शहरों की ओर बढ़ रहे हैं नक्सली, हैरान कर देगा हमले का पैटर्न

राजनांदगांव में पिछले दिनों जो नक्सल संबंधी वारदातें हुई हैं वे अपने आप में बेहद चिंताजनक हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि नक्सलियों का मूवमेंट बस्तर और दंतेवाड़ा से निकलकर राजनांदगांव और कवर्धा जैसे इलाकों में पसरने लगा है. पिछले 6 महीनों में सामने आई जानकारियों से साफ समझा जा सकता है कि नक्सली छत्तीसगढ़ के शहरों का रुख कर रहे हैं.

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प्रतीकात्मक फोटो. प्रतीकात्मक फोटो.

आदित्य बिड़वई / आशुतोष मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 01 मई 2019,
  • अपडेटेड 6:25 PM IST

नक्सलवादी संगठन अब छत्तीसगढ़ के बस्तर और दंतेवाड़ा में सीमित नहीं हैं, बल्कि अब वो छत्तीसगढ़ के शहरी इलाकों में अपने पांव पसार रहे हैं. दक्षिण छत्तीसगढ़ के बस्तर दंतेवाड़ा के जंगलों में रहने वाले नक्सली अब पश्चिमी छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव जैसे शहरी इलाकों में डेरा जमा रहे हैं.

इतना ही नहीं शहरों में नक्सलियों को पैर जमाने के लिए अर्बन नक्सल खुलकर इनकी मदद कर रहे हैं जिसका खुलासा हाल ही में हुई कुछ गिरफ्तारियों से हुआ है. जाहिर है ये राज्य और देश की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है.

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कब-कब हुए हमले...

राजनांदगांव में पिछले दिनों जो नक्सल संबंधी वारदातें हुई हैं वे अपने आप में बेहद चिंताजनक हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि नक्सलियों का मूवमेंट बस्तर और दंतेवाड़ा से निकलकर राजनांदगांव और कवर्धा जैसे इलाकों में पसरने लगा है. पिछले 6 महीनों में सामने आई जानकारियों से साफ समझा जा सकता है कि नक्सली छत्तीसगढ़ के शहरों का रुख कर रहे हैं. एक नजर डालते हैं हाल ही में हुई घटनाओं पर जो राजनांदगांव और कवर्धा जैसे शहरों के आसपास हुई हैं.

12 अप्रैल- राजनांदगांव शहर से 135 किलोमीटर दूर मानपुर में तीन आईडी धमाके हुए, जिसमें आईटीबीपी के दो जवान घायल हुए.

10 अप्रैल- मानपुर में बुकमरका पहाड़ी पर पुलिस की सर्च पार्टी को नक्सलियों के भारी जमावड़े का पता चला. जहां दोनों तरफ से गोलीबारी हुई. यहां नक्सलियों के पास से रॉकेट लॉन्चर और हथियार बरामद हुए.

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19 मार्च- अर्धसैनिक बलों के साथ ऑपरेशन में गाटापार जंगल में महिला नक्सली मारी गई.

9 मार्च- राजनांदगांव में नागपुर की रहने वाली नक्सली एरिया कमांडर सरिता उर्फ सुशीला को छत्तीसगढ़ पुलिस ने गिरफ्तार किया जिस पर 8 लाख रुपये का इनाम था.

9 मार्च -  छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल और अर्धसैनिक बलों के साझा ऑपरेशन में गाटापार इलाके के नकटीघाटी जंगल से नक्सलियों का पाइप बंद डेटोनेटर, मेडिकल सामान, नक्सली साहित्य और भारी मात्रा में हथियार बरामद किया गया.

27 फरवरी - राजनांदगांव के साबर दानी इलाके में पुलिस को नक्सलियों की बंदूकें और भारी मात्रा में दूसरे जरूरी सामान बरामद हुए.

26 फरवरी - राजनांदगांव के बकराकट्टा में पुलिस को जमीन के नीचे गड़े हुए नक्सलियों के बंदूक साहित्य रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजें बरामद हुई.

15 फरवरी - राजनंदगांव के साले वारा इलाके में पुलिस को नक्सलियों का भारी सामान बरामद हुआ. नक्सली वर्दी, साहित्य, रेडियो, मोबाइल फोन, कपड़े, दवाइयां, स्टेशनरी और हथियार बरामद हुए.

18 जनवरी - गाटापार के जंगलों में छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश सीमा पर नक्सली और पुलिस के बीच मुठभेड़ हुई.

इसके अलावा राजनांदगांव पुलिस ने 24 दिसंबर को बड़ी कार्यवाही करते हुए वेंकट नाम के एक शख्स की गिरफ्तारी की जिस पर नक्सलियों के लिए काम करने का आरोप है. छत्तीसगढ़ पुलिस ने इसे अर्बन नक्सल भी कहा था. वेंकट के ठीक पहले सरिता नाम की महिला नक्सली की भी गिरफ्तारी राजनांदगांव शहर से ही हुई थी.

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सरिता और वेंकट नक्सली सीमावर्ती घने जंगलों में रहने वाले नक्सलियों को न सिर्फ आर्थिक मदद मुहैया करवाते थे बल्कि उन्हें जरूरत के सामान समेत जरूरी जानकारियां भी उपलब्ध कराते थे. यहां तक कि छत्तीसगढ़ पुलिस भी मानती है कि अर्बन नक्सल आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा हैं.

