समाज और जीवन के यथार्थ का चित्रण है मुंशी प्रेमचंद की लेखनी

मुंशी प्रेमचंद अपनी कहानियों के जरिए किसी भी बात को सिर्फ कहते नही हैं, बल्कि पाठक के दिलो-दिमाग पर गहरी छाप छोड़ जाते हैं.

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प्रेमचंद (फाइल फोटो) प्रेमचंद (फाइल फोटो)

प्रियंका शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 08 अक्टूबर 2018,
  • अपडेटेड 8:29 AM IST

आज ही के दिन साल 1936 में अपनी कहानियों के माध्यम से जीवन के यथार्थ को दिखाने वाले महान कहानीकार मुंशी प्रेमचंद दुनिया को छोड़ गए थे. कहा जाता है कि मुंशीजी अपनी लेखनी से जिन किरदारों को रच देते थे, वे किरदार ऐसे लगते थे जैसे हमारे साथ ही उठ-बैठ रहे हों. वे न सिर्फ भारत, बल्कि दुनियाभर के मशहूर और सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले रचनाकारों में से एक हैं.

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प्रेमचंद का नाम असली नाम धनपत राय था. उनका जन्म 31 जुलाई, 1880 को बनारस शहर से चार मील दूर लमही नामक गांव में हुआ था. अपने मित्र मुंशी दयानारायण निगम के सुझाव पर उन्होंने धनपत राय की बजाय प्रेमचंद उपनाम रख लिया. उनके पिता का नाम मुंशी अजायब लाल था, जो डाकघर में मुंशी का पद संभालते थे. वे शुरुआती दिनों में चुनार में शिक्षक थे. तब उन्हें 18 रुपये तनख्वाह मिला करती थी. वे हिन्दी के साथ-साथ उर्दू, फारसी और अंग्रेजी पर भी बराबर की पकड़ रखते थे.

प्रेमचंद जब 6 वर्ष के थे, तब उन्हें लालगंज गांव में रहने वाले एक मौलवी के घर फारसी और उर्दू पढ़ने के लिए भेजा गया. वह जब बहुत ही छोटे थे, बीमारी के कारण इनकी मां का देहांत हो गया. उन्हें प्यार अपनी बड़ी बहन से मिला. बहन के विवाह के बाद वह अकेले हो गए. सुने घर में उन्होंने खुद को कहानियां पढ़ने में व्यस्त कर लिया. आगे चलकर वह स्वयं कहानियां लिखने लगे और महान कथाकार बने.

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धनपत राय का विवाह 15-16 बरस में ही कर दिया गया, लेकिन ये विवाह उनको फला नहीं और कुछ समय बाद ही उनकी पत्नी का देहांत हो गया. कुछ समय बाद उन्होंने बनारस के बाद चुनार के स्कूल में शिक्षक की नौकरी की, साथ ही बीए की पढ़ाई भी. बाद में उन्होंने एक बाल विधवा शिवरानी देवी से विवाह किया, जिन्होंने प्रेमचंद की जीवनी लिखी थी.

शिक्षक की नौकरी के दौरान प्रेमचंद के कई जगह तबादले हुए. उन्होंने जनजीवन को बहुत गहराई से देखा और अपना जीवन साहित्य को समर्पित कर दिया. कलम के जादूगर मुंशी प्रेमचंद ने अपना पहला साहित्यिक काम गोरखपुर से उर्दू में शुरू किया था. सोज-ए-वतन उनकी पहली रचना थी. जिस रावत पाठशाला में उन्‍होंने प्राथमिक शिक्षा ली थी, वहीं पर उनकी पहली पोस्टिंग शिक्षक के रूप मे हुई. 1910 में उनकी रचना सोजे-वतन (राष्ट्र का विलाप) के लिए हमीरपुर के जिला कलेक्टर ने कहा कि उन पर जनता को भड़काने का आरोप है. उनकी सोजे-वतन की सभी प्रतियां जब्त कर नष्ट कर दी गई.

आधुनिक हिेन्दी कहानी के पितामह माने जाने वाले प्रेमचंद की पहली हिन्दी कहानी सरस्वती पत्रिका के दिसम्बर अंक में 1915 में 'सौत' नाम से प्रकाशित हुई. उन्होंने अपने जीवनकाल में 1 दर्जन से ज्यादा नॉवेल और 250 लघु कहानियां लिखी.

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इतने महान रचनाकार होने के बावजूद प्रेमचंद का जीवन आरोपों से मुक्‍त नहीं थे और शादी को लेकर उनपर कई आरोप लगाए गए थे.प्रेमचंद्र ने लगभग 300 कहानियां और चौदह बड़े उपन्यास लिखे. सन् 1935 में मुंशी जी बहुत बीमार पड़ गए और 8 अक्टूबर 1936 को 56 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया. उनके रचे साहित्य का अनुवाद लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में हो चुका है, जिसमें विदेशी भाषाएं भी शामिल है.

अपनी रचना 'गबन' के जरिए से एक समाज की ऊंच-नीच, 'निर्मला' से एक स्त्री को लेकर समाज की रूढ़िवादिता और 'बूढी काकी' के जरिए 'समाज की निर्ममता' को जिस अलग और रोचक अंदाज उन्होंने पेश किया, उसकी तुलना नही है. इसी तरह से पूस की रात, बड़े घर की बेटी, बड़े भाईसाहब, आत्माराम, शतरंज के खिलाड़ी जैसी कहानियों से प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य की जो सेवा की है, वो अद्भुत है.

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