Ghaziabad Harshvardhan Jain Fake Embassy Scam: गाजियाबाद की एक कोठी में चल रहा था ऐसा दूतावास, जिसके भौकाल ने पुलिस को भी हैरान कर दिया. वहां लग्जरी गाड़ियां थीं, डिप्लोमैटिक नंबर प्लेट थी और विदेशी झंडे भी. लेकिन जब STF ने जब अंदर छापा मारा तो चौंकाने वाली सच्चाई बाहर निकली. वो कोठी नहीं, फर्जी दूतावास था. और उसका मालिक था महाठग हर्षवर्धन जैन. जिसने 30 से ज्यादा देशों में घूम-घूमकर फर्जीवाड़े की इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी खड़ी कर दी थी!
एक कोठी, चार फर्जी दूतावास!
गाजियाबाद के कविनगर में मौजूद एक कोठी से एक नहीं, चार-चार फर्जी दूतावास संचालित किए जा रहे थे. बाहर से सबकुछ असली लगता था – डिप्लोमैटिक नंबर प्लेट्स, विदेशी झंडों वाली लग्जरी गाड़ियां और सूटेड-बूटेड लोगों का आना-जाना. इस पूरे भौकाल के पीछे था 47 साल का हर्षवर्धन जैन, जो खुद को अलग-अलग देशों का राजदूत बताकर सालों से लोगों को ठग रहा था.
53 बार दुबई, 30 से ज्यादा देशों की यात्रा
जांच में सामने आया कि हर्षवर्धन ने बीते 10 वर्षों में 53 बार दुबई की यात्रा की है. यूके, यूएई, मॉरीशस, फ्रांस, कैमरून, स्विट्ज़रलैंड, पोलैंड, बेल्जियम और श्रीलंका समेत वह 30 से ज्यादा देशों की सैर कर चुका है. हर जगह उसने फर्जी राजनयिक पहचान का इस्तेमाल किया. उसका मकसद खुद को बड़ा और इंटरनेशनल दिखाना था ताकि लोग उसकी बातों में आसानी से फंस जाएं.
फर्जी एंबेसी, दिखावटी तामझाम
उसने कविनगर की कोठी को एंबेसी ऑफ वेस्ट आर्कटिक का नाम दे दिया. दीवार पर ब्रास बोर्ड, बाहर लग्जरी गाड़ियां और गाड़ियों पर डिप्लोमैटिक नंबर प्लेट. कोठी से ऐसा माहौल बनाया गया जैसे वहां से भारत और दुनिया के कई देशों की राजनयिक गतिविधियां संचालित हो रही हों. लोग भी धोखे में आ गए और इसी भव्यता ने हर्षवर्धन को 'फेक डिप्लोमैट' बना दिया.
नकली दस्तावेजों की फैक्ट्री
STF की छापेमारी में वहां से नकली पासपोर्ट, प्रेस कार्ड, विदेशी करेंसी, पैन कार्ड, ID कार्ड और 34 से ज्यादा सरकारी मुहरें बरामद की गईं. यही नहीं, 12 फर्जी पासपोर्ट, डिप्लोमैटिक प्लेट्स, महंगी घड़ियां और लाखों की नकदी भी मिली. ये सब दस्तावेज हर्षवर्धन लोगों को झांसे में लेने और अपने रुतबे का दिखावा करने में इस्तेमाल करता था.
फर्जी देशों के नाम पर बना राजदूत
हर्षवर्धन खुद को वेस्ट आर्कटिक, सबोरगा, पौलविया और लोडोनिया जैसे फर्जी देशों का राजदूत बताता था. इनमें से कई नाम असल में सिर्फ एनजीओ थे, लेकिन उसने इन्हें देश का नाम बताकर दूतावास खोल लिया. जब लोग इन देशों के बारे में पूछते तो वह उन्हें वेबसाइट्स और दस्तावेज दिखाकर यकीन दिला देता. इस चमत्कारी दिमाग ने उसके फर्जीवाड़े को और पुख्ता बना दिया.
डिप्लोमैटिक गाड़ियों का रौब
उसके पास 20 से ज्यादा फर्जी डिप्लोमैटिक नंबर प्लेट थीं. जरूरत के हिसाब से वह इन्हें किसी भी गाड़ी पर लगाता और झंडे लगाकर निकल पड़ता. वो जहां भी जाता, लोग उसे राजदूत समझते. इसी भौकाल के चलते वह अपने टारगेट को जल्दी प्रभावित करता. लोग उसकी गाड़ियों, पहनावे और ठाठ-बाट से इतनी जल्दी प्रभावित होते कि जांच या सवाल करने की हिम्मत नहीं कर पाते थे.
हवाला और लाइजनिंग का बड़ा नेटवर्क
STF को शुरुआती जांच में पता चला कि हर्षवर्धन फर्जी दस्तावेजों की आड़ में शेल कंपनियों के जरिए हवाला रैकेट भी चला रहा था. साथ ही वो दलाली और लाइजनिंग के काम से भी पैसे कमाता था. लोगों को बड़े-बड़े कॉन्ट्रैक्ट दिलाने, विदेश भेजने या ब्लैक मनी व्हाइट कराने का झांसा देकर मोटी रकम ऐंठता था.
चंद्रास्वामी और इंटरनेशनल डीलरों से संबंध
हर्षवर्धन की जिंदगी तब बदली जब वह विवादित तांत्रिक चंद्रास्वामी से मिला. इसके बाद उसकी मुलाकात इंटरनेशनल आर्म्स डीलर अदनान खागोशी और एहसान अली सैयद से हुई. लंदन में उसने 12 फर्जी कंपनियां बनाई और इंटरनेशनल लाइजनिंग के जरिए ठगी शुरू की. उसने विदेशी डिप्लोमैट्स की तरह रहकर एक अंतरराष्ट्रीय छवि बनाई थी.
अमीर परिवार का बिगड़ैल वारिस
हर्षवर्धन का परिवार बेहद संपन्न था. उसके पिता जेडी जैन गाजियाबाद में जैन रोलिंग मिल्स के मालिक थे और राजस्थान में भी कारोबार था. लेकिन पिता की मौत के बाद वह कारोबार संभाल नहीं पाया. घाटे में जाते ही उसने ठगी की राह पकड़ ली. लंदन से एमबीए और विदेशी डिग्रियों का उसने जमकर गलत इस्तेमाल किया.
STF ने तोड़ा हर्षवर्धन का भौकाल, जांच जारी
STF की कार्रवाई से भले ही हर्षवर्धन का राज खुल गया हो, लेकिन जांच अब भी जारी है. उसकी आय के स्रोत, विदेशी संपर्क, हवाला ट्रांजैक्शन और नेटवर्क की परतें खोली जा रही हैं. पुलिस को शक है कि उसका संबंध इंटरनेशनल माफिया से भी हो सकता है. जो दिखता था, वो सिर्फ एक नकाब था. असल में वह महाठगी का ग्लोबल खिलाड़ी निकला.
aajtak.in