क्या कहना है पुलिस का...

राजनांदगांव के सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस के एल कश्यप ने आज तक से बातचीत में कहा यह सच है अर्बन नक्सल नक्सलियों की लाइफ लाइन है, जो उन्हें हर जरूरी और बुनियादी सुविधाएं मुहैया करवाते हैं. राजनंदगांव के एसपी के एल कश्यप का कहना है कि राजनांदगांव का छुरिया इलाका नक्सलियों का केंद्र है जिसे Epicenter of MMC भी कहा जाता है. छुरिया से एक तरफ रास्ता महाराष्ट्र के गढ़चिरौली की ओर जाता है तो दूसरा रास्ता भंडारा की ओर.

महाराष्ट्र गढ़चिरौली नक्सलियों का गढ़ माना जाता है. दूसरी ओर रास्ता मध्य प्रदेश से जुड़े हुए भावे और गातापार जंगल से जुड़ा हुआ है. बस्तर दंतेवाड़ा से जंगल की पूरी लाइन महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से जुड़ती है. राजनांदगांव से निकले राष्ट्रीय राजमार्ग के जरिए नक्सलियों को मदद भी आराम से पहुंच रही है.

राजनंदगांव पुलिस का कहना है कि इस एमएमसी इलाके में दुर्गम पहाड़ियों घने जंगल और नेशनल हाइवे नक्सलियों के लिए सुगम साधन है, जिसकी वजह से वह बस्तर और दंतेवाड़ा छोड़कर घने जंगलों के जरिए पश्चिम और उत्तर के शहरों की ओर बढ़ रहे हैं.

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छुरिया में नक्सली एक दशक से सिरदर्द बने हुए हैं...

बता दें कि छुरिया का नक्सली आंदोलन एक दशक पुराना है. एक दशक पहले इसी छुरिया से राजनंदगांव में नक्सली मूवमेंट की शुरुआत हुई थी. बदलते समय के साथ अर्धसैनिक बलों और छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा लगातार चलाए जा रहे ऑपरेशन से राजनंदगांव को नक्सलियों से मुक्त करा लिया गया था.

लेकिन तीन राज्यों से मिलती हुई सीमाएं इस इलाके में नक्सलियों के लिए सबसे बड़ी मददगार बन गई. स्थानीय पत्रकार मनोज चंदेल बताते हैं कि तीन राज्यों की सीमाएं और राष्ट्रीय राजमार्ग से कनेक्टिविटी के चलते नक्सलियों ने कवर्धा और राजनांदगांव को अपना नया ठिकाना बनाया है.

चंदेल बताते हैं कि छुरिया के पुलिस थाने को नक्सलियों ने 10 साल पहले आग लगाकर बंदूकेन लूट ली थी साथ ही पुलिस वालों को नक्सलियों ने बंधक बना लिया था. लेकिन 10 साल बाद नक्सलवाद इस इलाके में फिर लौटा है.

पहले जंगलों में होते थे हमले अब शहर के नजदीकी इलाके बन रहे निशाना...

कुछ साल पहले तक सुदूर जंगलों में नक्सली हमले होते रहे, लेकिन हाल फिलहाल में पुलिस को शहर के नजदीकी इलाकों से भी आईईडी बरामद होने लगे हैं. दंतेवाड़ा में नक्सली हमले में मारे गए बीजेपी नेता भीमा मंडावी के साथ हुई घटना शहर से बहुत ज्यादा दूर नहीं हुई थी.

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जानकारों का कहना है कि शहर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर कई सारे ऐसे गांव हैं जो अब राजनांदगांव नगर पालिका का हिस्सा बन चुके हैं. ऐसे ही इसी एक गांव में रहने वाले उदयराम के भाई को नक्सलियों ने कुछ साल पहले उठा लिया था, लेकिन बाद में उसे छोड़ दिया. 3 महीने पहले उसने भी अपने घर के पास नक्सलियों की पूरी टीम की आहट महसूस की थी.

हालांकि, उदय का कहना है कि, "हमें नक्सलियों से डर नहीं लगता क्योंकि नक्सली हमें नुकसान नहीं पहुंचाते. ना तो हम उनके मुखबिर हैं ना ही नक्सलियों के लिए काम करते हैं इसलिए नक्सलियों ने हमें नुकसान नहीं पहुंचाया."

देखा जाए तो यहां आस-पास के गांव में कई चौराहों पर लाल झंडा लटकता नजर आता है. ज्यादातर लोग नक्सलियों के बारे में कुछ बोलना नहीं चाहते. ना तो वह कुछ कहते हैं ना किसी सवाल का जवाब देते हैं. शायद यह नक्सलियों का खौफ है जो यहां के लोगों के मन में डर बन कर बैठा है.

नक्सलियों के गढ़ में आईटीबीपी का बेसकैंप...

महाराष्ट्र की सीमा की ओर बढ़ते हुए राजनांदगांव के मुख्य हाईवे से निकली यह सड़क जोक तक जाती है. जहां हाल फिलहाल में आईटीबीपी ने अपना एक बड़ा बेस कैंप बनाया है. यह पूरा इलाका नक्सलियों का गढ़ माना जाता है और इसीलिए यहां की सड़कें विकास से महरूम हैं. आसपास की पहाड़ियां घने जंगल और तीन राज्य की सीमाओं की भौगोलिक स्थिति नक्सलियों के लिए ढाल का काम कर रही है.

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