Manipur Violence: देश के उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर में हिंसा की आग सुलग रही है. हालात इतने खराब हैं कि कई जिलों में कर्फ्यू है और कई दिनों से इंटरनेट सेवाएं बंद हैं. हिंसा वाले क्षेत्रों से लोगों को निकालने का कोशिश की जा रही है. इस बीच कोहिमा स्थित असम राइफल्स IGAR मुख्यालय के एक ब्रिगेडियर और नागालैंड सरकार के नेतृत्व में दो दिन का बचाव अभियान चलाया गया. इस अभियान में करीब 600 से ज्यादा नागा लोगों को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया गया इनमें काफी संख्या में छात्र-छात्राएं भी शामिल हैं. हिंसा वाले क्षेत्रों से लौटे छात्रों ने अपनी आप बीती बताई है.
कई रातें जागकर कर गुजारीं, हर तरफ गोलियों और धमाकों की आवाज
हिंसा प्रभावित क्षेत्रों से लौटे छात्रों/लोगों ने वहां के तनावपूर्ण हालात के बीच अपनी आपबीती बताई. उन्होंने बताया हालात काफी खराब हैं, हथियारों के साथ भीड़ गांवों पर हमला कर रही है, घरों में आग लगाई जा रही है, दुकानों में लूटपाट और तोड़फोडड हो रही है, खाने-पीने की समस्या है. न्यूज एजेंसी एएनआई को एक छात्रा ने बताया है कि हर तरफ गोलियां चल रही हैं, धमाके हो रहे और स्मॉग है. तनाव इतना है कि कई रात बिना सोए गुजारी हैं.
दिल्ली पहुंची मणिपुर हिंसा की आग, छात्रों को पीटा
मणिपुर में चल रहे हिंसा की आग दिल्ली तक पहुंच गई है. हाल ही में दिल्ली यूनिवर्सिटी के नॉर्थ कैंपस के आसपास रहने वाले मणिपुरी छात्रों के एक ग्रुप ने आरोप लगाया है कि उनके साथ गुरुवार की रात कुछ छात्रों ने मारपीट की थी. पीड़ित छात्र फिलहाल दिल्ली पुलिस से इस घटना को लेकर मामला दर्ज करने की गुहार कर रहे हैं. पीड़ित छात्रों का आरोप है कि घटना गुरुवार की देर रात नॉर्थ कैंपस में तब हुई जब वह एक प्रार्थना सभा करके वापस अपने घर लौट रहे थे. तभी छात्रों के दूसरे ग्रुप में इन्हें घेर लिया जिसमें कुछ छात्राएं भी शामिल थीं और उनके साथ बदसलूकी की और मारपीट की घटना भी हुई. पीड़ित छात्रों के ग्रुप ने मौरिस नगर थाने के पास प्रदर्शन भी किया और पुलिस से FIR दर्ज करने की मांग की थी.
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला
दूसरी ओर मणिपुर में मैतेई समुदाय को आरक्षण के दायरे में लाने के प्रकरण में भड़की हिंसा का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. सबसे ऊंची अदालत में मैतेई समुदाय के अनुसूचित जनजाति के दर्जे को लेकर मणिपुर हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. उम्मीद है कि सोमवार को ये मामला अर्जेंसी के आधार पर शीघ्र सुनवाई के लिए मेंशन किया जाए.
बीजेपी नेता और मणिपुर पर्वत क्षेत्रीय परिषद के अध्यक्ष डिंगांगलुंग गंगमेई ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है जिसमें कहा गया कि हाईकोर्ट ने इस समस्या की असली जड़ नहीं समझी. ये राजनीतिक और सरकार का नीतिगत मुद्दा था. इसमें कोर्ट की कोई भूमिका नहीं थी. क्योंकि सरकार के आदेश से ये अनुसूचित जनजाति की केंद्रीय सूची में शामिल करवाने की संविधान सम्मत प्रक्रिया में कोर्ट का कोई जिक्र नहीं है. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में बुनियादी गलती की है. कई अन्य भूलें भी हाईकोर्ट के आदेश ने हैं जो संवैधानिक प्रक्रिया के उलट हैं. याचिका के अनुसार मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार के समक्ष राज्य सरकार की कोई सिफारिश लंबित नहीं है.
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याचिका में दलील दी गई है कि हाईकोर्ट ने अपने फैसले में तीन गलतियां की हैं-
1. पहली गलती राज्य को यह निर्देश देना है कि वह मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार से सिफारिश करे.
2. दूसरी गलती यह निष्कर्ष निकालना है कि मैतेइयों को शामिल करने का मुद्दा लगभग 10 वर्षों से लंबित है.
3. तीसरी गलती यह निष्कर्ष निकालना है कि मेइती जनजातियां हैं.
(संजय शर्मा और हर्षित मिश्रा के इनपुट के साथ)
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