दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम को तोड़कर एक स्पोर्ट्स सिटी बनाए जाने की बात की जा रही है. सूत्रों के अनुसार, जेएलएन स्टेडियम को तोड़कर अब बड़ी खेल परियोजना लाई जा रही है. बताया जा रहा है कि ये प्रोजेक्ट 102 एकड़ में फैला होगा और इसे जेएलएन स्टेडियम की जमीन पर विकसित किया जाएगा.
जेएलएन स्टेडियम उन जगहों में से एक है, जो विदेश में भारत की पहचान बने हैं. जेएनएल स्टेडियम को तोड़े जाने की खबरों के बाद अब सोशल मीडिया पर इसकी काफी चर्चा है. ऐसे में आज जानते हैं स्टेडियम के बनने और उसके बाद की कहानियां, जो स्टेडियम को खास बनाती है...
क्या है इसके बनने की कहानी...
जेएलएन स्टेडियम को उस वक्त बनाया गया था, जब भारत को साल 1982 में एशियन गेम्स की मेजबानी करनी थी. ये 19 नवंबर से 4 दिसंबर तक आयोजित किया गया था. इस गेम्स में 3400 से अधिक एथलीट्स ने हिस्सा लिया था. ऑलंपिक की वेबसाइट के अनुसार, 1982 में एशियाई खेल के आयोजन से ठीक पहले एशियन गेम्स फेडरेशन (AGF) को भंग कर दिया गया था और प्रतियोगिता का 9वां संस्करण ओलंपिक काउंसिल ऑफ एशिया के तहत आयोजित किया गया था. मेजबान शहर नई दिल्ली को खेलों के आयोजन के लिए शानदार तरीक़े से तैयार किया था और पूर शहर की रूपरेखा बदल दी गई थी.
उस वक्त दिल्ली में सिर्फ जेएलएन स्टेडियम ही नहीं, इसके साथ दिल्ली में सड़कों को भी फिर से बनाया गया था. द नेशनल की एक रिपोर्ट में लिखा गया है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान बने इस स्टेडियम को उस वक्त का सबसे अहम प्रोजेक्ट माना गया था. उस वक्त बजट बढ़ता जा रहा था, राजनीतिक दबाव था और काम समय से पूरा नहीं हो रहा था. तब इंदिरा गांधी ने तैयारी का जिम्मा अपने बेटे राजीव गांधी को सौंपा. इसके बाद इसे गेम्स से पहले बना दिया गया.
लगाए गए थे 1000 मजदूर
स्टेडियम के लिए बात कही जाती है कि जिस दिन स्टेडियम का उद्घाटन हुआ था, उस दिन काफी तेज बारिश हुई और वेटलिफ्टिंग स्टेडियम की छत में एक छेद हो गया था और अंदर पानी भर गया. ऐसे में उस काम को पूरा करने के लिए एक रात में करीब 1000 मजदूरों को लगाया गया और उसे उसी रात में ठीक कर दिया गया. द नेशनल की रिपोर्ट में भी इसे शामिल किया गया है.
क्रिकेट मैच भी होते थे
बता दें कि जेएलएन स्टेडियम को दिल्ली के लुटियंस एरिया के पास खैरपुर और जोरबाग, घ्यासपुर, सरबन सराय, बेलोलपुर जैसे गांवों की जमीन पर बनाया गया था. 1982 में एशियाई खेलों की मेजबानी के लिए बने इस स्टेडियम को नया जीवन 2010 कॉमलवेल्थ गेम्स के दौरान मिला. इस दौरान स्टेडियम को भी भव्य बना दिया गया.
खेल गतिविधियों को बढ़ावा देने और विकसित करने और खेलों को बढ़ावा देने के लिए SAI द्वारा इस स्टेडियम का रखरखाव और उपयोग किया जा रहा है. अब ये खेल के साथ साथ अन्य अहम इवेंट्स का गवाह बन चुका है. बता दें कि स्टेडियम में पहले क्रिकेट मैच आयोजित किए जाते थे, जिनमें भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच और भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच मैच शामिल हैं.
कितना भव्य है स्टेडियम?
SAI की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, जेएलएन स्टेडियम में दुनिया का सबसे बड़ा मेम्ब्रेन रूफ सिस्टम है, जहां स्टेडियम में बैठने की व्यवस्था की गई है. इसमें लाइट की खास व्यवस्था की गई है और इसका सिटिंग सिस्टम काफी अलग और खास है. इसमें 512 पिलर वाली स्टील जैकेटिंग है, जिससे इसकी डिजाइन और मजबूती को खास बनाता है. यहां रिंग ऑफ फायर वाली लाइट व्यवस्था है और 54 हजार स्क्वायरल मेम्ब्रेन की वजह से यह मुकुट की तरह दिखती है. यहां इंडोर से लेकर आउटडोर स्टेडियम है, जहां एक साथ कई इवेंट करवाए जा सकते हैं.
स्टेडियम में एक साथ 60 हजार लोगों के बैठने की व्यवस्था है और पूरा फ्लोर एरिया 43500 sq. m का है. स्टेडियम में एथलेटिक्स, वेटलिफ्टिंग, फुटबॉल, वॉलीबॉल, तीरंदाजी, बैडमिंटन, बास्केटबॉल, क्रिकेट, लॉन टेनिस, टेबल टेनिस जैसे गेम्स की व्यवस्था है.
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