदों पर नियुक्त किया है, हाउसकीपिंग से लेकर टिकट काउंटर पर ये लोग करते दिखेंगे. अपने आप में यह पहली अर्धसरकारी कंपनी बनने जा रही है, जिसने आधिकारिक तौर पर इन्हें नियुक्त किया है. अगर इनकी परफॉर्मेंस अच्छी रही, तो बाकी के ट्रांसजेंडर को नौकरी का मौका मिलेगा.

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नहीं होगा कोई भेदभाव

कोच्चि मेट्रो रेल के प्रबंध निदेशक इलियास जॉर्ज ने बताया कि मेट्रो ट्रांसजेंडर को नौकरियों में अपनी हिस्सेदारी देना चाहती है और स्टेशनों पर ट्रांसजेंडर और महिलाओं के बीच कोई भेदभाव नहीं होगा.

आम प्रतियोगी की तरह हुई परीक्षा

सभी ट्रांसजेंडर का चयन आम प्रतियोगी की तरह लिखित परीक्षा और साक्षात्कार के माध्यम से हुआ है. इन्हें जरूरी प्रशिक्षण देने के बाद मौजूदा सभी 11 स्टेशनों पर तैनात किया जाएगा.

2015 में केरल में आई ट्रांसजेंडर्स पॉलिसी

साल 2015 में केरल सरकार ट्रांसजेंडर्स पॉलिसी लेकर आई थी, ताकि ट्रांसजेंडर्स के साथ भेदभाव को रोका जा सके. इस तरह की पॉलिसी बनाने वाला केरल देश का पहला राज्य हैं. केरल सरकार की कोशिश थी कि इनको मुख्यधारा में लाया जा सके.

सुप्रीम कोर्ट दे चुका है तीसरे लिंग का दर्जा

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गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2014 में एक अहम फैसला सुनाते हुए किन्नरों या ट्रांसजेंडर्स को तीसरे लिंग के रूप में पहचान दे दी. इससे पहले उन्हें मजबूरी में अपना जेंडर 'पुरुष' या 'महिला' बताना पड़ता था. सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही ट्रांसजेंडर्स को सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर तबके के रूप में पहचान करने के लिए कहा.

ताकि मिल सके पहचान

अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि शिक्षण संस्थानों में दाखिला लेते वक्त या नौकरी देते वक्त ट्रांसजेंडर्स की पहचान तीसरे लिंग के रूप में की जाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किन्नरों या तीसरे लिंग की पहचान के लिए कोई कानून न होने की वजह से उनके साथ शिक्षा या जॉब के क्षेत्र में भेदभाव नहीं किया जा सकता. इस फैसले के साथ देश में पहली बार तीसरे लिंग को औपचारिक रूप से पहचान मिली.

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