भारत की विविध संस्कृति में एक ऐसा नाम है जो हर सिंधी के दिल में बसता है- एक देव, एक रक्षक, और एकता का प्रतीक…भगवान झूलेलाल. भगवान झूलेलाल सिंधी समुदाय के इष्ट देव माने जाते हैं. सिंधी समाज उन्हें जल देवता, उम्मेद पुरुष और वरुण देव का स्वरूप मानता है. माना जाता है कि उनका जन्म सिंध में हुआ था. उस समय उन्होंने सिंधी हिंदुओं को भारी अत्याचारों से बचाया और समाज को एकजुट किया. इसी कारण सिंधी लोग उन्हें ‘झूलेलाल’, ‘झूले लाल जो’, ‘उदरोलाल’ और ‘लाल साईं’ कहकर श्रद्धा से पूजते हैं.
बड़े उत्साह से मनाते है त्योहार
सिंधी संस्कृति में झूलेलाल सिर्फ एक धार्मिक पहचान नहीं, बल्कि समुदाय की एकता, साहस और अस्तित्व का प्रतीक हैं.उनकी जयंती ‘चेटीचंड’ के रूप में पूरी दुनिया में सिंधी लोग बड़े उत्साह से मनाते हैं. सिंधी समाज उन्हें जल देवता, उम्मेद पुरुष और वरुण देव का स्वरूप मानता है. उनका जन्म सिंध (अब पाकिस्तान) में हुआ था और मान्यता है कि उन्होंने उस समय सिंधी हिंदुओं को अत्याचारों से बचाया था. इसी कारण सिंधी लोग उनकी पूजा करते हैं.
छत्तीसगढ़ में विवाद क्यों हुआ?
छत्तीसगढ़ में झूलेलाल को लेकर विवाद इसलिए शुरू हुआ क्योंकि हाल ही में एक राजनीतिक बयान और कुछ पोस्टर/बैनर वायरल हुए, जिनमें झूलेलाल का नाम और छवि ऐसे इस्तेमाल किए गए कि सिंधी समुदाय को यह गलत और अपमानजनक लगा. मामला तब और बढ़ गया जब छत्तीसगढ़ के एक नेता, अमित बघेल, ने सिंधी धर्म को लेकर एक टिप्पणी की, जिसे समुदाय ने अपमानजनक और असम्मानजनक बताया.
सिंधी समाज का कहना है कि झूलेलाल उनके सबसे बड़े और सर्वमान्य देवता हैं. उनका नाम, छवि या पहचान किसी भी राजनीतिक मुद्दे, विवाद या नकारात्मक संदर्भ में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. इसी वजह से सिंधी समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहत हुईं और कई जगहों पर उन्होंने विरोध प्रदर्शन किए, ज्ञापन सौंपे और कार्रवाई की मांग उठाई.
झूलेलाल की पूजा क्यों की जाती है?
सिंधी समुदाय उन्हें इसलिए पूजता है क्योंकि वे जल देवता माने जाते हैं. उन्होंने सिंधी समाज को संकट से बचाने का वचन दिया. वे शांति, भाईचारा और सद्भावना का संदेश देते हैं. सिंधी लोग किसी नए काम से पहले अपने भगवान से आशीर्वाद मांगते हैं. पूरी दुनिया में सिंधी समुदाय हर्षोल्लास से मनाता है.
सिंधी संस्कृति में झूलेलाल का महत्व
चेटीचंड उनका जन्मदिन मनाया जाता है. इस दिन शोभायात्रा, पूजा और भजन होते हैं. सिंधी समाज उनके नाम पर कई सांस्कृतिक कार्यक्रम करता है, उन्हें सिंधी पहचान और परंपरा का आधार माना जाता है.
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