भीड़ में शामिल होकर हिंसा करना है 'खतरनाक', जानिए कितने सख्त हैं कानून

एडवोकेट रोहित श्रीवास्तव ने बताया कि आईपीसी की धारा 34 और 149 के तहत हिंसक भीड़ में शामिल हर व्यक्ति हिंसा के लिए समान रूप से जिम्मेदार होता है. हिंसक भीड़ में शामिल कोई भी व्यक्ति यह कहकर बच नहीं सकता है कि वह सिर्फ भीड़ में शामिल था, लेकिन हिंसा नहीं की.

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दिल्ली में हिंसा (Courtesy- PTI) दिल्ली में हिंसा (Courtesy- PTI)

राम कृष्ण

  • नई दिल्ली,
  • 27 फरवरी 2020,
  • अपडेटेड 10:35 AM IST

  • हिंसा में शामिल सभी लोग समान रूप से होते हैं दोषी
  • आईपीसी में 2 साल से लेकर मृत्यदंड तक की सजा

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 24 और 25 फरवरी को दंगाइयों ने जमकर तांडव मचाया. दिल्ली में भड़की इस हिंसा ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. इसमें अब तक दिल्ली पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल समेत 27 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 200 से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं. इस दौरान पत्थरबाजी, फायरिंग और आगजनी की गई. सार्वजनिक और प्राइवेट संपत्तियों को आग के हवाले कर दिया गया.

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दिल्ली पुलिस ने इस हिंसा को लेकर 18 मामले दर्ज किए हैं और 106 लोगों की गिरफ्तार की है. दिल्ली पुलिस का कहना है कि सीसीटीवी फुटेज से दंगाइयों की पहचान की जा रही है. दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा. अब सवाल यह है कि दंगा, बलवा, फायरिंग, आगजनी और पत्थरबाजी करने वाले के खिलाफ किस कानून के तहत कार्रवाई की जा सकती है? भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी में भीड़ में शामिल होकर हिंसा और आगजनी करने वाले के लिए सजा का क्या प्रावधान किया गया है?

एडवोकेट रोहित श्रीवास्तव के मुताबिक हिंदुस्तान में किसी को कानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं हैं. अगर कोई भीड़ में शामिल होकर हिंसा करता है, तो उसके भारतीय दंड संहिता के तहत कार्रवाई की जाती है. उन्होंने बताया कि आईपीसी की धारा 147 और 148 में बल्वा करने पर 2 से तीन साल की सजा के साथ जुर्माने का प्रावधान किया गया है. इसके अलावा किसी इमारत में आगजनी करने पर आईपीसी की धारा 436 के तहत 10 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है.

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एडवोकेट रोहित श्रीवास्तव ने बताया कि आईपीसी की धारा 34 और 149 के तहत हिंसक भीड़ में शामिल हर व्यक्ति हिंसा के लिए समान रूप से जिम्मेदार होता है. हिंसक भीड़ में शामिल कोई भी व्यक्ति यह कहकर बच नहीं सकता है कि वह सिर्फ भीड़ में शामिल था, लेकिन हिंसा नहीं की. उन्होंने कहा कि अगर हिंसा के दौरान किसी पर जानलेवा हमला किया जाता है, तो आईपीसी की धारा 307 के तहत भी मामला बनता है, जिसके तहत 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान किया गया है.

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एडवोकेट रोहित श्रीवास्तव ने बताया कि अगर हिंसा में किसी की जान ले ली जाती है, तो आईपीसी की धारा 302 के तहत मामला बनता है, जिसके तहत आजीवन कारावास से लेकर मृत्युदंड और जुर्माने तक का प्रावधान किया गया है.

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उन्होंने बताया कि दिल्ली में हुई हिंसा में कई लोगों की मौत हो गई है, जबकि कई लोगों पर जानलेवा हमला करने की खबर है. लिहाजा हिंसा में शामिल हर व्यक्ति पर आईपीसी की धारा 147, 148, 295, 395, 307, 302 और 436 के साथ 149 व 34 के तहत कार्रवाई की जा सकती है. इसमें हिंसक भीड़ में शामिल सभी लोग समान रूप से सजा के हकदार होंगे. कुल मिलाकर दिल्ली हिंसा में शामिल जितने लोग दोषी पाए जाएंगे, उनको दो साल से लेकर मृत्युदंड तक की सजा दी जा सकती है.

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