Advertisement

एजुकेशन न्यूज़

लड़कों के साथ क्र‍िकेट खेलती थी अनीशा, RCA में सेलेक्शन होने पर ताने देने वाले भी कर रहे तारीफ

दिनेश बोहरा
  • बाड़मेर ,
  • 12 अक्टूबर 2021,
  • अपडेटेड 12:47 PM IST
  • 1/7

मुस्ल‍िम लड़की होकर लड़कों के साथ क्र‍िकेट खेलती हो? ऐसे ताने और सवाल कई बार अनीशा के रास्ते में आकर खड़े होते थे, लेकिन उसने कभी हौसला नहीं खोया. घर, परिवार, समाज और आसपास के लोग क्या कहते हैं, इससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ा. वो बस अपने बैट और बॉल के साथ पिच पर अड़ी रही. इसी मेहनत के दम पर बाड़मेर राजस्थान की क्र‍िकेटर अनीशा ने तमाम बंदिशों की प‍िच पर कामयाबी का सिक्सर जड़ दिया है. आज उसकी मेहनत रंग ला चुकी है. वो आरसीए में सेलेक्ट होकर कामयाबी की पहली पायदान पर है, अभी सफलता की और सीढ़‍ियां चढ़नी है. अगर वो इसी हौसले के साथ आगे बढ़ती रही तो एक दिन मंजिल खुद ब खुद उसके कदम चूमेगी. आइए जानते हैं इस साहसी क्र‍िकेटर अनीशा की कहानी जो तमाम लड़क‍ियों के लिए प्रेरणा का काम करेगी.  

  • 2/7

मुस्ल‍िम धर्म में पिछड़े समाज से आने वाले याकूब खान की बेटी अनीशा का नाम आज इलाके में हर कोई जानता है. याकूब कहते हैं कि हम ऐसे समाज से आते हैं जहां पर लड़कियों का घर से बाहर निकलना भी पसंद नहीं होता है. ऐसे में मेरी बेटी ने 2013-14 में क्रिकेट खेलना शुरू किया तो ना ये मुझे पसंद था और न ही समाज के लोगों को. मैंने बेटी को बोला पढ़ाई कर लो, नौकरी लग जाएगी लेकिन वो अपनी धुन की पक्की थी. इसी बलबूते पर वो क्र‍िकेट खेलकर आज आरसीए में सेलेक्ट हो गई है. अब यहां चयनित होने के बाद अब वो रणजी ट्रॉफी की तैयारी कर रही है. अब समाज के दूसरे लोग भी उसे सराह रहे हैं, आज वाकई हर पल मुझे अपनी बेटी पर गर्व हो रहा है. 

  • 3/7

क्र‍िकेटर अनीशा बानो बताती हैं कि साल 2013-14 में जब मैंने आईपीएल क्रिकेट देखकर यह फैसला किया था कि मैं क्रिकेट में अपना करियर बनाऊंगी. मेरे लिए ये कठ‍िन फैसला था क्योंकि गांव में तब कोई लड़की न क्रिकेट खेलती थी, न ही उसकी इसमें रुचि थी. ऐसे में मैं लड़कों के साथ क्रिकेट खेलती रहती थी. 

Advertisement
  • 4/7

अनीशा कहती हैं कि यह इतना आसान नहीं था. लड़कों के साथ खेलने को लेकर आसपास के और समाज के तमाम लोग मुझ पर तंज कसते थे. यहां तक कि मेरे परिवार को भी यह पसंद नहीं था. लेकिन मैंने अपना मिशन जारी रखा. उसी का नतीज है कि आज मैं RCA में चयन होने के बाद रणजी ट्रॉफी की तैयारी कर रही हूं. आज वही लोग जो मेरे क्रिकेट खेलने पर आपत्ति और तंज कसते थे स्वागत और सम्मान और अभिमान कर रहे हैं. 

  • 5/7

बता दें कि बाड़मेर के कानासर गांव की रहने वाली अनीशा बानो ने 2013-14 में क्रिकेट को चुना था लेकिन उस समय पिता से लेकर समाज के लोगों को यह बात पसंद नहीं थी. आज अनीशा बानो राजस्थान महिला क्रिकेट 19 टीम में चयन होने व ट्रायल और चैलेंजर ट्रॉफी मैच में बेहतर प्रदर्शन कर टीम में स्थान बनाने के बाद जब बाड़मेर में लौटी तो वही लोग उसका स्वागत और सम्मान कर रहे हैं जो कि उस पर तंज कसा करते थे. 

  • 6/7

अनीशा बानो बताती हैं कि ये वो दौर था जब मुझ पर क्र‍िकेट का जुनून सवार था. मैं जब भी स्कूल से वापस आती तो जल्दी जल्दी घर का काम करने के बाद मैं क्र‍िकेट के मैदान में नजर आती. यहां लड़कों के साथ घंटों क्र‍िकेट खेलती थी. मेरे इसी जुनून और क्र‍िकेट में रुचि से लड़के साथ ख‍िलवा लेते थे. आज मुझे लगता है कि इसी जुनून ने मुझे आज इस मुकाम पर पहुंचा दिया है कि रणजी ट्रॉफी कि मैं तैयारी कर रही हूं मेरा सपना है कि मैं एक दिन भारत महिला क्रिकेट के लिए देश का प्रतिनिधित्व करूं. 

Advertisement
  • 7/7

यकीन मानिए जिस तरीके से अनीशा बानो ने क्रिकेट को अपना जुनून बनाया है, इससे वो इलाके ही नहीं जिले में तमाम लड़कियों के लिए नजीर बन गई हैं. आज वही लोग उसका सम्मान स्वागत और अभिनंदन कर रहे हैं जो कि कभी उस पर बंद‍िशे लगाने की बात करते थे. इससे एक बात तो साफ है कि जब जुनून और हौसला हो तो किसी भी मुकाम पर पहुंचा जा सकता है. 

Advertisement
Advertisement