बेगम अख्तर: गजल, ठुमरी की वो आवाज, जिसे आज भी पसंद करते हैं लोग

दिग्गज शायर कैफी आजमी ने एक बार बेगम अख्तर के बारे में कहा था, 'गजल के दो मायने होते हैं, पहला गजल और दूसरा बेगम अख्तर.

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बेगम अख्तर (फाइल फोटो) बेगम अख्तर (फाइल फोटो)

प्रियंका शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 07 अक्टूबर 2018,
  • अपडेटेड 11:42 AM IST

गजल की मल्लिका और महान गायिका बेगम अख्तर का जन्म आज ही के रोज 7 अक्टूबर 1914 को हुआ था. आज उनका 104वां जन्मदिन है.  उन्हें दादरा और ठुमरी की साम्राज्ञी कहा जाता है.  आज भी दुनिया उन्हें गजल, ठुमरी और दादरा को एक नई पहचान देने के लिए याद करती है.

उनके गीतों-गजलों के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है, लेकिन आज हम उनकी जिंदगी से जुड़े ऐसे रोचक पहलुओं के बारे में बताएंगे जिन्हें आप नहीं जानते होंगे.

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जन्म

7 अक्टूबर, 1914 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में रहने वाले एक कुलीन परिवार में उस आवाज ने जन्म लिया. मां-बाप ने बड़े प्यार से नाम रखा, 'बिब्बी'. बिब्बी को संगीत से इश्क हुआ 7 साल की उम्र में हुआ.

शिक्षा

महज 7 साल की उम्र में मौसिकी की तालीम लेनी शुरू की थी. 15 साल की उम्र में पहली पब्लिक परफॉर्मेंस दी. उन्होंने 400 गीतों को अपनी आवाज दी. उन्हें 'अख्तरी बाई फैजाबादी' का नाम मिला था. बाद में उन्हें 'मल्लिका-ए-गजल' के नाम से जाना गया.

जब पेश किया पहला कलाम

बेगम अख्तर उस वक्त 15 साल की थी जब उन्होंने उन्होंने मंच पर पहला कलाम पेश किया तो सामने बैठी मशहूर कवयित्री सरोजनी नायडू फिदा हो गईं और खुश होकर उन्हें एक साड़ी भेंट की. इस गजल के बोल थे, 'तूने बूटे ए हरजाई तूने बूटे हरजाई कुछ ऐसी अदा पाई, ताकता तेरी सूरत हरेक तमाशाई'.

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बेगम अख्तर को बिब्बी के नाम से भी जाना जाता है. बिब्बी बहुत जल्द गजल, ठुमरी, टप्पा, दादरा और ख्याल गाने लगीं. आगे चलकर हिंदुस्तान ने उन्हें 'मल्लिका-ए-गजल' कहा और पद्मभूषण से नवाजा. वह 45 साल की उम्र तक गजल गायन में सक्रिय रहीं.

गायन पर फिदा थीं सरोजनी नायडू

सरोजनी नायडू और शास्त्रीय गायक पंडित जसराज उनके जबर्दस्त प्रशंसक थे, तो कैफी आजमी भी अपनी गजलों को बेगम साहिबा की आवाज में सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाते थे. अख्तर ने लखनऊ में बैरिस्टर इश्तियाक अहमद अब्बासी से शादी कराई. यह मुलाकात जल्द निकाह में बदल गई और इसके साथ ही अख्तरी बाई, बेगम अख्तर हो गईं, लेकिन इसके बाद सामाजिक बंधनों की वजह से बेगम साहिबा को गाना छोड़ना पड़ा.

वे करीब पांच साल तक नहीं गा सकीं और बीमार रहने लगीं. यही वह वक्त था जब संगीत के क्षेत्र में उनकी वापसी उनकी गिरती सेहत के लिए हितकर साबित हुई और 1949 में वह रिकॉर्डिंग स्टूडियो लौटीं. उन्होंने लखनऊ रेडियो स्टेशन में तीन गजल और एक दादरा गाया. इसके बाद उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े और उन्होंने संगीत गोष्ठियों का रुख कर लिया. यह सिलसिला दोबारा शुरू हुआ, तो फिर कभी नहीं रुका.

निधन

30 अक्टूबर, 1974 को बेगम साहिबा का शरीर दुनिया को अलविदा कह गया. कला क्षेत्र में योगदान के लिए भारत सरकार ने बेगम अख्तर को 1972 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1968 में पद्मश्री और 1975 में पद्मभूषण से सम्मानित किया.

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