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इंदिरा गांधी: पहली लेडी PM जिनसे लड़कियां सीख सकती हैं अपनी शर्तों पर जीना

aajtak.in
  • 19 नवंबर 2020,
  • अपडेटेड 1:32 PM IST
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भारत की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को हुआ था और वह 31 अक्टूबर 1984 तक जीवित रहीं. उनके जन्मदिवस पर एक सामान्य नागरिक और खास तौर पर लड़कियां उनसे बहुत कुछ सीख सकती हैं.

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छोटी उम्र से ही लक्ष्य प्राप्ति की ललक
इंदिरा भले ही तब के मशहूर बैरिस्टर मोती लाल नेहरू की पोती और कांग्रेस के लोकप्रिय नेता जवाहर लाल नेहरू की बेटी हों, मगर उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए छोटी उम्र में ही वानर सेना बना ली थी. वह इसके माध्यम से झंडा जुलूस, विरोध प्रदर्शन के साथ-साथ कांग्रेसी नेताओं के संवेदनशील प्रकाशनों और प्रतिबंधित सामग्रियों का परिसंचरण करने का काम करती थीं. 

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पहले पढ़ाई और बाद में लड़ाई...
इंदिरा को जानने वालों का मानना है कि इंदिरा हमेशा से ही खुद को बड़ी भूमिकाओं के लिए तैयार कर रही थीं. उन्होंने शांति निकेतन के साथ-साथ ऑक्सफोर्ड और सोमरविल्ले कॉलेज में पढ़ाई की. हालांकि वह वहां भी भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत भारतीय लीग की सदस्य बन कर काम करती रहीं.

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कभी विपक्षी नेताओं ने कहा था गूंगी गुड़िया 
जवाहर लाल नेहरू की मौत के बाद लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधान मंत्री बने. उनके आकस्मिक मृत्यु के बाद इंदिरा ने देश की बागडोर संभाली. उन दिनों वह काफी कम बोला करती थीं. विपक्ष की राजनीति करने वाले मोरारजी देसाई और डॉ लोहिया ने उन्हें गूंगी गुड़‍िया तक कहा था. 

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देश को रखा हमेशा आगे...
इंदिरा को देश हमेशा एक ऐसी नेत्री के तौर पर याद करता है जिनके लिए देश पहले है. हालांकि इस क्रम में उन पर कई आरोप भी लगते हैं कि उन्होंने सत्ता का दुरुपयोग किया. चुनाव में कदाचार किया लेकिन बैंकों के राष्ट्रीयकरण, प्रिवी पर्स जैसे फैसलों के लिए देश हमेशा उनका शुक्रगुजार रहेगा.

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फैसले लेने में हमेशा आगे...
राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि वह गजब की राजनेता थीं. चाहे देश में आपातकाल लगाने का निर्णय हो या फिर पंजाब में अलगाववादियों पर किए जाने वाले हमले. एक बार निर्णय करने के बाद वह पीछे नहीं हटती थीं. उनकी मौत के पीछे उनका अलगाववादियों से निपटने का निर्णय भी अहम कारक माना जाता है.

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आत्मविश्वास से भरपूर 
इंदिरा गांधी जब भी आम जनता को संबोधित करती थीं तो लोग उन्हें मंत्रमुग्ध होकर सुनते थे. उनके आत्मविश्वास से भरे भाषण और भविष्य की योजनाएं सुनकर लोग उनके मुरीद हो जाते थे. यहां तक कि उस जमाने में लड़कियां उनके हेयरस्टाइल से लेकर उनके पहनावे और बोलचाल को अपने जीवन में उतारने की कोशिश में रहती थीं. 

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