आज ही के दिन जन्‍मे थे 2000 चीनी सैनिकों को धूल में मिलाने वालेे मेजर शैतान सिंह

भारतीय सेना के पास पर्याप्‍त संसाधन नहीं थे. बंदूकें भी ऐसी जो सिर्फ एक ही राउंड फायर कर सकती थीं. ऐसे में जब शैतान सिंह ने अपने बेस से और मदद मांगी तो उनसे कहा गया कि और मदद भेजना संभव नहीं है और वह चौकी खाली करके वापस लौट आएं. शैतान सिंह को हार स्‍वीकारना गंवारा नहीं था.

Advertisement
Major Shaitan Singh Major Shaitan Singh

aajtak.in

  • नई दिल्‍ली,
  • 18 नवंबर 2020,
  • अपडेटेड 10:27 AM IST
  • बगैर पर्याप्‍त संसाधानों के भी कई गुना बड़ी फौज से ले लिया लोहा
  • तीन माह बाद बंदूक थामे बर्फ में मिला था शव
  • मरणोपरान्‍त मिला परमवीर चक्र

बात 1962 की है. 13 कुमायूं बटालियन की ‘सी’ कम्पनी के 120 जवान लद्दाख के चुरू सेक्टर में हड्डी जमा देने वाली ठंड में देश की सरहद की रक्षा के लिए मुस्तैद थे. इन जवानों को इस ठंडे माहौल का अनुभव भी नहीं था. तभी भोर के समय 'रेंजाग पास' पर चीन की तरफ से हलचल हुई. बटालियन ने ध्यान दिया तो उन्हें अपनी ओर रोशनी के गोले चलते चले आ रहे दिखाई दिए. इस बटालियन को लीड कर रहे थे मेजर शैतान सिंह. उन्होंने अपनी बटालियन को गोली चलाने का आदेश दे दिया. थोड़ी देर बाद पता चला कि यह चीन की चाल है, उसने कई सारे याक की गर्दन में लालटेन बांधकर भारत की ओर भेजा था.

Advertisement

अक्साई चीन को लेकर भारत पर चीन ने हमला कर दिया था. भारतीय सेना के पास पर्याप्‍त संसाधन नहीं थे. बंदूकें भी ऐसी जो सिर्फ एक ही राउंड फायर कर सकती थीं. ऐसे में जब शैतान सिंह ने अपने बेस से और मदद मांगी तो उनसे कहा गया कि और मदद भेजना संभव नहीं है और वह चौकी खाली करके वापस लौट आएं. शैतान सिंह को हार स्‍वीकारना गंवारा नहीं था. उन्‍होंने मात्र 120 जवानों की मदद से चीन के 2000 घुसपैठियों को धूल में मिलाने का इरादा कर लिया था.

देखें: आजतक LIVE TV

अपने साथियों को उन्‍होंने कहा कि बेस की तरफ से वापस लौटने के आदेश हैं इसलिए जो अपनी जान बचाकर वापस लौटना चाहता है वो जा सकता है, मगर मैं आखिरी सांस तक लड़ाई जारी रखूंगा. सभी जवानों ने बगैर एक पल भी सोचे अपने मेजर का साथ देने का फैसला कर लिया. चीनी सैनिकों की पहली खेप में 350 सिपाही थे जिन्‍हें भारतीय जवानों ने अपनी सीमित गोला बारूद की मदद से ही ढेर कर दिया. जिन च‍ीनी सैनिकों को मारा उनकी ही बंदूकों पर कब्‍जा कर लिया और लड़ाई जारी रखी. जब गोलीबारी शांत हुई तब बर्फ दुश्‍मन के खून से लाल हो चुकी थी. मेजर ने अपने सिपाहियों से कहा कि ये न सोचें कि युद्ध खत्‍म हो गया. उनका सोचना बिल्‍कुल सही था. चीन ने दूसरी खेप में 400 सिपाही भेज दिए. 

Advertisement

मेजर जान चुके थे कि अ‍ब वे दुश्‍मन को और देर नहीं रोक सकेंगे. उन्‍हें गोली भी लग चुकी थी. वे नहीं चाहते थे कि उनकी शहादत बेकार जाए और भारतीय सरकार और फौज यह जान भी न पाए कि 'रेंजाग पास' पर क्‍या हुआ. उन्‍होंने अपने दो जवानों, रामचंद्र और निहाल सिंह को वापस भेज दिया ताकि वे जाकर सूचना बेस तक पहुंचा सकें. इसके बाद मेजर शैतान सिंह दुबारा दुश्‍मनों की तरफ मुड़े और चीनी सैनिकों पर शैतान की तरह टूट पड़े. देश की सीमा की हिफाजत के अपने जज्‍बे के साथ वे सीमा पर ही शहीद हो गए. 

इस पलटन के 120 बहादुरों में से केवल 14 जीवित बचे थे जिनमें से 9 गंभीर रूप से घायल थे. इस बटालियन में 1300 चीनी सिपाहियों को मौत की नींद सुला दिया था. युद्ध खत्‍म होने के तीन माह बाद तक मेजर शैतान सिंह के शव की जानकारी नहीं मिल पाई थी. जब बर्फ पिघलनी शुरू हुई तब रेड क्रॉस सोसायटी और सेना ने उन्‍हें ढूंढना शुरू किया. मेजर शैतान सिंह का शव जब बर्फ में मिला तब भी वह बंदूक थामे थे. 

उनके पराक्रम के लिए उन्‍हें मरणोपरान्‍त परमवीर चक्र से नवाज़ा गया. आज ही के दिन (18 नवंबर 1925) को जन्‍में मेजर शैतान सिंह वर्ष 1962 में महज 37 वर्ष की उम्र में देश की हिफाजत करते हुए शहीद हो गए. देश न कभी उनके गौरव को भूला है, और न ही भविष्‍य में कभी उनके गौरव को भुलाया जा सकेगा. 

Advertisement


 

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement