सुप्रीम कोर्ट बहुत जल्द विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशा-निर्देशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपने अंतिम फैसले की घोषणा कर सकता है. यूजीसी की 6 जुलाई को जारी गाइडलाइन को चुनौती देने वाली इन याचिकाओं पर 18 अगस्त को हुई अंतिम सुनवाई में कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित किया था.
इसमें सभी पक्षों से कहा गया था कि 3 दिन की अवधि के भीतर यदि कोई लिखित सबमिशन देना चाहते हैं तो उन्हें सौंपे. तीन दिन का ये वक्त अब पूरा हो गया है, उम्मीद है कि अदालत अब जल्द अपना फैसला देगी.
पिछले महीने से सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाओं पर ये मामला चल रहा है, जिसमें 31 छात्रों और महाराष्ट्र की युवा सेना की याचिका शामिल है. ये छात्र कोविड 19 के बढ़ते मामलों को ध्यान में रखते हुए परीक्षा रद्द करने की मांग कर रहे हैं.
अपने तर्क में, यूजीसी ने कहा है कि अंतिम वर्ष की परीक्षाओं का निर्णय एक विशेषज्ञ पैनल द्वारा सिफारिशों के बाद ही लिया गया था. एकेडमिक पैनल ने यह भी कहा है कि इस प्लान को बदलने का कोई इरादा नहीं है. कोरोना के तेजी से बढ़ते मामलों के कारण दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने परीक्षा रद्द करने की घोषणा की थी.
महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में फाइनल इयर एग्जाम आयोजित नहीं करने के राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के फैसले के बारे में 7 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था. हालांकि, पैनल ने अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को रद्द करने के महाराष्ट्र और दिल्ली के फैसले पर सवाल उठाया था और कहा कि जब नए शैक्षणिक सत्र के लिए प्रवेश की प्रक्रिया करीब है. ऐसे में दोनों राज्यों द्वारा निर्णय विशेष रूप से विरोधाभासी है.
10 अगस्त को हुई सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी कहा था कि परीक्षा देना छात्रों के हित में नहीं है. उन्होंने तर्क दिया कि यूजीसी एकमात्र निकाय है जो कोई डिग्री प्रदान करने के लिए नियम दे सकता है, और राज्य सरकारें नियमों को नहीं बदल सकती हैं. यह भी तर्क दिया गया कि परीक्षा का आयोजन छात्रों के भविष्य के खिलाफ नहीं होगा क्योंकि एक समान प्रवेश प्रक्रिया अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के बिना प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगी.
परीक्षा रद्द करने का समर्थन करने वाले तर्कों में डॉ अभिषेक मनु सिंघवी भी शामिल हैं जो इस मामले में लीड काउंसलर हैं. उन्होंने ये सवाल उठाया था कि इस साल कोविड 19 के कारण शिक्षण कार्यक्रम पूरी तरह से बाधित होने के बावजूद परीक्षा क्यों आयोजित की जा रही है.
अपनी रिपोर्ट में रिपोर्ट में सिंघवी ने कहा कि परीक्षाओं को पढ़ाने के बाद आयोजित किया जाता है. शिक्षण बाधित कर दिया गया है और अब परीक्षा आयोजित की जाएगी? छात्रों के स्वास्थ्य पर यूजीसी के फैसले के प्रभाव के बारे में सवाल उठाए गए थे. इसके अलावा परिवहन की समस्या और परीक्षा की व्यवहार्यता पर भी सवाल उठे थे. कहा गया कि कई छात्र महामारी के कारण अपने घरों को वापस चले गए हैं.
यूजीसी ने पहले ही इस मामले में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट से जब तक कोई फैसला नहीं हो जाता, तब तक इंतजार किया जाएगा. लेकिन, अंतिम वर्ष के छात्रों को परीक्षा के लिए अध्ययन जारी रखना चाहिए.
अब जब कोर्ट में NEET और JEE परीक्षा आयोजित करने को लेकर याचिका खारिज हो गई है. ऐसे में कहा जा रहा है कि छात्रों को हर स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए.
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