Khudiram Bose: भारत का वो वीर, जिसने सिर्फ 18 साल की उम्र में हंसते-हंसते फांसी को लगाया गले

खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर, 1889 को बंगाल में मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में हुआ था. अपने स्कूल के दिनों में खुदीराम बोस आजादी के लिए आंदलनों में शामिल हो गए थे. महज 18 साल की उम्र में 11 अगस्त 1908 को क्रांतिकारी खुदीराम बोस को फांसी दे दी गई थी.

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खुदीराम बोस खुदीराम बोस

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 11 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 7:38 AM IST

महज 18 वर्ष की उम्र में फांसी के फंदे को गले लगाया क्रांतिवीर खुदीराम बोस ने. आज वही तारीख है, जब अंग्रेजों ने 18 साल के युवा की आंखों में भारत की आजादी का जुनून देखा था. 11 अगस्त 1908 को क्रांतिकारी खुदीराम बोस हंसते-हंसते फांसी चढ़ गए थे. इस साल हम ब्रिटिश राज से आजादी का 75वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं. इस आजादी के अनेकों देशप्रेमियों ने अपनी जान की बाजी लगाई थी, उन्हीं में एक थे खुदीराम बोस. आइए जानते हैं खुदीराम बोस की वो बाते जो हर भारतीय को पता होनी चाहिए.

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कम उम्र में माता-पिता को खोया
खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर, 1889 को बंगाल में मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में हुआ था. खुदीराम के पिता त्रिलोकक्यनाथ बसु नाराजोल स्टेट के तहसीलदार थे. मां लक्ष्मीप्रिया देवी ने बेटे को जन्म देने के बाद उसकी अकाल मृत्यु को टालने के लिए किसी ओर को दे दिया था, जिसे बाद में बहन ने तीन मुट्ठी खुदी यानी चावल देकर वापस लिया था. क्योंकि बच्चे को खुदी देकर वापस लिया गया था इसलिए नाम खुदीराम रखा गया. बहुत कम उम्र में उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया था. उनकी बड़ी बहन ने ही उनकी परवरिश की.

स्कूल के दिनों में ही आजादी के आंदोलनों से जुड़े
अपने स्कूल के दिनों में खुदीराम बोस आजादी के लिए आंदलनों में शामिल हो गए थे. 8वीं क्लास में ही वे 1905 में बंग भग विरोधी आंदोलन में कूद पड़े और बंगाल विभाजन का विरोध किया. सत्येन बोस के नेतृत्व में खुदीराम बोस ने अपना क्रांतिकारी जीवन शुरू किया.

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विदेशी सामान के गोदामों को लगा दी आग
विदेश वस्तुओं का बहिष्कार के चलते  मिदनापुर के दुकानदारों को कई बार समझाया गया, अनुरोध किया गया कि वे विदेशी सामान न रखें लेकिन जब उनकी बात का कोई असर होता नहीं दिखा तो खुदीराम ने उनके गोदाम के गोदाम जलाकर राख कर दिए. स्कूल छोड़ने के बाद वे रिवोल्यूशनरी पार्टी के मैंबर बने और वंदे मातरम् पैंफलेट बांटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

जब निर्भीक खुदीराम बोस ने फांसी के तख्ते पर रखा कदम...
30 अप्रैल, 1908 को खुदीराम बोस और प्रफुल्ल कुमार ने किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम फेंका लेकिन बम गलत बग्घी पर गिर गया. इस हमले में वकील प्रिंगल केनेडी की पत्नी और बेटी मारी गईं, इस घटना के बाद उनके साथी प्रफुल्ल कुमार चाकी ने तो खुद को गोली मार ली लेकिन खुदीराम पकड़े गए. मुज़फ्फरपुर जेल में जिस मजिस्ट्रेट ने फांसी देने का आदेश सुनाया था. इस वक्त कई पत्रकारों ने लिखा कि कैसे खुदीराम बोस निर्भीक होकर फांसी के तख्ते की तरफ बढ़ा और हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर लटक गया.

 

 

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